नितीश कुमार का बड़बोलापन और लंबी लंबी ख्वाइसों के बीच फंसा बिहार, जनता को तो कबीरदास जी के ये दोहे याद आ रहे है कि "करता रहा सो क्यों किया अब काहे पछताय। बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाय।।" और जनाब है कि ख़्वाब पाल बैठे है संघ मुक्त भारत का। अब इनको कौन समझाए कि ऐसा ख़्वाब उस समय क्यों नहीं आया जब संघ की शरण में रहकर दस वर्षो तक बिहार की गद्दी संभाली और ख्याति लूटी, वैसे संघ का कार्य ही है व्यक्तित्व निर्माण करना शासन करना नहीं। संघ ने व्यक्तित्व बनाया अब कोई गद्दार निकल गया तो उसमें संघ का क्या दोष? युग तो ऐसा चल रहा है कि समय यदि ख़राब हो तो बाप की कहनी बेटा भी ठुकरा देता है और नितीश बाबू आप तो एक नेता मात्र ही है आपकी क्या औकात की सत्य मार्ग पर सदा बने रह पाएं।
संघ मिटाने का ख़्वाब बहुतों ने देखा 1923 में संघ का मज़ाक भी बनाया परन्तु मिट गए मिटाने वाले, सोचा नहीं देश हित लूटते रहे गरीबों की रोटियां, जब खुद खड़े हो गए मिटने की कगार पर तो अब ऐसा ही दर्द थोप दिया है नितीश जी आप के हवाले। नेहरू से लेकर राहुल तक ने कोशिश कर ली अब आप ने भी लँगोट संभाली ही है तो कोशिश में क्या जाता है।
आये दिन बिहार में बढ़ते अपराध चीख चीख कर बददुआएं दे रही है, मगर कुर्सी का अहंकार ही ऐसा होता है कि कान तक आवाज पहुचती ही नहीं। ऐसा ही भ्रम कभी बाली को भी हुआ था, जिसने अपने छोटे भाई की पत्नी को भी अपनी पत्नी की तरह रखा था, मात्र इस बहम में कि वह सर्वश्रेष्ठ योद्धा है। उसे कोई नहीं मार सकता, क्यों नहीं मानी ये बात सुग्रीव ने? सुग्रीव ने अपनी जान बचा गुफ़ा के दरवाज़े से वापस किसकिन्धा क्यों आ गया? यही गरूर लिए बाली ने अत्याचार किया। लेकिन परिणाम क्या हुआ जब श्री राम के मात्र एक बाण ने जमीदोज कर दिया तब नीतियां और धर्म याद आने लगा। वैसे तो सब भूल गया था नितीश बाबू बिल्कुल आप जैसा ही। याद है उसने क्या बोला। बोला कि "मैं बैरी सुग्रीव पियारा, अवगुन कौन नाथ मोहि मारा।" ऐसा सुनने पर लोगों के अनेकों तर्क सामने आने लगते है कोई बोलता है श्री राम ने छुप कर मारा यह उचित नहीं था तो कोई कहता है श्री राम ने अपने फायदे के लिए मारा। परन्तु श्री राम जी के उत्तर ने जब बाली को संतुष्ट किया तो हम आप न तो राजा है और न न्यायाधीश फिर भी तर्क कुतर्क ऐसा करते है जैसे असंतुष्ट बाली ने पहले किया था।
कभी कभार लोग ये भी बोलते है कि बाली एक पशु योनि का प्राणी था उसपर मनुष्य के नियम निति क्यों? मगर हम ये भूल जाते है कि निति और नियम की बात पहले बाली ने ही की थी, यदि कोई भी जीव निति या नियम की बात अपने स्वार्थ के लिए तो करता है परन्तु जब वही निति या नियम उसे जकड़ने लगते है तब पतली गली पकड़ भाग लेता है। सत्य अच्छा तो सबको लगता है मगर जब सत्य सामने परोसा जाता है तो किसी को भी अच्छा नहीं लगता। वैसे भी जीव बुद्धि से ही मनुष्य होता है। बाली बुद्धिमान नीतिवान और कुशल धर्मनिष्ठ प्राणी था कुछ अहंकार ही उसे धर्म से दूर कर गए वर्ना आज के मनुष्यों से श्रेष्ठ ही था। ऐसे बुद्धिमान जीव की योनि भले ही पशु हो परन्तु उसके सारे व्यवहार और निति मनुष्य जैसी ही होती है, और बुद्धिहीन मनुष्य की योनि भले ही मनुष्य की हो परन्तु वह पशु की भाँति होता है।
नितीश जी भी आजकल सत्ता मद में चूर जनता के दुःख दर्द से परे बस इनदिनों प्रधानमंत्री के ख्वाबो में डूबे हुए है जिन्हें नैतिकता से कोई लेना देना नहीं बस कुनबा जोड़ने में ज्यादा वक्त गुजार रहे है उन्हें बाली की वीरता और दुर्दशा का ज्ञान भी नहीं, बाली के कर्म कुछ अच्छे थे जो श्री राम ने अदृश्य होकर मारा परन्तु मरते वक्त दर्शन देकर धन्य कर दिया। जनम जनम मुनि जतन कराही, अंत राम कही आवत नाही। और बाली के सामने साक्षात प्रभु खड़े थे, लेकिन नितीश जी आप का क्या होगा? जिसे जनता का दर्द नहीं दिख रहा है। आप कम से कम उन्हें भी याद कर लीजिये जिन्हें जनता ने विपक्ष लायक भी नहीं छोड़ा एक समय उन्हें भी अहम् आपसे कम नहीं था।
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