रुठने वाले तो भगवान से रूठ जाते है।
रुठने वाले पता नहीं क्या मजा पाते है।।
मगर तुम रूठो और मैं रूठूँ पर मानाने में।
हर पल रूठना आसान है इस ज़माने में।।
कैद कर लेता है जब अपनी वफाओ में।
गलफहमी छोड़ देता बहकी फिजाओ में।।
मगर हवा का रुख कुछ अजीब सा होता।
दोस्त सदा हँसता और रुठने वाला रोता।।
बीत जाएंगे पचपन तब शुरू होगा बचपन।
घर आयेंगे जो मेरे पूछेगें सिर्फ एक सवाल।।
अब स्वास्थ कैसा है और बच्चे क्या करते।
कोई ना पूछे पूंजी या गाड़िया कितनी रखते।।
फिर गलतफहमी किस लिए दोस्त है करते।
थोड़ी सी लालच में दोस्ती भूल धन पे मरते।।
नाकाम खुद होते मगर ईर्श्या दोस्तों से करते।
छोटी छोटी अनकही बातें दिल पर धरते।।
हठ में सदा कुघात होता उस पर जो सगा।
क्या बिगाड़ लोगें उसका जो प्यार में भगा।।
हठ से जीत भी जाओ तो जहाँ में हारा कौन।
जितने वाले सोच तुम्हें दुनिया में प्यारा कौन।।
जीत में मिलने से कही अधिक गवां तो न दोगे।
दुःखी कर उसको जीत का कैसे बदला लोगे।।
सोचों तुम रूठे हम रूठे तो मनायेगा कौन।
अपने खेल में अहंकार को हराएगा कौन।।
दोनों में से अगर मूद ली किसी ने भी आँखे।
रुठने वाले जरा सोच फिर पछतायेगा कौन।।
Sunday, 29 May 2016
दोनों में से अगर मूद ली किसी ने भी आँखे। रुठने वाले जरा सोच फिर पछतायेगा कौन।।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment