Wednesday, 25 May 2016

मोदीजी ने कौन सी कम ख्याति हासिल की है? मगर हे साधू ख्याल अच्छा है कि हर सफल व्यक्ति के पीछे एक नारी का सहयोग होता है।

मोदीजी ने कौन सी कम ख्याति हासिल की है? मगर हे साधू ख्याल अच्छा है कि हर सफल व्यक्ति के पीछे एक नारी का सहयोग होता है, मगर दिल में यदि संकल्प हो तो विकल्प की कोई कमी नहीं और जब विकल्प हो ढेरों सारे तो सफ़लता मिलने में मुश्किल ही क्या है? पत्नि हो या कोई अन्य पराया नारी, जो कोई भी संकल्प मार्ग को बाधित करेगा, उसे दरकिनार करना संकल्पी को आता है। परन्तु एक बार मोह माया के चक्कर में जो पड़े बच्चू! तो इतना आसान भी नहीं दरकिनार करना, और ऊपर से बीबी और परिवार की जरूरतें, एक विकराल रूप लिए और भी बाँधे रखती है, और हो भी क्यों नहीं यही तो है गृहस्थ जीवन, वर्ना हर कोई बन जायेगा पी एम। चलो पी एम नहीं सही परन्तु परिवार को खुश रखना इतना आसान भी नहीं किसी के कपड़े पुराने हो गए किसी की गाड़ी, किसी के गहने, किसी का मोबाइल लैपटॉप, कही घर में रहने को कमरे छोटे पड़ रहे, तो किसी को अटती नहीं रोटी दाल। दोस्त बोलते तू तो हो गया मतलबी यार, क्या हो गया है तुझे जो तेरे चेहरे से गायब है पूरा बहार। अब मोह माया में फसा वेचारा, करे तो क्या करे फिर तो बोलना ही पड़ता है कि "हर सफल व्यक्ति के पीछे किसी न किसी औरत का हाथ अवश्य होता है।" मक्खन पॉलिस जो करना है वर्ना घर का सकून भी लुट जायेगा। परन्तु चिंता नहीं करें! बाधाओ से मुक्ति ले! सफलता और विफलता की परवाह किये बगैर आगे बढ़ें! यदि नहीं बढ़ना है तो एक पति और पत्नि का थोड़ा झगड़ा पढ़ें फिर अगली बात।

पति जब बोलता है अजी सुनती हो क्या?

पत्नि-  नहीं ... मैं तो जनम कि बहरी हूँ ।

पति-  मैंने ऐसा कब कहा ?

पत्नि- तो अब कह लो, पूरी कर लो एक साथ, कोई भी हसरत अधूरी क्यों रहे ?

पति- अरी भाग्यवान!!

पत्नि-  सुनो एक बात.... आइन्दा मुझे भाग्यवान तो कहना मत , फूट गए नसीब मेरे तुमसे शादी करके और कहते हो भाग्यवान.हुह..।

पति- एक कप चाय मिलेगी?

पत्नि- एक कप क्यों? लोटा भर मिलेगी और सुनो .... किसको सुना रहे हो ? मैं क्या चाय बना के नहीं देती ?

पति- अरे यार कभी तो सीधे मुह बात ...

पत्नि- बस .... आगे मत बोलना. नहीं आता मुझे सीधे मुँह बात करना.... मेरा तो मुँह ही टेढ़ा है , यही कहना चाहते हो ना ?

पति- हे भगवान...!

पत्नि- हाँ ... माँग लो भगवान जी से एक कप चाय ।
मै चली नहाने, और सुनो मुझे शैम्पू भी करना है.... देर लगेगी.....बच्चों को स्कूल से ले आना .... मेरे अकेले के नहीं हैं ..।

पति- अरे ये सब क्या बोलती हो ?

पत्नि- क्यों झूठ बोल दिया क्या ? मैं क्या दहेज़ में ले कर आयी थी इनको ?

पति- अरे मैं कहाँ कुछ बोल रहा हूँ ?

पत्नि- अरे मेरे भोले बाबा, तुम कहाँ बोलते हो ? मैं तो चुप थी .... बोलना किसनेशुरू किया ? बताओ ...?

पति- अरे मैंने तो एक कप चाय मांगी थी।

पत्नि- चाय मांगी थी या मुझे बहरी कहा था ? क्या मतलब था तुम्हारा ? "अजी सुनती हो ..... ? क्या मतलब था बताओगे ?

पति- अरे श्रीमती जी...कभी तो मीठे से बोल लिया करो।

पत्नि- अच्छा...?. मीठा नहीं बोली मैं कभी  ? तो ये दो दो नमूने क्या पड़ोसी के हैं. ? देख लिया है मीठा बोल कर....। बस अब और मीठा बोलने कि हिम्मत नहीं है.।

पति- भूल रही हो मैडम ।

पत्नि- क्या भूल रही हूँ..?

पत्नि- अरे मुझे बात तो पूरी करने दो. मैं कह रहा था कि पति हूँ तुम्हारा...

पत्नी- अच्छा ..... मुझे नहीं पता था, सूचना के लिए धन्यवाद।

पति- अरे नहीं चाहिए मुझे तुम्हारी चाय... बक बक बंद करो।

पत्नि- अरे वाह!! तुम्हे तो बोलना भी आता है ? बहुत अच्छे....चाय  पी के जाओ.... बाद में नहा लूँगी।

पति- गज़ब हो तुम भी.... पहले तो बिना बात लड़ती हो फिर बोलती हो पी के जाओ।

आपने बचपन में कुश्ती लड़ी होगी, या नहीं लड़ी होगी तो मैं बताता हूँ। कुश्ती में सिखाने वाले को उस्ताद बोलते है, उस्ताद कुश्ती सिखाते या लड़ाते वक्त गर्दन के पिछले हिस्से पर रंदा यानि हाथो से मारता है, उसका मकसद होता है कि सागिर्द की बुद्धि कम हो जाय, ताकि शरीर का तेजी से विकास हो, जो कुश्ती के लिए उपयोगी है। ठीक उसी तरह से मोह माया भी अपने ग्रिप कब्ज़े में लेने के लिए आपकों झुकाती है, बार बार जलील करती है, तब तक जलील करती है, जब तक आप माया मोह से भागने को तैयार नहीं हो जाते, जैसे ही वह देखती है कि बन्दा अब हाथ से निकला तो तुरन्त अपनी चाल बदल फिर पकड़ मजबूत करती है। जैसे पत्नि ने किया जब देखा पति अब जानेवाला है तो तुरन्त चाय देने के लिए तैयार हो गई। खैर घर गृहस्थी में इसे नोक झोक ही समझे तो बेहतर होगा।यह बात समझना और समझाना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल है याद रखना, क्योंकि जब तब आप मेरे साथ हो तब तक ही यह याद रहेगीं, यही सांसारिक रीती है, वर्ना सफलता हर किसी के नसीब में लिखा होता है, बस सफल होना कोई कोई ही जानता है। मगर एक बात अवश्य याद रखें किसी का नक़ल करने से अकल नहीं होता। न ही आप मोदी जी की नक़ल कर पी एम बन सकते है उसके लिए आप को वही करना है आप जो हो वर्ना आधी छोड़ पूरी पर धाये, आधी बची न पूरी पाये। अब आप ऊब रहे होंगे मगर मैं जो बोलना चाहता हूँ वह आपको पता है, क्योंकि मूर्तिकार मूर्ति बनाता नहीं,सिर्फ मूर्ति पर चढ़े अनावश्यक पत्थर हटाता है, मूर्ति तो पत्थर के अन्दर विद्यमान होती है।

बचपन भी अजीब था पैदल ही स्कूल जाता था वो मोटे मोटे बैग लेकर सोचता था, पिताजी अगर एक साइकिल खरीद देते तो मुश्किल आसान हो जाती, जब साइकिल मिल गई तो दिल में ख्वाइशें बढ़ी सोचने लगा साइकिल चलाकर थक जाता हूँ यदि मोटर साइकिल मिल जाती तो, पढ़ाई और अच्छी तरह करके बोर्ड टॉप करता। मोटर साइकिल तो मिल गई मगर बोर्ड टॉप क्या जिन्दगी भी टॉप नहीं हुई। खैर इन्ही बदलती मंजिलों के साथ, मोटर साइकिल से चलने में धूप वर्षात का सामना करना पड़ता था। सोचा कार खरीद लेता तो मुश्किलें आसान हो जाती। ईश्वर ने सुनी कार भी आ गई। कार में चलते चलते थकावट सी महसूस होती थी, जब कभी दूरी अधिक बढ़ जाती थी। फिर तो क्या अधिक दूरी के लिए प्लेन से चलने लगा, मगर इंसान की ख्वाइशें भी मंज़िले भी क्या अजीब होती है। ऊपर प्लेन से देख सोचता था काश समय मिलता तो पैदल थोड़ा घास पर चलता, तो स्वास्थ बेहतर होता। बस ऐसी ही कुछ मंजिलों में अटका मानव यही नहीं समझ पा रहा कि उसे करना क्या है? हां हां लक्ष्य नहीं चुनें! चुनना है तो चुनें, कि आप को करना क्या है? आप क्या कर सकते है जो नहीं कर रहे है? मंजिलों का क्या दौर, इनके चक्कर भी अजीब है, इनमें उलझने से कुछ हासिल होने वाला नहीं। बस आप अपना कर्तव्य चुनें!

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