भगवा सत्य है ईर्ष्या नहीं, जीवन का ज्ञान है...भगवा। अंतिम पड़ाव है, भगवान से मिलन का मार्ग है भगवा। ये कोई हिंदुत्व नहीं, जिसने समझा उसके लिए स्वाभिमान है, नहीं समझा तो अज्ञान है भगवा। क्यो अपनाए हम भगवा, किसके लिये अपनाए हम भगवा, इसी बहम को दूर करने का प्रतीक और प्रकृति का ज्ञान है भगवा।
जिस अज्ञान में हर पल गिरते है इंसान,
हर पल हर क्षण बनाने में जुटे है पहचान,
पर बनाने से बनता कुछ भी नहींयदि प्रकृति को पहचानने में भूल की तो! प्रकृति के करीब रहकर न्यूटन ने मात्र एक बार सेव गिरते देखा तो प्रख्यात हो गए और बन गई अपने आप ही पहचान। न्यूटन ने तो खोज कर ली गुरुत्वाकर्षण की आप कहा भ्रमित हो, ...इंसानो को हर पल गिरते देखकर भी इंसानियत नहीं खोज पाये, यही से मानव खो रहा है अपनी पहचान।
देखा होगा जीवन में आप ने भी आम का फल, सेव संतरा पपीता आदि अनेकों परन्तु क्या कभी सोचा कि ये जब अपरिपक्व इनमैच्योर होते है तब इनका रंग हरा होता है। लोग बोलते है अभी ये कच्चा है। ऐसा नहीं कि कच्चा फल उपयोगी नहीं, हरा रंग अछूत है, उपयोगी है, परन्तु जब तक हरा है, तब तक उसमें नहीं है ज्ञान। यदि आप हरे फल का सेवन करते है तो आपको रहना है अधिक सावधान। क्योंकि इससे आपको और आपके धर्म को हो सकता है नुकसान। हरे फल के सेवन की विधि सीखें और लोगों को भी सिखाएं! आम हरा है तो अधिक खट्टा है,परन्तु खाने की इच्छा है तो उसे आग में पका कर खाएं यदि कुछ आप ज्यादा ही उतावले है तो आपकी मर्जी चटनी बनाये या नमक लगाएं, आपतो चालक है इसलिए कहने का मतलब भी समझ रहे है।
धर्म में भी हरा रंग अपरिपक्वता की पहचान है। क्योंकि यह प्रकृति ही कहती है और अनुभव भी कुछ ऐसा ही है दुनिया को। अब हरे धर्म वालों के साथ रहना है तो कुछ तो सावधान रहना ही होगा। समय समय पर उनकी अज्ञानता को दूर करना होगा, उन्हें बताना होगा कि भगवा एक ऐसा रंग है जिसमें सारे रंग समाहित है हरा सफ़ेद पीला लाल सबका मिश्रण है भगवा, और हरा सिर्फ अकेला है, जिसमें सिर्फ एक ही रस है बाकि सब नीरस है। शुरुआत में अच्छा लगता है हरा रंग क्योंकि भौतिक सुखों की चाहत युवावस्था में अधिक होती है। परन्तु जब यही सुख भोगने की क्षमता नहीं होती है, तब अन्य रसों की आवश्यकता होती है। जिसके बगैर जीवन अधूरा होता है। इसलिए हिंदुओ ने अपनाया भगवा। चालाकी इसी में है कि हर कोई समझ ले भगवा और जीवन का सत्य स्वीकार ले भगवा अन्यथा भगवान, प्रकृति स्वंग कर देगी भगवा।
आपके भी मन में ख्याल आता होगा कि जब इतना सबकुछ ब्रह्माण्ड है भगवा, तो इस्लाम ईसाई जैन बौद्ध धर्म क्यों बन गए जब धरती पर पहले से ही मौजूद था भगवा। ख्याल अच्छा है हम भी और आप भी जानते है कि किताब खूब मोटी सी होती है पढ़ते है उसे सारे विद्यार्थी परन्तु हर कोई अपनी क्षमतानुसार अपनी आवश्यकतानुसार ही ग्रहण करता है जो जितना ग्रहण करता है अपने आने वाली पीढ़ी को उतना ही बताता है। रही बात अलग धर्म बनने की तो आज भी हर कोई अपनी अलग पहचान बनाने के लिए कुछ सोचकर कुछ नक़ल कर कुछ कापी पेस्ट कर कोशिश करता है। पहले भी ऐसा ही हुआ जिसमे जीतनी बुद्धिमत्ता थी उसने उतने अच्छे तरीके से कापी पेस्ट किया। परन्तु कापी पेस्ट भी इतना आसान नहीं होता है। कहते है नक़ल के लिए भी अकल की जरुरत होती है और जिसने इतना बड़ा नक़ल किया वह भी भगवान का ही अंश था। इतना सब कुछ अध्ययन किया इतना सबकुछ जाना भगवान के विषय में तो वह भगवान नहीं पर उनका ही अंश तो है।
मन यह भी सोचने को विवश होता है कि कैसे कैसे लोग है इस दुनिया में जो नक़ल को इतनी अहमियत देते है और सत्य जानने की कोशिश भी नहीं करते है.....! यही माया है! जिसे ईश्वर ने ही बनाया है। यदि सभी सत्य जान जायेगे तो संसार की सारी व्यवस्था डगमगा जायेगी और ऐसा ईश्वर भी नहीं चाहता, परन्तु आप तो सत्य को पहचानते है भगवान को जानते है, तो जिन्हें ईश्वर का ज्ञान नहीं सत्य की पहचान नहीं उसे क्यों नहीं समझाते? शायद इसका उत्तर यही कि यदि कोई समझना न चाहे तो उसे कोई भी शक्ति समझा नहीं सकती, और यह भी एक सत्य है। यदि आप समझते है और भगवान को मानते है तो ईर्ष्या नहीं करें! उनसे जो सत्य के अनजान है। जो इस दुनिया में नादान है। कच्चे हरे फल के समान है।
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