Monday, 16 May 2016

सभी को ख़ुशी मिले! सब प्रगति करें! इस लेख का साधारण सा यही लक्ष्य है।

भीख में मिले साम्राज्य से अधिक प्रिय और स्वाभिमानयुक्त मेहनत से कमाई रोटी का मात्र एक टुकड़ा होता है।

पहचान से मिला काम और काम से मिला पहचान में अन्तर, मेहनत की कमाई करनेवाला ही समझ सकता है।

ठीक उसी तरह कांग्रेस सरकार के बाद  मोदी सरकार से आये अच्छे दिन सिर्फ स्वाभिमानी और मेहनतकस ही महसूस कर सकता है।

आप अपने घर का ध्यान आप न रखें और यदि चोरी हो जाये तो,गाड़ी तेज़ चलाएं और धक्का लग जाये तो,पढाई न करें और फेल हो जायें तो, कौन है इन सारी समस्याओं का जन्म दाता? कभी सोंचने का मौका मिले तो सोचें! अन्यथा भाग्य तो है ही, इस दुनिया में होने वाले हर गलत काम का जिम्मेदार आप नहीं है, भगवान है क्या यही आपका तर्क है?

आजकल लोगों ने एक  फैशन बना लिया है, जो काम नहीं कर सकते, उसके लिए भाग्य या भगवान को दोषी मानते है। यदि आप जिम्मेदारी नहीं लेगे तो इस देश से भ्रष्टाचार नहीं मिटा सकता, महंगाई नहीं रुक सकती क्योंकि भ्रष्टाचार बनाने वाले भी आप है और मिटाने वाले भी आप ही होंगे! भगवान ने सभी को हवा, पानी, धुप, आदि बराबर दिया है,कभी क्या आपने देखा है कि ठण्ड के दिनों में अम्बानी के घर के ऊपर मैं तेज़ धुप हो रहा हो या गर्मी में सिर्फ उन्ही के घर बारिश हो रही है। फिर ईश्वर या भाग्य दोषी कैसे?

भगवान ने सिर्फ ज़मीन बनाई, उसे बेचा मनुष्य ने, पानी बनाया, उसे बोतलों मे भरकर बेचा मनुष्य ने,जानवर बनाये, उन्हें मवेशी कहकर बेचा मनुष्य ने, पेड़ बनाया, उन्हें लकड़ी कहकर बेचा मनुष्य ने, क्या किसी भी वास्तु की खरीद बेच ईश्वर करता है? फिर समस्याओं का जन्म दाता वो कैसे हो सकता है? और सबसे मजे की बात कि, ऐसा कोई भी नहीं मिलेगा इस दुनिया में जो समस्या से मुक्त हो, और इस दुनियां में कोई भी ऐसी समस्या नहीं जिसका समाधान न हो, हरवक्त समस्या समस्या कहने या इसी में उलझने से बहानेबाजी आती है, बेहतर होगा कि समाधान के बारे में कदम उठायें! जो आपको नई दिशा और दशा देगा! रास्ते अपनेआप खुलेंगे। ऐ दोस्त जिन्दगी आसान नहीं खुद को मजबूत बनना पड़ता है। समय कभी उत्तम या अनुकूल नहीं होता उत्तम या अनुकूल बनाना पड़ता है। जागों! समय रहते जागों! अन्यथा समय बार बार नहीं आता।

अभी मैं जागो कहूँ और आप जाग जाय ऐसा भी सम्भव नहीं क्योंकि जितनी आसानी से जागो कहा जाता है, उतना आसान ये सबकुछ है नहीं, वर्ना इतने फासले नहीं होते, हर किसी को समझने समझाने और उलझने उलझाने में। प्रकृति भी कुछ ऐसी ही है। क्योंकि हम प्रत्येक वस्तु का एक ही हिस्सा देख पाते है, चाहे वह सिक्का हो, मनुष्य हो, जानवर हो, पेड़, पहाड़, नदी, समुद्र कुछ भी, इसीलिये इतना आसान भी नहीं समस्याओं से समाधान की ओर जाना। यही वजह है, जो आज दुनिया को अमीर गरीब बनाती है। क्योंकि कोई सत्यनिष्ठ सही दृश्य दिखाने की कोशिश करके जैसे ही दूर गया नहीं, कि ठग दूसरा पहलू दिखा तुरंत भ्रमित कर देते है, और लोगों को विश्वास भी उन्ही पर जल्दी हो जाता है क्योंकि वे आसान रास्ता बताते है जो लक्ष्य पर जाता ही नहीं और ठग अमीर ठगा जानेवाला गरीब हो जाता है।

कल्पना कीजिए कि आप किसी बस में सफ़र कर रहे हो और अपने सीट को लेकर परेशान काफी मेहनत कोशिशों के बाद आपको सीट मिल भी जाय आप आराम से बैठकर सोचें कि आपको जाना कहा है और पता चले कि यह बस कही और जा रही है तब कैसा लगेगा? क्या होगा आपकी मेहनत का जिसकी वजह से आपको सीट मिली, ठीक उसी प्रकार पहले मेहनत नहीं करें! सबसे पहले सोचें कुछ भी करने से पहले योजना बनाएं! फिर उस योजना पर अमल करें, अमल करते वक्त भी बार बार सचेत रहे, निरंतर निगरानी करते रहे कि आप जो कर रहे है उसका परिणाम आपको आपके लक्ष्य की ओर ही ले जा रहा है, यदि परिणाम विपरीत हो रहा हो तो वही पर फिर अनुकूल होने की योजना बनाये, और अमल करें, निगरानी करें इस प्रकार निरंतर प्रयास करें सफलता अवश्य मिलेंगी।

फिर भी इतना आसान नहीं ये दुनिया क्योंकि आप जहाँ खड़े है वहा से जो अपने लक्ष्य बनाया वहा तक जाने का मार्ग ही आपको पता नहीं हो! यदि ज्ञात होता तो आज आपके सामने कोई समस्या होती ही नहीं। मैं कोई ज्योतिषी या मनोवैज्ञानिक नहीं जो बोलूँ कि शायद आपके लिए लक्ष्य तक जाने का मार्ग अभी तक बना ही नहीं। हो सकता है नहीं बना हो, यदि नहीं बना तो इसे आप बना सकते है तो बनाएं! अन्यथा एक और तरीका है कि कोई और बनाये, उसके लिए जरुरी है कि आप सही सरकार चुने! क्योंकि प्रजातंत्र में सरकार की मुख्य भूमिका होती है, एक गलत चुनी हुई सरकार बेरोजगार व्यक्तियों को दस वर्ष पीछे धकेल देती है। और सरकार चुने कैसे यह भी एक समस्या है। क्योंकि भविष्य में कौन धोखेबाज़ होगा यह कहना भी आसान नहीं, परन्तु यह एक घटना पढ़ें!

एक बार एक मैदान में खेल रहे कुछ बच्चों के पास एक मनोवैज्ञानिक गया, और सोचा बच्चों की रेस लगवाकर मजा लेता हूँ। दो चार मिठाई खर्च करके! सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और एक मिठाई का बॉक्स एक पेड़ की नीचे रखकर बोला। जो बच्चा सबसे पहले दौड़कर बॉक्स को छुएगा उसे पुरे बॉक्स की मिठाई मैं दे दूँगा। सभी ने बोला ठीक है, अब उस व्यक्ति ने एक दो तीन कहकर बोला लेलो मिठाई का बॉक्स। पता है क्या हुआ? सभी बच्चों ने एक दूसरे का हाथ पकड़कर दौड़ लगाई, और एक साथ बॉक्स की सारी मिठाइयां अपने आप हासिल कर ली मनोवैज्ञानिक की सारी योजना फेल हो गई क्योंकि एकता की शक्ति सिर्फ लक्ष्य देती है निराशा नहीं। यदि मनोवैज्ञानिक बेईमानी करता तो। सारे बच्चे दूसरा भी तरीका अपना सकते थे। हम है लड़ते है जाति के नाम पर सोंचते है हमें आरक्षण का लाभ मिल रहा है परेशान तो ओ है। जिसका लाभ उठाकर नेता मजे कर रहा है और आप समस्याओं का पहाड़ लिए रास्ता वीहीन मूक दर्शक। दूसरों का अहित और अपना हित जिस दिन लोग देखना बंद कर देगे उसी दिन से बेरोजगारी बेईमानी भ्रस्टाचार अत्याचार सबकुछ समाप्त हो जायेगा।

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