Friday, 27 May 2016

इसलिए प्यास ऐसी ना लगे कि जहर मिला पानी पी जाओ। मंजिल छोड़ कर्तव्य चुन और हमसफ़र संग जी जाओ।।

हर कोई परेशान है हैरान है मंजिल की चाह में।
एक दूसरे से धक्का मुक्की करता रहता है राह में।।
हमसफ़र के चक्कर में सफलता छोड़ने की चाह नहीं।
भीड़ बहुत है इस ज़माने में मगर निकलने की राह नहीं।।
चाहत लगी है गजब की यारों मगर  दिल में प्यार नहीं।
लगन लगी है अजीब सी मगर मिलता कोई यार नहीं।।
अगर उसका हाथ पकड़ो तो है मंजिल छूटने का डर।
अगर वो नहीं है साथ में तो मंजिल पाकर भी है बेखबर।।
अजीब सी कसमकस है इस सफलता के दीवानों को।
वें छोड़ने पर आमादा है इस वक्त भीड़ के परवानों को।।
कहते है मेरे दिल में प्यार है मगर दीवानगी नहीं।
समझने का फेर है उनमें, जिनमें है मरदानगी नहीं।।
सफलता वो है जिसमें खूब जबरजस्त बेवफाई है।
पाने वाला भी हरजाई है और न पाने वाले की तन्हाई है।।
मंजिल का क्या ये मिल जाती है तो वो छूट जाती है।
मगर जो छोड़ आये वो चली गई फिर कभी नहीं आती है।।
पहुँचकर मंजिल पे अनजान सा बेजान हुआ जाता है।
बिना हमसफ़र के इस दुनियां में कुछ भी नहीं भाता है।
इसलिए प्यास ऐसी ना लगे कि जहर मिला पानी पी जाओ।
मंजिल छोड़ कर्तव्य चुन और हमसफ़र संग जी जाओ।।
मंजिल आज ये कल वो होगी उसके लिए बरबाद ना हो।
उस बेरुख़े इंसान को ना देख जो जीवन में आबाद ना हो।।
कर्तव्य सदा साथ रहेगा जीवन और मरण के बाद भी।
सफलता की क्या है जो मंजिल पाकर होता अनाथ भी।।
आएगा एक दिन वो जब चार कंधो पर उठ जायेगा।
तेरी मंजिल या सफलता नहीं किया हुआ ही रुलाएगा।।
आगे सफ़र है पीछे हमसफ़र यदि चलूँ तो हमसफ़र रूठे।
तू ही बता मेरे ऐ दोस्त क्या करूँ यदि ना चलूँ तो सफ़र रूठे।।
ऐ दोस्त किसने कहा कि मत चल चल मगर बेरुख़े ना बन।
सपूत जुटाए और कपूत उड़ाए फिर तू सनचत का धन।।
रही बात मंजिल की तो मंजिल इतनी छोटी ना कर।
आज ये रही कल वो सही इस घाट से उस घाट जाकर।।
जब समझे अपनी असली मंजिल तो बहुत देर ना हो जाए।
जीवन भर आधी छोड़ पूरी पर दौड़े आधी रही न पूरी पाये।।

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