किसी ने खूब कहा कि माननीय PM जी,
कृपया सारी योजना बंद कर दीजिये।
सिर्फ सांसद भवन जैसी कैन्टीन हर दस किलोमीटर पर खुलवा दीजिये ।
सारे लफड़े खत्म।
29 रूपये में भरपेट खाना मिलेगा ।
80% लोगों को घर चलाने का लफड़ा खत्म।
ना सिलेंडर लाना, ना राशन
और
घर वाली भी खुश ।
चारों तरफ खुशियाँ ही रहेगी।
फिर हम कहेंगे सबका साथ सबका विकास ।
सबसे बड़ा फायदा 1 रूपया किलो गेहूँ नहीं देना पड़ेगा।
और PM जी को ये ना कहना पड़ेगा कि मिडिल क्लास के लोग अपने हिसाब से घर चलाएँ ।
इस पे गौर करें
कृपया कड़ी मेहनत से प्राप्त हुई ये जानकारी देश के हर एक नागरिक तक पहुँचाने की कोशिश करे ।
शान है या छलावा...।
पूरे भारत में एक ही जगह ऐसी है जहाँ खाने की चीजें सबसे सस्ती है ।
चाय = 1.00
सुप = 5.50
दाल= 1.50
खाना =2.00
चपाती =1.00
डोसा = 4.00
बिरयानी=8.00
ये सब चीजें सिर्फ गरीबों के लिए है और ये सब Available है Indian Parliament Canteen में।
और उन गरीबों की पगार है 80,000 रूपये महीना वो भी बिना income tax के ।
कि यही कारण है कि इन्हें लगता है कि जो आदमी 30 या 32 रूपये रोज कमाता है वो गरीब नहीं हैं।
हमें भी ऐसी बातें अच्छी लगती है और लगे भी क्यों नहीं क्योंकि यह इतना असत्य भी नहीं, परन्तु सवाल ये नहीं कि सत्य क्या है होना क्या चाहिए और हो क्या रहा है। मगर सिर्फ एक लालच है जो सारी बुद्धिमत्ता को चौपट कर देती है। हम सोचने लगते है जैसे इन सब बातों का गुनहगार सिर्फ मोदीजी है, जैसे इन सारी योजनाओं की शुरुआत मोदीजी ने की हो। जब तनिक लालच से दूर होंगे तो असलियत अपने आप स्पष्ट हो जायेगी कि इसका प्रचार प्रसार क्यों हो रहा है इसके पीछे मकसद क्या है खैर उद्देश्य कुछ भी मगर होना क्या चाहिए ये तो दूर की बात है, जब हम एक सांसद नहीं है तो क्या पता ये जो कुछ सांसदों को मिल रहा है वह कम है या ज्यादा। परन्तु कुछ इन बातों पर भी ध्यान देना चाहिए न कि सिर्फ सोनिया,माया,मुलायम, लालू, केजरीवाल, नितीश कुमार, जय ललिता, येचुरी आदि जैसे नेताओं के ग्लैमर पर।
आपने आजीवन सांसद रहे माननीय अटल बिहारी बाजपेयी को देखा या सुना होगा, लालबहादुर शास्त्री जी को जानते होंगे, सरदार पटेल? नहीं तो बिहार के करपूरी ठाकुर अब कितने नाम लूँ चलिए श्री नरेंद्र मोदीजी को तो देख ही रहे है जो सैलरी तो छोड़िए मिला गिफ्ट भी दान दे देते है। कभी उनके परिवार या नात रिस्तेदार को देखा है अगर नहीं तो थोड़ी शरम तो कर लो इज्जत नहीं घटेंगी! मगर नेताओँ की तुलना उस गरीब से जो दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पा रहा हो कही से भी जायज नहीं क्योंकि दोनों का अपना अपना प्रभाव है दोनों का अलग अलग स्वभाव है। गरीब को रोटी मिलनी चाहिए परन्तु देश में और भी व्यवस्था को अनदेखा करके सम्भव नहीं जब रोटी देनेवाला ही नहीं होगा तो व्यंग किसपर कसोगे?
खैर राजनीति भी कुछ इस कदर गन्दी हो चुकी है कि अर्थ का अनर्थ गढ़ते देर नहीं लगता, कभी भी कुछ भी वयान के जरिये सुनने वाले को समझाया जा सकता है इसीलिए तो अदालतों में फैसले भी प्रभावित होते रहे है। इसका एक जीता जागता उदाहरण है नाथूराम गोडसे का जीवन, अब सोचने की बात है कि जिसे पता था कि वह क्या कर रहा है और उसका परिणाम क्या होगा फिर भी उसने अपने लिए फाँसी चुनी। क्यों?
माना कि गांधीजी ने खूब कष्ट सहा बड़े ईमानदार सत्यनिष्ठावान व्यक्ति थे उनकी वजह से भारत का गौरव भी बढ़ा मगर ये पक्तियां पढ़ें किसी ने खूब कहा है।
किन्तु अहिंसा सत्य कभी अपनों पर ही ठन जाता है ।
घी और शहद अमृत हैं पर मिलकर के विष बन जाता है ॥
अपने सारे निर्णय हम पर थोप रहे थे गांधी जी ।
तुष्टिकरण के खुनी खंजर घोंप रहे थे गांधी जी ॥
महाक्रांति का हर नायक तो उनके लिए खिलौना था ।
उनके हठ के आगे तब जम्बूदीप हमारा बौना था ॥
इसिलिये भारत अखण्ड, भारत अखण्ड का दौर गया ।
भारत से पंजाब सिंध रावलपिंडी और लाहौर गया ॥
तब जाकर के सफल हुए जालिम जिन्ना के मंसूबे ।
गांधी जी ने अपनी ही जिद में पुरे भारत को लेडूबे ॥
भारत के इतिहासकार थे चाटुकार दरबारों में ।
अपना सब कुछ बेच चुके थे नेहरू के परिवारों में ॥
भारत का सच लिख पाना था उनके बस की बात नहीं ।
वैसे भी सूरज को लिख पाना जुगनू की औकात नहीं ॥
जो जिन्ना जैसे राक्षस से मिलने जुलने जाते थे ।
जिनके कपड़े लन्दन पेरिस दुबई धुलने जाते थे ॥
कायरता का नशा दिया है गांधी के पैमानो ने ।
भारत को बर्बाद किया नेहरू के राजघरानो ने ॥
हिन्दू अरमानों की जलती एक चिता थे गांधी जी ।
कौरव का साथ निभाने वाले भीष्म पिता थे गांधी जी ॥
अपनी शर्तों पर इरविन तक को भी झुकवा सकते थे ।
भगत सिंह की फांसी दो पल में ही रुकवा सकते थे ॥
मन्दिर में पढ़कर कुरान वो विश्व विजेता बने रहे ।
ऐसा करके मुस्लिम जनमानस के नेता बने रहे ॥
एक नवल गौरव गढ़ने की हिम्मत तो करते बापू ।
मस्जिद में गीता पढ़ने की हिम्मत तो करते बापू ॥
रेलों में हिन्दू काट काट कर भेज रहे पाकिस्तानी ।
टोपी के लिए दुखी थे पर चोटी की एक नहीं मानी ॥
मानों फूलों के प्रति ममता खतम हो गई माली में ।
गांधी जी दंगों में बैठे थे छिपकर नोहाखाली में ॥
तीन दिवस में श्री राम का धीरज संयम टूट गया ।
सौवीं गाली सुन कान्हा का चक्र हाथ से छूट गया ॥
गांधी जी की पाक परस्ती पर भारत लाचार हुआ ।
तब जाकर नाथू उनका वध करने को तैयार हुआ ॥
गये प्रार्थना सभा में गांधी को करने अंतिम प्रणाम ।
ऐसी गोली मारी उनको याद आ गए श्री राम ॥
मूक अहिंसा के कारण भारत का आँचल फट जाता ।
गांधी जीवित होते तो फिर देश दुबारा बंट जाता ॥
थक गए हैं हम प्रखर सत्य की अर्थी को ढोते ढोते ।
कितना अच्छा होता जो नेता जी राष्ट्रपिता होते ॥
नाथू को फाँसी लटकाकर गांधी जो को न्याय मिला ।
और मेरी भारत माँ को बंटवारे का अध्याय मिला ॥
लेकिन जब भी कोई भीष्म कौरव का साथ निभाएगा ।
तब तब कोई अर्जुन रण में उन पर तीर चलाएगा ॥
अगर गोडसे की गोली उतरी न होती सीने में ।
तो हर हिन्दू पढ़ता नमाज फिर मक्का और मदीने में ॥
भारत की बिखरी भूमि अब तलक समाहित नहीं हुई ।
नाथू की रखी अस्थि अब तलक प्रवाहित नहीं हुई ॥
इससे पहले अस्थिकलश को सिंधु की लहरें सींचे ।
पूरा पाक समाहित कर लो भगवा झंडे के नीचें ॥
भीष्मपितामह हो या गांधीजी या जनता संगत दोषी बना ही देता है इसीलिए सावधान रहे! कोई आपके लिए कोशिश कर रहा है साथ नहीं दे सकते तो कम से कम व्यंग बाण तो नहीं चलाइये।
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