आजादी के बाद से ही कांग्रेस या कांग्रेस विचारधारा के लोगों ने देश पर राज किया। 17 सालों तक नेहरू जी, 15 साल इंदिरा जी 5 साल राजीव जी 5 साल पी वी नरसिम्हाराव जी 10 साल तक श्रीमती सोनिया जी बाकि के लगभग 5 साल साल तक कांग्रेस की विचारधारा वाले चौधरी चरण सिंह, देवगौड़ा,गुजराल और चंद्रशेखर आदि। इतने लंबे समय से विपक्ष में नहीं रहने से इनमें सत्ता का सुख में अंधापन, ज्ञानहीनता, संवेदनहीनता और अनुभवहीनता स्पष्ट नजर आती है। अब जब जनता ने विपक्ष के लायक भी नहीं छोड़ा तो तिलमिलाहट होना स्वाभाविक है,मगर झुंझलाहट का अर्थ ये नहीं कि पप्पूगीरी चालू कर दी जाय विपक्ष अनुभवहीन है तो सीखना चाहिए अन्यथा सत्ता में वापसी क्या जनता में वापसी के लाले पड़ सकते है। कुछ विपक्ष के कारनामें गिनाता हूँ।
कांग्रेस के पुराने मझें हुए नेता बाबू दिग्विजय सिंह की भी मूर्खता विपक्ष के काम न आ सकी। कहते है इंसान अपने चाल चरित्र व्यवहार ज्ञान विज्ञान तर्क आदि के आधार पर ही बातें करता है बाबू दिग्विजय सिंह ने भी कुछ ऐसा ही किया। दिग्विजय सिंह चाची के प्यार में अंधे हो चुके थे उन्हें बहु बेटे नात समाज का कोई लोक लाज नहीं था। ऐसा व्यक्ति जब किसी लड़की के प्यार में फसता है तो सेक्स का भूत ही ऐसा होता है जिसके पास सात खूटे होते है, फंसते ही दो कान में, दो आँख में, दो नाक में ठूस देता है। फिर तो न दिखाई देगा न सुनाई देगा सब तो सब गन्दगी भी महसूस नहीं होगी सब में ख़ुसबु ही आएंगी। परन्तु जब सेक्स का भूत हटता है तो जाते जाते जो एक खूँटा बचा था वह कहा ठोकता है ये बताने की जरुरत नहीं लोग खुद ही समझदार है। उन दिनों कुछ ऐसे है हालात थे बाबू दिग्विजय सिंह के इसलिए इन्होंने मोदी जी की पत्नी का मुद्दा उठाया और हासिल क्या हुआ उल्टे इस मुद्दे से मोदी जी की सराहना ही हुई लोगों ने मोदी जी को त्यागी सन्यासी देश को पूरा जीवन समर्पित आदि समझने लगे। यहाँ भी विपक्ष को मुकी खानी पड़ी।
सोनिया जी के सपूत बचपन से ही बड़े लाड़ प्यार में पले बढ़े है, कभी दुःख देखना तो दूर दुःख किताबों में भी नहीं पढ़ा, जो कुछ भी चमचों ने दिखाया जैसे किसी कुटिया में खाना खिलाया, कही पर मिट्टी फिंकवाया, किसी का पैर छुववाया आदि। राहुल जी इसे ही गरीबी और देश की समस्या मान बैठे। एक तरफ अमीरी की पलँग दूसरी तरफ चमचों द्वारा दिखाई गई गरीबी की चादर, इसके सिवा जैसे देश में और कोई समस्या है ही नहीं, और भगवान ने शायद ज्ञान भी नहीं दिया कि परख सके कि ये गरीबी आखिर है क्यों? क्या वजह है कि आजादी के 70 सालों के बाद भी हर कोई आरक्षण की चाहत में जी रहा है। खैर इन सब अनुभवों के बीच राहुल जी का सवाल कि मोदी जी लाखों का सूट पहनते है स्वाभाविक है क्योंकि राहुल ने तो सूट देखें है, या फटी हुई चादर, बीच का सारा हिस्सा तो नदारत है, तो ज्ञान होगा कैसे? उन्हें ये भी ख्याल नहीं कि उनके पूर्वजो का सूट विदेशों से धुलकर आता था, कॉलेज में जितने गेट होते थे उतनी गाड़िया खड़ी होती थी, नेहरू जी को पिकअप करने के लिए। भूल गए कि प्रधानमंत्री की कुछ मर्यादाएं होती है, जिसे विदेशों में मुफ़्त लुटाया नहीं जा सकता। सवा सौ करोड़ का प्रतिनिधित्व करनेवाला जब साठ करोड़ के प्रतिनिधित्व करनेवाले से मिलेगा तो इस बात का ख्याल होना स्वाभाविक है, वर्ना भारत को भिखारी बनाने वालों का ख़्वाब तो पूरा होता नजर आएगा! जिसे मोदी जी ने होने नहीं दिया और देश के गौरव की खातिर एक साधारण से सन्यासी ने लाखों का सूट धारण किया, और भारत के स्वाभिमान को चार चाँद लगाया। यह भी कांग्रेस का दाव उल्टा पड़ा, पढ़े लिखे बुद्धजीवियों के बीच! और लोगों ने मान लिया बचवा अभी नादान है, भगवान ज्ञान दे!
राहुल तो नादान है बच्चा है लेकिन मणिशंकर अय्यर तो खेले खाये पुराने कांग्रेसी है इनमें तो थोड़ी बुद्धि होनी चाहिए! परन्तु क्या करेंगे कहा है विनाश काले विपरीत बुद्धि! कोई मुद्दा नहीं मिला तो बोले चाय बेचने वाले को प्रधानमंत्री नहीं बनने दूँगा। मोदी चाहे तो कांग्रेस के दफ़्तर के बाहर चाय बेच सकते है। ये वही मणिशंकर है। हाँ हाँ वही जो पाकिस्तान में जाकर बोले कि "मुझे पाकिस्तान सबसे प्रिय देश लगता है। मैं चाहता हूँ कि पाकिस्तान और भारत की मित्रता आगे बढ़े इसके लिए भारत हर कीमत चुकाने को तैयार है। कश्मीर तो एक छोटी समस्या है, ये तो पलक झपकते हल हो जाएंगी, बस मुझे सत्ता में आने के लिए आप लोग मुझे मदत दे!" अब यदि ऐसा व्यक्ति जो सत्ता के लिए पाकिस्तान से मदद मांग सकता है, उसकी औकात का अंदाजा आप तो लगा ही सकते है, कि समय आने पर वह क्या गुल खिलायेगा। खैर इतने गिरे लोग भारत में पैदा ही कैसे हो जाते है यह भी सोचने का विषय है, परन्तु इतने दिनों तक कांग्रेस के शासन ने ऐसे ही लोगों को प्राथमिकता दी गई, यह बात तो प्रमाणित होती है।
इन पुराने नेताओं के बीच नए नेता दिल्ली के सी एम केजरीवाल से लोगों ने बड़ी उम्मीदें बाँध रखी थी कि ये नया है कुछ न कुछ नया करेगा। वैसे तो पढ़े लिखे लोगों ने समझ लिया था कि ये बेवकूफ बना रहा है जनता को क्योंकि इसने जब अन्ना जी की बातें नहीं सुनी तो जनता की क्या खाक सुनेगा? फिर भी जनता तो जनता होती है लोगो ने जो निर्णय किया शायद वह समयोचित भी था अगर ये केजरीवाल जनता को धोखा नहीं देता तो। जो मुद्दे इसे उठाने चाहिए थे जैसे भ्रस्टाचार मुक्त भारत, स्वराज, आदर्श व्यवस्था, बेरोजगारी, अशिक्षा आदि वे मुद्दे सरकार उठा रही है या सरकार को समर्थन देने वाले लोग। ये तो कभी मोदी जी हर घंटे कुर्ता बदलते है, कभी इतना विदेश यात्रा क्यों करते है, कभी मोदी जी की डिग्री फर्जी है आदि आदि। लोगों ने सोचा था ये पढ़ा लिखा है,समझदार है, ईमानदार है अनशन करके इसने परिश्रम और जनून लगन का भी परिचय दिया है। तो भविष्य में अच्छा ही करेगा। मगर पप्पू तो पप्पू ये तो उसका पप्पा निकला। अब बात ये है कि इन चोचले बाजी वाली बातों से मनोरंजन तो हो सकता है, मगर लोगों के पेट नहीं भर सकते, देश को प्रगति नहीं मिल सकती, भारत कभी विष्व पटल पर अपना वर्चस्व कायम नहीं रख सकता। ऐसे में मोदी सरकार और समर्थकों का उत्तरदायित्व और भी बढ़ जाता है जब विपक्ष दिशाहीन अनुभवहीन विवेकहीन हो चूका हो।
दिशाहीनता के बीच कुछ शातिर लुटेरों ने समझ लिया है कि मोदी सरकार को सत्य मार्ग पर चलकर लताड़ा नहीं जा सकता। ईमानदारी पर चुनौती नहीं दिया जा सकता। परिश्रम लगन जनून तो जनता देख ही रही है। अब देश की किस नेता को पड़ी है सबको तो अपनी अपनी कुर्सी चाहिए! फिर एक ही रास्ता बचता है कि कुनबा जोड़ा जाय। इन दिनों खूब चर्चा है बिहार में मिली बीजेपी की हार का, लुटेरों के बीच आशा जगी है कि कुनबा जोड़ कर मोदी को सत्य मार्ग से बिचलित किया जा सकता है। इसीलिए पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट और कांग्रेस एक हुए और आने वाले दिनों में ऐसे प्रयोग और अधिक मिलेंगे मगर अब जनता को सोचना है कि कुनबा चाहिए या अपनी बंसजो का स्वाभिमान सम्मान और भविष्य आदि।
जय हिन्द!
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