विवेकानंद जी का विश्व प्रसिद्ध भाषण स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। स्वामी विवेकानंद का जब भी जिक्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। विवेकानंद का भाषण... अमेरिका के बहनों और भाइयों... आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूँ । मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी है जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ , जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूँ , जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इजराइलियों की पवित्र स्मृतियाँ संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ , जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयों , मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियाँ सुनाना चाहूँगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है ; जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियाँ अंत में समुद्र में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं। वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है - जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुँचते हैं। सांप्रदायिकताएँ, कट्टरताएँ और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।
-स्वामी विवेकानंद।
Tuesday, 31 May 2016
जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं।
जिंदगी में सदैव संकल्प नहीं विकल्प बदले जाते है।।
गलती निकालने के लिए भेजा चाहिए..परन्तु
गलती कबूल करने के लिए कलेजा चाहिए।
प्यार में सबसे बड़ा खुशनसीब वह जो झुक जाए
और सबसे बड़ा बदनसीब वह जो अकड़ जाए।
बीते कल का अफ़सोस और आनेवाले कल की चिंता
दो ऐसे चोर हैं जो हमारे आज की ख़ूबसूरती को चुरा ले जाते हैं।
क्रोध करने का मतलब है दूसरों की गलतियों की सज़ा स्वयं को देना।
जीत और हार आपकी सोच पर ही निर्भर करता है
मान लिया तो हार होगी ठान लिया तो जीत होगी।
किसी के गुणों की प्रशंसा करके अपना समय नष्ट मत करो !
बल्कि उसके गुणों को खुद अपनाने की कोशिश करो !
सीढ़ियां उन्हे मुबारक हो जिन्हे छत तक जाना है !
मेरी मंज़िल तो आसमान है रास्ता खुद मुझे बनाना है!
जब बिल्कुल अंधकार होता है, तब इंसान सितारे देख पाता है ।
फ़ितरत सोच और हालातों में फर्क है, अन्यथा इंसान कैसा भी हो मगर दिल का बुरा नहीं होता।
जीवन में सबसे बड़ी ख़ुशी उस काम को करने में है, जिसे लोग कहते हैं कि तुम नहीं कर सकते!
परिंदों को मिलेगी मंज़िल यक़ीनन ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं ।
जो लोग रहते हैं खामोश अक्सर ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं।।
हमेशा छोटी-छोटी गलतियों से बचने की कोशिश किया करें !
क्योंकि इंसान पहाड़ों से नहीं पत्थरों से ठोकर खाता है।।
अपने उद्देश्य को पाने के लिए संघर्ष करना निष्क्रिय रहने से कहीं अधिक बेहतर है ।
जीते जी के झगडे हैं ये तेरा है ये मेरा है, जब चले गए दुनिया से तब न कुछ तेरा है न मेरा है ।।
जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है, वह शक्तिशाली होकर भी कायर है और विद्वान होकर भी मूर्ख है।।
बेहतरीन इंसान अपनी मीठी जुबान से ही जाना जाता है, वर्ना अच्छी बातें तो दीवारों पर भी लिखी होती हैं ।।
शौक नही है हमे मशहुर होने का...पर क्या करे...इस चेहरे का, जिसे लोग देखते ही पहचान लेते है !..
मुस्कुराओ...!!
क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है, और मुस्कुराकर कहे गए बुरे...शब्द भी अच्छे लगते है।।
मनुष्य अपने अभाव से इतना दुखी नहीं है;
जितना दूसरे के प्रभाव से दुखी होता है।।
जिंदगी में सदैव संकल्प नहीं विकल्प बदले जाते है।।
Sunday, 29 May 2016
दोनों में से अगर मूद ली किसी ने भी आँखे। रुठने वाले जरा सोच फिर पछतायेगा कौन।।
रुठने वाले तो भगवान से रूठ जाते है।
रुठने वाले पता नहीं क्या मजा पाते है।।
मगर तुम रूठो और मैं रूठूँ पर मानाने में।
हर पल रूठना आसान है इस ज़माने में।।
कैद कर लेता है जब अपनी वफाओ में।
गलफहमी छोड़ देता बहकी फिजाओ में।।
मगर हवा का रुख कुछ अजीब सा होता।
दोस्त सदा हँसता और रुठने वाला रोता।।
बीत जाएंगे पचपन तब शुरू होगा बचपन।
घर आयेंगे जो मेरे पूछेगें सिर्फ एक सवाल।।
अब स्वास्थ कैसा है और बच्चे क्या करते।
कोई ना पूछे पूंजी या गाड़िया कितनी रखते।।
फिर गलतफहमी किस लिए दोस्त है करते।
थोड़ी सी लालच में दोस्ती भूल धन पे मरते।।
नाकाम खुद होते मगर ईर्श्या दोस्तों से करते।
छोटी छोटी अनकही बातें दिल पर धरते।।
हठ में सदा कुघात होता उस पर जो सगा।
क्या बिगाड़ लोगें उसका जो प्यार में भगा।।
हठ से जीत भी जाओ तो जहाँ में हारा कौन।
जितने वाले सोच तुम्हें दुनिया में प्यारा कौन।।
जीत में मिलने से कही अधिक गवां तो न दोगे।
दुःखी कर उसको जीत का कैसे बदला लोगे।।
सोचों तुम रूठे हम रूठे तो मनायेगा कौन।
अपने खेल में अहंकार को हराएगा कौन।।
दोनों में से अगर मूद ली किसी ने भी आँखे।
रुठने वाले जरा सोच फिर पछतायेगा कौन।।
Friday, 27 May 2016
इसलिए प्यास ऐसी ना लगे कि जहर मिला पानी पी जाओ। मंजिल छोड़ कर्तव्य चुन और हमसफ़र संग जी जाओ।।
हर कोई परेशान है हैरान है मंजिल की चाह में।
एक दूसरे से धक्का मुक्की करता रहता है राह में।।
हमसफ़र के चक्कर में सफलता छोड़ने की चाह नहीं।
भीड़ बहुत है इस ज़माने में मगर निकलने की राह नहीं।।
चाहत लगी है गजब की यारों मगर दिल में प्यार नहीं।
लगन लगी है अजीब सी मगर मिलता कोई यार नहीं।।
अगर उसका हाथ पकड़ो तो है मंजिल छूटने का डर।
अगर वो नहीं है साथ में तो मंजिल पाकर भी है बेखबर।।
अजीब सी कसमकस है इस सफलता के दीवानों को।
वें छोड़ने पर आमादा है इस वक्त भीड़ के परवानों को।।
कहते है मेरे दिल में प्यार है मगर दीवानगी नहीं।
समझने का फेर है उनमें, जिनमें है मरदानगी नहीं।।
सफलता वो है जिसमें खूब जबरजस्त बेवफाई है।
पाने वाला भी हरजाई है और न पाने वाले की तन्हाई है।।
मंजिल का क्या ये मिल जाती है तो वो छूट जाती है।
मगर जो छोड़ आये वो चली गई फिर कभी नहीं आती है।।
पहुँचकर मंजिल पे अनजान सा बेजान हुआ जाता है।
बिना हमसफ़र के इस दुनियां में कुछ भी नहीं भाता है।
इसलिए प्यास ऐसी ना लगे कि जहर मिला पानी पी जाओ।
मंजिल छोड़ कर्तव्य चुन और हमसफ़र संग जी जाओ।।
मंजिल आज ये कल वो होगी उसके लिए बरबाद ना हो।
उस बेरुख़े इंसान को ना देख जो जीवन में आबाद ना हो।।
कर्तव्य सदा साथ रहेगा जीवन और मरण के बाद भी।
सफलता की क्या है जो मंजिल पाकर होता अनाथ भी।।
आएगा एक दिन वो जब चार कंधो पर उठ जायेगा।
तेरी मंजिल या सफलता नहीं किया हुआ ही रुलाएगा।।
आगे सफ़र है पीछे हमसफ़र यदि चलूँ तो हमसफ़र रूठे।
तू ही बता मेरे ऐ दोस्त क्या करूँ यदि ना चलूँ तो सफ़र रूठे।।
ऐ दोस्त किसने कहा कि मत चल चल मगर बेरुख़े ना बन।
सपूत जुटाए और कपूत उड़ाए फिर तू सनचत का धन।।
रही बात मंजिल की तो मंजिल इतनी छोटी ना कर।
आज ये रही कल वो सही इस घाट से उस घाट जाकर।।
जब समझे अपनी असली मंजिल तो बहुत देर ना हो जाए।
जीवन भर आधी छोड़ पूरी पर दौड़े आधी रही न पूरी पाये।।
Thursday, 26 May 2016
प्रतिदिन ऐसा क्या करें कि बाधाएं न आएं।
सत्य को कहने के लिये किसी सपथ की अवश्यकता नहीं होती।
याद रखें, पानी बहने के लिए खुद पे खुद रास्ता तलाश लेता है।।
जो लोग चलते है इस ज़माने में अपने मजबूत इरादों पर।
उन्हें अपनी मंजिल पाने के लिए किसी रथ की जरुरत नहीं होती।।
फिर भी इन मंत्रो से रास्ता आसान होता है।
प्रतिदिन स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र। संग्रह
प्रात: जागते ही दोनों हथेलियों का दर्शन करते हुए इस मन्त्र को बोलें।
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥
पुनः पृथ्वी का चरण स्पर्श कर, "पृथ्वी क्षमा प्रार्थना" करते हुए पृथ्वी पर पैर रखें।
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥
इसके बाद त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण करें!
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
और अपनी दिनचर्या प्रारम्भ करे! दिनचर्या के बाद जा स्नान करने लगे तो "स्नान मन्त्र" बोलें!
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥
इसके बाद 'सूर्यनमस्कार" मन्त्र बोलते हुए सूर्य नमस्कार करे और सूर्य भगवान को जल अर्पण भी करें!
ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥
ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥
इस प्रकार ईश्वर आपका दिन मंगलमय करें! जब रात्रि में दीप जलाएं तो "दीप दर्शन" मन्त्र का उच्चारण करें!
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥
इसके अलावा यदि आपके पास समय है और पूजा कर सकते है एकाग्रचित्त होकर तो निम्न मंत्रों का प्रयोग कर सकते है।
गणपति स्तोत्र
गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।
विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।
लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥
आदिशक्ति वंदना
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
शिव स्तुति
कर्पूर गौरम करुणावतारं,
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥
विष्णु स्तुति
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
श्री कृष्ण स्तुति
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्॥
श्रीराम वंदना
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
श्रीरामाष्टक
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥
एक श्लोकी रामायण
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥
सरस्वती वंदना
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्याऽपहा॥
हनुमान वंदना
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥
स्वस्ति-वाचन
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
शांति पाठ
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
महत्वपूर्ण प्रकिया है भगवान तो मात्र उद्देश्य है यदि प्रकिया नहीं होगी तो भगवान की प्राप्ति भी असंभव है।
"धर्म प्रक्रिया है और ईश्वरीय तत्व की प्राप्ति उसका उद्देश्य, ऐसे में, महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए, धर्म की प्रक्रिया या उद्देश्य ?
परिवर्तन ही इस संसार का परम सत्य है, इसके अलावा सत्य के सभी प्रारूप, समय के सापेक्ष होते हैं। चूँकि समय के घर्षण से जीवन मूल्यों, और सिद्धांतों की ऊपरी सतह धूमिल हो जाती है, इसीलिए समय के साथ उनमें परिवर्तन भी आवश्यक हो जाता है। अतः यह संभव है की समय के संक्रमण से धर्म की समझ भी विकृत (दूषित) हो जाए।
विकृत धर्म की समझ से संभव है कि ईश्वर में भी विकार दिखे, इसलिए यह जानना आवश्यक है की, हो सकता है समय के संक्रमण और समझ की विकृति के कारण धर्म की परिभाषा सत्य न रहे पर हर परिस्थिति में सत्य ही धर्म होता है। ऐसे में, स्वयं की सत्यता का ज्ञान महत्वपूर्ण हो जाता है।
यही कारण है की समय समय पर जीवन ने नए धर्म को जन्म दिया परन्तु ईश्वर हमेशा एक ही रहा है।
जीवन के लिए धर्म के अनुसार ईश्वर को जानना एक विकल्प है, परन्तु अगर जीवन ईश्वरीय तत्व को प्राप्त कर लें तो, उसे स्वभाविकतः धर्म का वास्तविक ज्ञान भी हो जाता है , ऐसे में, सवाल यह उठता है की बिना धर्म को जाने ईश्वरीय तत्व की प्राप्ति कैसे संभव है?
इस जटिल प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए समझ से अधिक संवेदनाएं महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि समझ ज्ञान पर आधारित होता है, जबकि संवेदनाएं जीवन के लिए सहज व स्वाभाविक। आखिर दिव्यता के अनुसरण के लिए ज्ञान के तर्क निर्णायक होते हैं, परन्तु दिव्यता की अनुभूति के लिए, अंतरात्मा की स्वीकृति और उसके प्रति समर्पण। जिसे साधारणतः भक्ति कहा जाता है।
क्यों न आज धर्म के अनुसार ईश्वर की व्याख्या करने के बजाये उस ईश्वरीय तत्व की अनुभूति कर धर्म को पुनः पारिभाषित किया जाए। संभव है, किया जा सकता है और आवश्यक भी क्योंकि जब तक हम ईश्वरी तत्व को अपनी समझ से जड़ बना देंगे उन्हें अपने कर्मों द्वारा यथार्थ में जीवंत रूप प्रदान कर पाना कठिन होगा !
Wednesday, 25 May 2016
मोदीजी ने कौन सी कम ख्याति हासिल की है? मगर हे साधू ख्याल अच्छा है कि हर सफल व्यक्ति के पीछे एक नारी का सहयोग होता है।
मोदीजी ने कौन सी कम ख्याति हासिल की है? मगर हे साधू ख्याल अच्छा है कि हर सफल व्यक्ति के पीछे एक नारी का सहयोग होता है, मगर दिल में यदि संकल्प हो तो विकल्प की कोई कमी नहीं और जब विकल्प हो ढेरों सारे तो सफ़लता मिलने में मुश्किल ही क्या है? पत्नि हो या कोई अन्य पराया नारी, जो कोई भी संकल्प मार्ग को बाधित करेगा, उसे दरकिनार करना संकल्पी को आता है। परन्तु एक बार मोह माया के चक्कर में जो पड़े बच्चू! तो इतना आसान भी नहीं दरकिनार करना, और ऊपर से बीबी और परिवार की जरूरतें, एक विकराल रूप लिए और भी बाँधे रखती है, और हो भी क्यों नहीं यही तो है गृहस्थ जीवन, वर्ना हर कोई बन जायेगा पी एम। चलो पी एम नहीं सही परन्तु परिवार को खुश रखना इतना आसान भी नहीं किसी के कपड़े पुराने हो गए किसी की गाड़ी, किसी के गहने, किसी का मोबाइल लैपटॉप, कही घर में रहने को कमरे छोटे पड़ रहे, तो किसी को अटती नहीं रोटी दाल। दोस्त बोलते तू तो हो गया मतलबी यार, क्या हो गया है तुझे जो तेरे चेहरे से गायब है पूरा बहार। अब मोह माया में फसा वेचारा, करे तो क्या करे फिर तो बोलना ही पड़ता है कि "हर सफल व्यक्ति के पीछे किसी न किसी औरत का हाथ अवश्य होता है।" मक्खन पॉलिस जो करना है वर्ना घर का सकून भी लुट जायेगा। परन्तु चिंता नहीं करें! बाधाओ से मुक्ति ले! सफलता और विफलता की परवाह किये बगैर आगे बढ़ें! यदि नहीं बढ़ना है तो एक पति और पत्नि का थोड़ा झगड़ा पढ़ें फिर अगली बात।
पति जब बोलता है अजी सुनती हो क्या?
पत्नि- नहीं ... मैं तो जनम कि बहरी हूँ ।
पति- मैंने ऐसा कब कहा ?
पत्नि- तो अब कह लो, पूरी कर लो एक साथ, कोई भी हसरत अधूरी क्यों रहे ?
पति- अरी भाग्यवान!!
पत्नि- सुनो एक बात.... आइन्दा मुझे भाग्यवान तो कहना मत , फूट गए नसीब मेरे तुमसे शादी करके और कहते हो भाग्यवान.हुह..।
पति- एक कप चाय मिलेगी?
पत्नि- एक कप क्यों? लोटा भर मिलेगी और सुनो .... किसको सुना रहे हो ? मैं क्या चाय बना के नहीं देती ?
पति- अरे यार कभी तो सीधे मुह बात ...
पत्नि- बस .... आगे मत बोलना. नहीं आता मुझे सीधे मुँह बात करना.... मेरा तो मुँह ही टेढ़ा है , यही कहना चाहते हो ना ?
पति- हे भगवान...!
पत्नि- हाँ ... माँग लो भगवान जी से एक कप चाय ।
मै चली नहाने, और सुनो मुझे शैम्पू भी करना है.... देर लगेगी.....बच्चों को स्कूल से ले आना .... मेरे अकेले के नहीं हैं ..।
पति- अरे ये सब क्या बोलती हो ?
पत्नि- क्यों झूठ बोल दिया क्या ? मैं क्या दहेज़ में ले कर आयी थी इनको ?
पति- अरे मैं कहाँ कुछ बोल रहा हूँ ?
पत्नि- अरे मेरे भोले बाबा, तुम कहाँ बोलते हो ? मैं तो चुप थी .... बोलना किसनेशुरू किया ? बताओ ...?
पति- अरे मैंने तो एक कप चाय मांगी थी।
पत्नि- चाय मांगी थी या मुझे बहरी कहा था ? क्या मतलब था तुम्हारा ? "अजी सुनती हो ..... ? क्या मतलब था बताओगे ?
पति- अरे श्रीमती जी...कभी तो मीठे से बोल लिया करो।
पत्नि- अच्छा...?. मीठा नहीं बोली मैं कभी ? तो ये दो दो नमूने क्या पड़ोसी के हैं. ? देख लिया है मीठा बोल कर....। बस अब और मीठा बोलने कि हिम्मत नहीं है.।
पति- भूल रही हो मैडम ।
पत्नि- क्या भूल रही हूँ..?
पत्नि- अरे मुझे बात तो पूरी करने दो. मैं कह रहा था कि पति हूँ तुम्हारा...
पत्नी- अच्छा ..... मुझे नहीं पता था, सूचना के लिए धन्यवाद।
पति- अरे नहीं चाहिए मुझे तुम्हारी चाय... बक बक बंद करो।
पत्नि- अरे वाह!! तुम्हे तो बोलना भी आता है ? बहुत अच्छे....चाय पी के जाओ.... बाद में नहा लूँगी।
पति- गज़ब हो तुम भी.... पहले तो बिना बात लड़ती हो फिर बोलती हो पी के जाओ।
आपने बचपन में कुश्ती लड़ी होगी, या नहीं लड़ी होगी तो मैं बताता हूँ। कुश्ती में सिखाने वाले को उस्ताद बोलते है, उस्ताद कुश्ती सिखाते या लड़ाते वक्त गर्दन के पिछले हिस्से पर रंदा यानि हाथो से मारता है, उसका मकसद होता है कि सागिर्द की बुद्धि कम हो जाय, ताकि शरीर का तेजी से विकास हो, जो कुश्ती के लिए उपयोगी है। ठीक उसी तरह से मोह माया भी अपने ग्रिप कब्ज़े में लेने के लिए आपकों झुकाती है, बार बार जलील करती है, तब तक जलील करती है, जब तक आप माया मोह से भागने को तैयार नहीं हो जाते, जैसे ही वह देखती है कि बन्दा अब हाथ से निकला तो तुरन्त अपनी चाल बदल फिर पकड़ मजबूत करती है। जैसे पत्नि ने किया जब देखा पति अब जानेवाला है तो तुरन्त चाय देने के लिए तैयार हो गई। खैर घर गृहस्थी में इसे नोक झोक ही समझे तो बेहतर होगा।यह बात समझना और समझाना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल है याद रखना, क्योंकि जब तब आप मेरे साथ हो तब तक ही यह याद रहेगीं, यही सांसारिक रीती है, वर्ना सफलता हर किसी के नसीब में लिखा होता है, बस सफल होना कोई कोई ही जानता है। मगर एक बात अवश्य याद रखें किसी का नक़ल करने से अकल नहीं होता। न ही आप मोदी जी की नक़ल कर पी एम बन सकते है उसके लिए आप को वही करना है आप जो हो वर्ना आधी छोड़ पूरी पर धाये, आधी बची न पूरी पाये। अब आप ऊब रहे होंगे मगर मैं जो बोलना चाहता हूँ वह आपको पता है, क्योंकि मूर्तिकार मूर्ति बनाता नहीं,सिर्फ मूर्ति पर चढ़े अनावश्यक पत्थर हटाता है, मूर्ति तो पत्थर के अन्दर विद्यमान होती है।
बचपन भी अजीब था पैदल ही स्कूल जाता था वो मोटे मोटे बैग लेकर सोचता था, पिताजी अगर एक साइकिल खरीद देते तो मुश्किल आसान हो जाती, जब साइकिल मिल गई तो दिल में ख्वाइशें बढ़ी सोचने लगा साइकिल चलाकर थक जाता हूँ यदि मोटर साइकिल मिल जाती तो, पढ़ाई और अच्छी तरह करके बोर्ड टॉप करता। मोटर साइकिल तो मिल गई मगर बोर्ड टॉप क्या जिन्दगी भी टॉप नहीं हुई। खैर इन्ही बदलती मंजिलों के साथ, मोटर साइकिल से चलने में धूप वर्षात का सामना करना पड़ता था। सोचा कार खरीद लेता तो मुश्किलें आसान हो जाती। ईश्वर ने सुनी कार भी आ गई। कार में चलते चलते थकावट सी महसूस होती थी, जब कभी दूरी अधिक बढ़ जाती थी। फिर तो क्या अधिक दूरी के लिए प्लेन से चलने लगा, मगर इंसान की ख्वाइशें भी मंज़िले भी क्या अजीब होती है। ऊपर प्लेन से देख सोचता था काश समय मिलता तो पैदल थोड़ा घास पर चलता, तो स्वास्थ बेहतर होता। बस ऐसी ही कुछ मंजिलों में अटका मानव यही नहीं समझ पा रहा कि उसे करना क्या है? हां हां लक्ष्य नहीं चुनें! चुनना है तो चुनें, कि आप को करना क्या है? आप क्या कर सकते है जो नहीं कर रहे है? मंजिलों का क्या दौर, इनके चक्कर भी अजीब है, इनमें उलझने से कुछ हासिल होने वाला नहीं। बस आप अपना कर्तव्य चुनें!