यदि कोई मुर्ख हो तो उसे आसानी से सिखाया जा सकता है परन्तु लालची से दूर रहना ही तर्क संगत है। इसलिये हे प्रिय एक बार पढ़ें और ग़ौर करें आपका उद्धार आप स्वंग कर सकते है।
हर किसी को माइंडसेट बोल देने मात्र से वह बुरा मान जाता है परन्तु अनुभव की रूढ़िवादिता हमें हमारे देश को सदैव बाधित कर रही है। विकसित देशों से यदि सीख लें तो सबने innovations को अपनाया परन्तु हम लालच स्वार्थ मोह से आगे बढ़ने को तैयार नहीं क्यूँ...?
"अनुभवहीनता ही नए की खासियत होती है; जो नया है वह स्वभाविकतः अनुभवहीन होगा और जो अनुभवी है वह तो नया हो ही नहीं सकता, ऐसे में, जब तक हम अनुभव को आधार बनाकर नयी संभावनाओं को निरस्त करते रहेंगे, हम कुंठित रहेंगे।
सीढ़ी चढ़ने की प्रक्रिया में भी जब तक हमारे कदम पिछली सीढ़ी से चिपकी रहेगी, हम ऊपर नहीं बढ़ सकेंगे; वर्तमान की परिस्थिति भी कुछ ऐसी ही है, समस्याएं नयी हैं और हम पारम्परिक शैली के इतने अभ्यस्त हो चुके हैं की नयी संभावनाओं से भी प्रतिरक्षित हैं।
जीवन में साँस लेना अतिआवश्यक है परन्तु जब तक पहली साँस नहीं छोड़ेगे दूसरी कभी नहीं आएगी।
आरक्षण को आत्मनिर्भरता का पर्याय मान लेना समझ की गलती है फिर उसके प्रयोग का सन्दर्भ जाती हो या लिंग हो, वह तो एक प्रावधान था जिसके उचित प्रयोग से समाज के पिछड़े, शोषित व असहाय वर्ग को समाज की मुख्य धरा से जुड़ने का अवसर प्रदान करना था, परन्तु जब से राजनीति ने आरक्षण को सत्ता प्राप्ति का हथियार बनाया, समाज उस प्रावधान के व्यापक परिणाम से भी वंचित होता जा रहा है , ऐसे में, आरक्षण की समीक्षा भला क्यों न हो ?
अगर छ दशकों से अधिक समय तक आरक्षण के प्रयोग से भी समाज के पिछड़े वर्ग को मुख्य धरा में नहीं जोड़ा जा सका , तो कहीं न कहीं कोई न कोई त्रुटि तो अवश्य ही है ! हाँ, आरक्षण की राजनीति ने भले ही कई नेताओं को जन्म ज़रूर दे दिया और इसीलिए आज भी अपने राजनीतिक भविष्य के लिए वो आरक्षण का प्रयोग भी कर रहे हैं।
हाँ, विविधताओं में एकता ही हमेशा से भारत की विशेषता रही है पर जब तक शाशन तंत्र विविधताओं के आधार पर अपनी योजनाओं का निर्माण करता रहेगा वह सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ती कर पाने में सदैव असक्षम रहेगा। हमारी एकता ही हमारी शक्ति है और इसीलिए सरकारी योजनाओं का निर्धारण भी उसी आधार पर होना चाहिए !
श्रिष्टि में विशिष्ट ही सामान्य है और यह इसलिए क्योंकि विविधतायें ही अपनी विशिष्टता से श्रिष्टि को सम्पूर्णता प्रदान करती है, ऐसे में, विविधताओं को स्वीकार करने के बजाये उनसे शिकायत करना और उन्हें समझ के अनुसार समानीकरण की प्रक्रिया में झोंक देना मूर्खता नहीं तो और क्या है ?
कभी फ़ुरसत मिले तो उनके बारे में सोचें जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं और तन ढकने के लिए दूसरों के रहमो करम पर आश्रित है। उनका क्या दोष? परन्तु यदि हमारे स्किल से अमेरिका रूस जापान आदि प्रभावित हो सकता है तो हम अपने स्किल को मात्र आरक्षण के आधार पर क्यों विदेशों में बिकने दे! क्यों न हम उसे रोकने का प्रयास करें।
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