ये आवश्यक नहीं हर सफल व्यक्ति ज्ञानी विद्वान बलशाली योद्धा ही हो,सफलता वेवकूफ़ो और निर्बलों को भी मिलती है,सिर्फ प्रयास करो!!
सफलता की पहली वजह:-
एक बार गांव में लल्लू चाचा की लाटरी लग गई, लाख दो लाख नहीं पुरे दस करोड़ हाँ हाँ पूरे दस करोड़ अब चाचा के क्या कहने ऐ डिंग पर डींग दिए जा रहे थे गांव के लोग कुछ दर्शन कर रहे थे कुछ बड़ाई तो कुछ चमचागिरी,अब मानो लल्लू चाचा की लाटरी नहीं राज हो गया हो, आये दिन कभी अखबार वाले तो कभी टीवी वाले रोज रोज इंटरव्यू ले रहे थे,एक दिन एक पत्रकार ने पूछा चचा आपको कैसे पता चला कि यही नम्बर की लाटरी निकलने वाली है।
चचा ने बड़े गर्व के साथ अपनी मूँछो पर ताव दिया और दम्भ भरते हुए बताया कि लाटरी का टिकट लेने से पहले उन्होंने बजरंगबली का नाम लेकर एक चुटकी चावल निकाला और गिना तो पूरे 23 चावल थे, फिर दुबारा दूसरी चुटकी निकाला तो अबकी 17 चावल ही हाथ लगे फिर का दोनों को जोड़ दिया हो गया 38 अब दुकान वाले से बोला भाई जिस टिकट के आखिर में 38 हो वही टिकट दे दो और मैंने टिकट खरीद लिया तो लग गई लाटरी।
पत्रकार बोला चाचा 23 और 17 का जोड़ तो 40 होता है फिर आपने तो गलत जोड़ा था। चचा बोले चल चल बावरे किसी और को गणित सिखा तेरे हिसाब से टिकट लेता तो कौन सी लाटरी लग जाती बेवकूफ कही का चला है चचा को गणित बताने तेरे जैसे कितने पत्रकारों को मैंने सिखा दिया और ये बुड़बक हमें सिखा रहा है।
सफलता का दूसरा तरीका:-
एक बार अकबर वीरबल बाहर घुमने निकले अकबर ने देखा सामने के खेत में बैगन फला हुआ था बैगन की सुंदरता देख अकबर ने वीरबल से कहा की वीरबल ये बैगन कितना बेहतरिन सुंदर दिखता है। वीरबल ने तुरंत कहा हा हजुर ये अति सुन्दर है ए शब्जियो का राजा है इसीलिए इसके सर पर ताज होता है,इसके रंग रूप चिकनाहट तो लाजबाब है और इसकी शब्जी खाने में अति सुन्दर होती है। तारीफ़ सुनते ही अकबर ने कहा ठीक है आज मैं इसी की शब्जी खाऊँगा।
शाम होते होते बादशाह के सामने शब्जी हाजिर हो गई शब्जी खाने के बाद जब अगले दिन अकबर का पेट फूलने लगा दर्द होने लगा तो अकबर ने वीरबल को बुलाया और कहा वीरबल मेरा पेट दर्द कर रहा है लगता है बैगन से नुकसान हो गया। वीरबल ने तुरंत कहा हजुर ये बैगन होता ही वायु विकारक इसीलिए इस शसुरे को बे-गुन बोला जाता है इसके खाने से ही पेट में गैस बनने लगती है।
अब अकबर ने सोचा बड़ी अजीब बात है बोला वीरबल कल तो इसी बैगन की बड़ी तारीफ कर रहे थे और आज बुराई गिना रहे हो तुमतो शाम कुछ सुबह कुछ बोलते हो। वीरबल ने कहा हा हजुर कर रहा था,मैं नौकर बैगन की नहीं हजुर का हूँ और मैंने कभी बैगन की तारीफ या बुराई नहीं की जो कुछ भी की वह हजुर की की।
आज इसीलिए दुनिया को प्रकृति को समझ पाना आसान नहीं।
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