आप सम्पन है स्मार्ट फोन यूज़ करते है परन्तु आप जो भी सपने देखते है बड़ी होशियार और चालाकी से इसे पूरा भी कर लेते है मगर इसमें कोई बुराई नहीं।
कभी आपने सोचा कि एक गरीब मध्यम वर्गीय किसान जो विजली नहीं मिलने से ठण्ड की रात हो या मई जून की गर्मी खेतों में जाकर फसल सींचता है। चीनी अच्छी लगती है सारे मीठी पकवाने बनती है मजा भी आता है खाकर, नाच कूद,शारीर दिखा, खेल कूद, ड्रामा करके लोगों का पेट नहीं भरा जा सकता परन्तु अहमियत इतनी जैसे सारी दुनिया इसी से चलती है।
एक समय की बात है प्याज के खेत में एक किसान अपनी पत्नी के साथ चिलचिलाती धूप में प्याज की दिन भर खुदाई करते हुए एक दूसरे से बातें कर रहे थे कि कल बच्चों के लिए कपड़े खरीदना है छुटकवा का तो चढ्ढी भी फट गई है, तुम्हारी साड़ी भी कितनी पुरानी हो गई है फटने भी लगी है कल एक साड़ी नई लेता आऊंगा.
पत्नी शरमाते मुस्कराते हुए बोलती है अरे नही जी..! ये तो अभी ठीक है..! आप तो अपने लिये कुछ सोचते ही नहीं हो, जब देखो बच्चों या मेरे लिए ही बोलते हो..! आपके पास जूते नहीं है ऐसा करना कि कल जूते ही ले लेना.!
शाम होते होते सारी प्याज बैलगाड़ी पर लाद कर जब रस्सी से बोरियां कसंते हुए बच्चों से खूब हँस हँस बोलता है अरे छोटुआ कल तुझे जलेबी खिलाऊगां, बच्चा बोलता है समोसे भी लाना, बस! कपड़े नहीं लेगा! हाँ लूँगा लेकिन पापा लाल रंग वाला..! और चप्पल, आप अपने लिए लेलेना मुझे बाजार थोड़े जाना होता है। पापा मैं भी चलु क्या आपके साथ बाजार? बेटा थक जायेगा तू अभी छोटा है और कल तू स्कूल भी नहीं जा पायेगा तुझे पढ़ लिख कर कलेक्टर बनना है मेरी तरह हल थोड़े ही चलाना है।
जब सुबह चार बजे रात से ही जागकर
किसान मंडी पहुँचता है। तो आढ़ती बड़े प्यार से चाय पिलाता है। गद्दी पर अपने साथ बैठाता है और हाल चाल पूछता है। किसान भी कुछ देर बातें करता है फिर मुद्दे की बात प्याज बेचने की करता है,तो आढ़ती बोलता है इन दिनों प्याज की मंदी चल रही है। किसान बोलता है सेठ बाहर फुटकर में तीस रुपये किलो बिक रही है, फिर आढ़ती बोलता है एक एक किलो बेचने में पुरे महीने लग जाएंगे और जो बेच रहा है वह दिनभर समय गवाता है उसकी दुकान है।
बेचारा किसान वो अपने माल की खुद कीमत भी नहीं लगा पाता।
आढ़ती उसके माल की कीमत,अपने हिसाब से तय करता हैं। बोलता है बारह रुपये किलो के रेट से लूँगा देना है तो दो नहीं कोई और मंडी देख लो! किसान बेचारा इधर उधर दोपहर दो बजे तक हाथ पाव मारता है प्याज न बिकते देख बारह रुपये किलो से ही बेचने पर मजबूत हो जाता है।
एक माचिस की डिब्बी पर भी उसकी कीमत लिखी होती है। बिस्कुट पर भी उसकी कीमत लिखी होती है। लेकिन किसान अपने माल की कीमत खुद नहीं कर पाता। खरीदते समय व्यापारी कभी किसान का हित नहीं अपना हित देखता है। जितना मर्जी में आये उतना बेवकूफ बनाता है, ऊपर से पुरे पैसे भी एक साथ नहीं देता बोलता है बाकि के दो दिन बाद ले जाना जब मॉल बिक जायेगा।
खैर..माल बिक गया लेकिन कीमत
उसकी सोच अनुरूप नहीं मिली!!
जब पेमेन्ट मिला तब वो सोचता है
इसमें से दवाई वाले को देना है, खाद वाले को देना है, अरे हाँ, अभी बिजली का बिल भी तो जमा करना है। सारा हिसाब लगाने के बाद कुछ बचा ही नहीं।
वो मायूस हो घर लौट आता है,बच्चे उसे बाहर ही इन्तज़ार करते हुए मिल जाते हैं।
"पापा.! पापा.!" कहते हुये उससे लिपट जाते हैं और पूछते हैं...!
"हमारे नये कपडे! जलेबी समोसे नहीं लाये..?"
पिता:–"वो क्या है बेटा..! कि बाजार में अच्छे कपडे मिले ही नहीं,दुकानदार कह रहा था इस बार दिवाली पर अच्छे कपडे आयेंगे तब ले लेंगे..!"
पत्नी समझ जाती है, प्याज कम भाव में बिकी है। वो बच्चों को समझा बुझाकर बाहर भेज देती है।
पति:–"अरे हाँ..! तुम्हारी साड़ी भी नहीं ला पाया..!"
पत्नी:–"कोई बात नहीं जी, हम बाद में ले लेंगे लेकिन आप अपने जूते तो ले आते..!"
पति:– "अरे वो तो मैं भूल ही गया..! चलो जूतों के बगैर कौन सी बारात फिरी जा रही है और अभी ससुराल थोड़े ही जाना है ।"
पत्नी भी पति के साथ सालों से है पति का मायूस चेहरा और बात करने के तरीके से ही उसकी परेशानी समझ जाती है, लेकिन फिर भी पति को दिलासा देती है। और अपनी नम आँखों को साड़ी के पल्लू से छिपाती रसोई की ओर चली जाती है।
फिर अगले दिन सुबह पूरा परिवार एक नयी उम्मीद , एक नई आशा एक नये सपने के साथ नई फसल की तैयारी के लिये जुट जाता है।
ये कहानी हर छोटे और मध्यम किसान की ज़िन्दगी में हर साल दोहराई जाती है।
हम ये नहीं कहते कि हर बार फसल के सही दाम नहीं मिलते।
लेकिन जब भी कभी दाम बढ़ें! मीडिया वाले कैमरा ले के मंडी पहुच जाते हैं और खबर को दिन में दस दस बार दिखाते हैं।
कैमरे के सामने शहरी महिलायें हाथ में बास्केट ले कर अपना मेकअप ठीक करती, मुस्कराती हुई, चटक मटक के साथ कहती हैं..। सब्जी के दाम बहुत बढ़ गये हैं जी हमारी तो रसोई का बजट ही बिगड़ गया.....। कभी अपने देखी है कि किसान किस तरह फसल पैदा करता है। वो किस तरह फसल को पानी देता है। दवाई से भरी हुई टंकी पीठ पर लाद कर छिङ़काव करता है, खाद की तगाड़ी सर पर उठा कर खेतों में घूम-घूम कर फसल को खाद देता है।
अघोषित बिजली कटौती के चलते रात-रात भर बिजली चालू होने के इन्तज़ार में जागता है।
चिलचिलाती धूप में सिर का पसीना पैर तक बहाता है।
ज़हरीले जन्तुओं बिच्छू साप आदि का डर होते भी खेतों में नंगे पैर घूमता है।
जिस दिन ये वास्तविकता आप अपनी आँखों से देख लेंगे, उस दिन आपके किचन में रखी हुई सब्ज़ी, प्याज़, गेहूँ, चावल, दाल, फल, मसाले, दूध
सब सस्ते लगने लगेंगे।
खैर सबको अपनी अपनी पड़ी है दुसरो की क्यों सोचे! लेकिन आजादी के इतने सालों के बाद मोदी सरकार ने किसानों का ख्याल किया बाजार जाने के बजाय बाजार किसानो के घर लाया बस नेट के जरिये भाव ताव कीजिये फिर मॉल बाजार में भेजिये। फसलों का बीमा करवॉए मौसम की मार से अपनी लागत और लाभ को बचाए आदि आदि।
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