Saturday, 30 April 2016

क्या अपने कभी सोचा है? कि शिक्षा का भगवाकरण आखिर कहते किसे है।

क्या अपने कभी सोचा है? कि शिक्षा का भगवाकरण आखिर कहते किसे है।

क्या इतिहास की विसंगतियों को दूर नहीं किया जाना चाहिए? क्या कम्यूनिस्टो द्वारा रचित ”आर्य विदेशी और और मुग़ल स्वदेशी” जैसा इतिहास पढाया जाना उचित और देशहित में है? क्या अत्याचारी मुग़ल आक्रांत अकबर को महान और शूरवीर महाराणा प्रताप को पथभ्रष्ट देशभक्त बताकर पुस्तको में पढाया जाना सही है? क्या ज्ञान-विज्ञान की भारतीय जानकारी छात्रों से छिपा कर रखनी चहिये? क्या सरकारी स्तर पर सर्वपंथ समभाव और सामाजिक स्तर पर सर्वपंथ समादर की भावना जागृत करना संप्रदायिकता भड़काना और भगवाकरण करना है? क्या यह सत्य नहीं है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात राधाकृष्णन आयोग 1948-49, कोठारी आयोग 1964-66, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1989, राममूर्ति समिति 1992 आदि सभी आयोगों व समितियों ने शैक्षिक प्रणाली को मूल्य आधारित बनाने की आवश्यकता का प्रतिपादन नहीं किया है? जिन तत्वों को शिक्षा के भारतीयकरण पर आपत्ति है, उन्हें किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए – आक्रामको, राष्ट्रद्रोही या विदेशी दलालो की?

राष्ट्रवादी शिक्षा का विरोध करने वाले लोग मुस्लिम मदरसों में दी जा रही मजहबी शिक्षा का विरोध क्यूँ नहीं करते? पश्चिम बंगाल में शिक्षा का पूरी तरह वामपंथीकरण कर देने वाले लोग ही भारतीयकरण का घोर विरोध कर रहे है | समस्त भारत की भाषाओ की माता और भारत की आत्मा की भाषा संस्कृत को पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप में शामिल क्यूँ नहीं होने दिया गया? और अब जब उसे वैकल्पिक विषय के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने के प्रयास हो रहे है तो इस पर आपत्ति और शोर क्यूँ मचाया जा रहा है? क्या नेहरु जी जैसे घोर भौतिकवादी व्यक्ति ने भी शिक्षा के आध्यात्मिकरण की आवश्यकता को स्वीकार नहीं किया था? आध्यात्मिकता की बात इस देश में भले ही कुछ लोगो को अच्छी न लगे, लेकिन पश्चिमी देश उसके लिए भारत की ओर देख रहे है | संस्कृत सिखाने वाले विश्वविद्यालयो की संख्या विदेशो में लगातार बढ़ रही है | इसलिए जब तक भारत में कौटिल्य का अर्थशास्त्र, शुक्राचार्य की नीतियाँ, वाल्मीकि और व्यास रचित रामायण, और राजशास्त्र की उपेक्षा की जाती रहेगी, तब तक भारतवासियों को आत्मगौरव का अनुभव नहीं होगा |

एक बाइबिल, एक कुरान को आधार बनाकर दुनिया में सैकड़ो विश्वविद्यालय है – जहां लाखो अध्यापक, विद्यार्थी और शोधकर्ता लम्बे समय से लगे हुए है | दूसरी ओर हिन्दू परंपरा में असंख्य गुरु-गंभीर, दार्शनिक ग्रन्थ है – वेद, उपनिषद् पुराण आदि, किन्तु इनके अध्ययन के लिए एक विश्वविद्यालय तो छोड़िये, कायदे का एक विभाग भी कोई नहीं जानता | यदि कोई शिक्षा-शास्त्री इस विकृति को ठीक करने की बात कहे तो उसे संप्रदायिकता से ग्रस्त बताया जाता है | यह हिन्दू विरोध नहीं तो और क्या है?

क्या यह सच नहीं है कि यह हमारी अब तक की शिक्षा प्रणाली और पाठ्यक्रम का ही दोष है कि बहुत से छात्र परिक्षाओ में विफल रहने के कारण आत्महत्या तक कर लेते है? छात्रों की ज्ञानात्मक, विज्ञानात्मक, भावात्मक, आध्यात्मिक और तथ्यपरक इतिहास की दृष्टि को पुष्ट करना यदि शिक्षा का भगवाकरण करना है तो इस भगवाकरण को शत-शत नमन क्यों नहीं किया जाना चाहिए? जो शिक्षा रोमिला थापर और मार्क्सवादी मण्डली ने पिछले 6 दशको में दी है, वह पूरी तरह विकृत रही है | मार्क्सवादी लोग सबसे अधिक धर्म-निरपेक्षता का शोर मचाते है लेकिन मई 1941 में मार्क्सवादियों ने प्रस्ताव पास कर द्वि-राष्ट्र सिद्धांत और देश के टुकड़े करने का समर्थन किया था | यदि शिक्षा में धर्म-निरपेक्षता की फिक्र है तो देशभर में चल रहे मदरसों का पाठ्यक्रम चिंता का कारण होना चाहिए | इसमें क्या पढ़ाया जाता है, उससे अबोध मुसलमान बच्चो में क्या मानसिकता बनती है – यह वामपंथियों में कभी विचार का विषय नहीं बनता | क्योंकि संप्रदायिकता का रंग तो केवल भगवा होता है |

जब सब बाते साम्यवादी तथा उनके सहकर्मी लेखको रोमिला थापर, सतीशचन्द्र, अर्जुनदेव आदि के आर्थिक स्वार्थो को पूर्ण करने के लिए हो रही थी तब सब लोग लाल थे | जब उनका एकछत्र राज्य समाप्त हुआ तो वो पीले पड़ गये | हम सब लोग जानते है लाल और पीला मिलकर भगवा बनता है | अब उनकी भगवा आँख को हर अच्छी बात बुरी लगती है और इसको भगवाकरण कहते है | अनजाने ही सही, कम्यूनिस्टो और मुस्लिमपरस्तो ने जिस गाली का अविष्कार हिन्दुओ को गाली देने के लिए किया है, वह “भगवा” देश की आत्मा की हुंकार है, जो अब गूंजने लगी है और अभी और गूंजेगी | युगद्रष्टा महर्षि श्री अरविन्द की भविष्यवाणी में आया “भारत का पुरावतरण” मिथ्या नहीं हो सकता |

पति:–"अरे हाँ..! तुम्हारी साड़ी भी नहीं ला पाया..!"

आप सम्पन है स्मार्ट फोन यूज़ करते है परन्तु आप जो भी सपने देखते है बड़ी होशियार और चालाकी से इसे पूरा भी कर लेते है मगर इसमें कोई बुराई नहीं।

कभी आपने सोचा कि एक गरीब मध्यम वर्गीय किसान जो विजली नहीं मिलने से ठण्ड की रात हो या मई जून की गर्मी खेतों में जाकर फसल सींचता है। चीनी अच्छी लगती है सारे मीठी पकवाने बनती है मजा भी आता है खाकर, नाच कूद,शारीर दिखा, खेल कूद, ड्रामा करके लोगों का पेट नहीं भरा जा सकता परन्तु अहमियत इतनी जैसे सारी दुनिया इसी से चलती है।

एक समय की बात है प्याज के खेत में एक किसान अपनी पत्नी के साथ चिलचिलाती धूप में प्याज की दिन भर खुदाई करते हुए एक दूसरे से बातें कर रहे थे कि कल बच्चों के लिए कपड़े खरीदना है छुटकवा का तो चढ्ढी भी फट गई है, तुम्हारी साड़ी भी कितनी पुरानी हो गई है फटने भी लगी है कल एक साड़ी नई लेता आऊंगा.
पत्नी शरमाते मुस्कराते हुए बोलती है अरे नही जी..! ये तो अभी ठीक है..! आप तो अपने लिये कुछ सोचते ही नहीं हो, जब देखो बच्चों या मेरे लिए ही बोलते हो..! आपके पास जूते नहीं है ऐसा करना कि कल जूते ही ले लेना.!

शाम होते होते सारी प्याज बैलगाड़ी पर लाद कर जब रस्सी से बोरियां कसंते हुए बच्चों से खूब हँस हँस बोलता है अरे छोटुआ कल तुझे जलेबी खिलाऊगां, बच्चा बोलता है समोसे भी लाना, बस! कपड़े नहीं लेगा! हाँ लूँगा लेकिन पापा लाल रंग वाला..! और चप्पल, आप अपने लिए लेलेना मुझे बाजार थोड़े जाना होता है। पापा मैं भी चलु क्या आपके साथ बाजार? बेटा थक जायेगा तू अभी छोटा है और कल तू स्कूल भी नहीं जा पायेगा तुझे पढ़ लिख कर कलेक्टर बनना है मेरी तरह हल थोड़े ही चलाना है।

जब सुबह चार बजे रात से ही जागकर
किसान मंडी पहुँचता है। तो आढ़ती बड़े प्यार से चाय पिलाता है। गद्दी पर अपने साथ बैठाता है और हाल चाल पूछता है। किसान भी कुछ देर बातें करता है फिर मुद्दे की बात प्याज बेचने की करता है,तो आढ़ती बोलता है इन दिनों प्याज की मंदी चल रही है। किसान बोलता है सेठ बाहर फुटकर में तीस रुपये किलो बिक रही है, फिर आढ़ती बोलता है एक एक किलो बेचने में पुरे महीने लग जाएंगे और जो बेच रहा है वह दिनभर समय गवाता है उसकी दुकान है।

बेचारा किसान वो अपने माल की खुद कीमत भी नहीं लगा पाता।

आढ़ती उसके माल की कीमत,अपने हिसाब से तय करता हैं। बोलता है बारह रुपये किलो के रेट से लूँगा देना है तो दो नहीं कोई और मंडी देख लो! किसान बेचारा इधर उधर दोपहर दो बजे तक हाथ पाव मारता है प्याज न बिकते देख बारह रुपये किलो से ही बेचने पर मजबूत हो जाता है।

एक माचिस की डिब्बी पर भी उसकी कीमत लिखी होती है। बिस्कुट पर भी उसकी कीमत लिखी होती है। लेकिन किसान अपने माल की कीमत खुद नहीं कर पाता। खरीदते समय व्यापारी कभी किसान का हित नहीं अपना हित देखता है। जितना मर्जी में आये उतना बेवकूफ बनाता है, ऊपर से पुरे पैसे भी एक साथ नहीं देता बोलता है बाकि के दो दिन बाद ले जाना जब मॉल बिक जायेगा।
खैर..माल बिक गया लेकिन कीमत
उसकी सोच अनुरूप नहीं मिली!!
जब पेमेन्ट मिला तब वो सोचता है
इसमें से दवाई वाले को देना है, खाद वाले को देना है, अरे हाँ, अभी बिजली का बिल भी तो जमा करना है। सारा हिसाब लगाने के बाद कुछ बचा ही नहीं।

वो मायूस हो घर लौट आता है,बच्चे उसे बाहर ही इन्तज़ार करते हुए मिल जाते हैं।

"पापा.! पापा.!" कहते हुये उससे लिपट जाते हैं और पूछते हैं...!
"हमारे नये कपडे! जलेबी समोसे नहीं लाये..?"
पिता:–"वो क्या है बेटा..! कि बाजार में अच्छे कपडे मिले ही नहीं,दुकानदार कह रहा था इस बार दिवाली पर अच्छे कपडे आयेंगे तब ले लेंगे..!"

पत्नी समझ जाती है, प्याज कम भाव में बिकी है। वो बच्चों को समझा बुझाकर बाहर भेज देती है।
पति:–"अरे हाँ..! तुम्हारी साड़ी भी नहीं ला पाया..!"

पत्नी:–"कोई बात नहीं जी, हम बाद में ले लेंगे लेकिन आप अपने जूते तो ले आते..!"
पति:– "अरे वो तो मैं भूल ही गया..! चलो जूतों के बगैर कौन सी बारात फिरी जा रही है और अभी ससुराल थोड़े ही जाना है ।"

पत्नी भी पति के साथ सालों से है पति का मायूस चेहरा और बात करने के तरीके से ही उसकी परेशानी समझ जाती है, लेकिन फिर भी पति को दिलासा देती है। और अपनी नम आँखों को साड़ी के पल्लू से छिपाती रसोई की ओर चली जाती है।

फिर अगले दिन सुबह पूरा परिवार एक नयी उम्मीद , एक नई आशा एक नये सपने के साथ नई फसल की तैयारी के लिये जुट जाता है।

ये कहानी हर छोटे और मध्यम किसान की ज़िन्दगी में हर साल दोहराई जाती है।

हम ये नहीं कहते कि हर बार फसल के सही दाम नहीं मिलते।

लेकिन जब भी कभी दाम बढ़ें! मीडिया वाले कैमरा ले के मंडी पहुच जाते हैं और खबर को दिन में दस दस बार दिखाते हैं।

कैमरे के सामने शहरी महिलायें हाथ में बास्केट ले कर अपना मेकअप ठीक करती, मुस्कराती हुई, चटक मटक के साथ कहती हैं..। सब्जी के दाम बहुत बढ़ गये हैं जी हमारी तो रसोई का बजट ही बिगड़ गया.....। कभी अपने देखी है कि किसान किस तरह फसल पैदा करता है। वो किस तरह फसल को पानी देता है। दवाई से भरी हुई टंकी पीठ पर लाद कर छिङ़काव करता है, खाद की तगाड़ी सर पर उठा कर खेतों में घूम-घूम कर फसल को खाद देता है।

अघोषित बिजली कटौती के चलते रात-रात भर बिजली चालू होने के इन्तज़ार में जागता है।

चिलचिलाती धूप में सिर का पसीना पैर तक बहाता है।

ज़हरीले जन्तुओं बिच्छू साप आदि का डर होते भी खेतों में नंगे पैर घूमता है।
जिस दिन ये वास्तविकता आप अपनी आँखों से देख लेंगे, उस दिन आपके किचन में रखी हुई सब्ज़ी, प्याज़, गेहूँ, चावल, दाल, फल, मसाले, दूध
सब सस्ते लगने लगेंगे।

खैर सबको अपनी अपनी पड़ी है दुसरो की क्यों सोचे! लेकिन आजादी के इतने सालों के बाद मोदी सरकार ने किसानों का ख्याल किया बाजार जाने के बजाय बाजार किसानो के घर लाया बस नेट के जरिये भाव ताव कीजिये फिर मॉल बाजार में भेजिये। फसलों का बीमा करवॉए मौसम की मार से अपनी लागत और लाभ को बचाए आदि आदि।

जब देश ही नहीं होगा तब क्या पाओगें.....

जब देश ही नहीं होगा तब क्या पाओगें.....
जरूरी नहीं कि कुत्ता ही वफादार निकले… वक़्त आने पर आपका वफादार भी कुत्ता निकल सकता है ।

सुनता हूँ अभी भी राजनीतिक विपक्ष जिन्दा है भारत देश में, परन्तु स्वाभिमान....। पता नहीं।

न तो कोई देश बुरा होता है और न राजनीति बुरी होती है बुरा होता है देश का नागरिक।

किसी भी देश में भ्रस्टाचार अत्याचार इसलिए होता है कि अमीर को परवाह नहीं मध्यम वर्ग के पास समय नहीं और गरीब असमर्थ है।

प्रत्येक देश बाहरी दुश्मनों से बड़ी आसानी से विजय प्राप्त कर लेता है परन्तु पराजित तब होता है जब अन्दर के दुश्मन वार करते है।

कोई भी व्यक्ति जोर जबरजस्ती से अपना आराध्य नहीं बदलता सिर्फ माया मोह लालच ही उसका आराध्य बदलवा सकता है।

किसी भी राष्ट्र को क्षति अत्याचारों गद्दारों या दुश्मनों से नहीं होता क्षति निष्क्रीय अन्याय सहनेवालों से होता है।

एक रूपया आपके पास है एक मेरे दोनों ने आदान प्रदान किया तो सिर्फ एक एक रूपया ही रह जायेगा।
परन्तु एक ज्ञान आपके पास है एक मेरे दोनों का आदान प्रदान किया तो दोनों के पास दो दो हो जायेगा।

इसीलिए पहला ज्ञान मुझसे लेलें कि यदि विपक्ष ऐसे ही राजनीति किया तो देश को जल्द ही गुलामी के लिए मजबूर बनाएगा।
हिन्दुस्तान होगा या नहीं होगा इसके लिए अभी तक का इतिहास देखना होगा कि अब तक नहीं मिटा तो अब कौन मिटाएगा। परन्तु यह तो तय है सभी सेक्युलरों में धर्म परिवर्तन जरूर आयेगा। कोई यहाँ तो कोई विदेशों में बस जायेगा।
                  -अवधेश कुमार तिवारी

रौनकें कहां दिखती हैं अब, पहले जैसी बाज़ारों में, त्यौहारों का पता बताती, कुछ कतरन अखबारों में।

रौनकें कहां दिखती हैं अब, पहले जैसी बाज़ारों में,
त्यौहारों का पता बताती, कुछ कतरन अखबारों में।
आटा, चावल, तरकारी, हर लम्हा नया शिगुफ़ा है,
सब लाश के जैसे खड़े हुए हैं, रोज़ नई कतारों में।
माँ के हाथ का एक निवाला मिलता कहाँ है शहरों में,
घर की याद है अक्सर आती, गर्मी हो या जाड़ो में।
बचपन के किस्से अब भी छिपे हुए हैं, दिलो-ज़हन मे
जब परियां खोजा करते थे, सूरज में चांद सितारो में

सोचें कि अचानक से कभी रात नहीं होती और न अचानक कभी भी दिन निकलता है

क्यों नहीं फ़लक से सितारे गिरते है जमीन पर।
वो तो बस यूँ ही किया कुछ भी नहीं,
मैंने तो कुछ किया पर ओ मेहरबान नहीं हमपर।।
ऐसे ही ख्यालों में गुनगुनाती रही ये जिंदगी,
कभी गैरों से कभी अपनों से लुभाती रही ये जिंदगी।
बिनमोल जिंदगी में अनमोल वे प्रयास है,
जिनकी वजह से किसी की भी सवँर जाती है ये जिंदगी।।

सोचें कि अचानक से कभी रात नहीं होती
और न अचानक कभी भी दिन निकलता है
न तो अपनी समस्याएं कभी अचानक आती
और न कभी ताली या चुटकी बजाके जाती है
आवश्यकताओं का अम्बार पनफता है मन में
समस्याओं का उदय धीरे धीरे होता है जन में
बढ़ा अपनी कोशिशें और थोडा इंतजार कर
कभी भी कोशिशों को अनायास ना बेकार कर
याद रहे बेवजह परिदों को पर नहीं निकलते
हौंसला भर समुद्र ही नहीं आसमां को पार कर।।

Friday, 29 April 2016

परिवर्तन के बगैर Innovation की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती यदि आप तैयार है तो पढ़े!

यदि कोई मुर्ख हो तो उसे आसानी से सिखाया जा सकता है परन्तु लालची से दूर रहना ही तर्क संगत है। इसलिये हे प्रिय एक बार पढ़ें और ग़ौर करें आपका उद्धार आप स्वंग कर सकते है।

हर किसी को माइंडसेट बोल देने मात्र से वह बुरा मान जाता है परन्तु अनुभव की रूढ़िवादिता हमें हमारे देश को सदैव बाधित कर रही है। विकसित देशों से यदि सीख लें तो सबने innovations को अपनाया परन्तु हम लालच स्वार्थ मोह से आगे बढ़ने को तैयार नहीं क्यूँ...?

"अनुभवहीनता ही नए की खासियत होती है; जो नया है वह स्वभाविकतः अनुभवहीन होगा और जो अनुभवी है वह तो नया हो ही नहीं सकता, ऐसे में, जब तक हम अनुभव को आधार बनाकर नयी संभावनाओं को निरस्त करते रहेंगे, हम कुंठित रहेंगे।

सीढ़ी चढ़ने की प्रक्रिया में भी जब तक हमारे कदम पिछली सीढ़ी से चिपकी रहेगी, हम ऊपर नहीं बढ़ सकेंगे; वर्तमान की परिस्थिति भी कुछ ऐसी ही है, समस्याएं नयी हैं और हम पारम्परिक शैली के इतने अभ्यस्त हो चुके हैं की नयी संभावनाओं से भी प्रतिरक्षित हैं।

जीवन में साँस लेना अतिआवश्यक है परन्तु जब तक पहली साँस नहीं छोड़ेगे दूसरी कभी नहीं आएगी।

आरक्षण को आत्मनिर्भरता का पर्याय मान लेना समझ की गलती है फिर उसके प्रयोग का सन्दर्भ जाती हो या लिंग हो, वह तो एक प्रावधान था जिसके उचित प्रयोग से समाज के पिछड़े, शोषित व असहाय वर्ग को समाज की मुख्य धरा से जुड़ने का अवसर प्रदान करना था, परन्तु जब से राजनीति ने आरक्षण को सत्ता प्राप्ति का हथियार बनाया, समाज उस प्रावधान के व्यापक परिणाम से भी वंचित होता जा रहा है , ऐसे में, आरक्षण की समीक्षा भला क्यों न हो ?

अगर छ दशकों से अधिक समय तक आरक्षण के प्रयोग से भी समाज के पिछड़े वर्ग को मुख्य धरा में नहीं जोड़ा जा सका , तो कहीं न कहीं कोई न कोई त्रुटि तो अवश्य ही है ! हाँ, आरक्षण की राजनीति ने भले ही कई नेताओं को जन्म ज़रूर दे दिया और इसीलिए आज भी अपने राजनीतिक भविष्य के लिए वो आरक्षण का प्रयोग भी कर रहे हैं।

हाँ, विविधताओं में एकता ही हमेशा से भारत की विशेषता रही है पर जब तक शाशन तंत्र विविधताओं के आधार पर अपनी योजनाओं का निर्माण करता रहेगा वह सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ती कर पाने में सदैव असक्षम रहेगा। हमारी एकता ही हमारी शक्ति है और इसीलिए सरकारी योजनाओं का निर्धारण भी उसी आधार पर होना चाहिए !

श्रिष्टि में विशिष्ट ही सामान्य है और यह इसलिए क्योंकि विविधतायें ही अपनी विशिष्टता से श्रिष्टि को सम्पूर्णता प्रदान करती है, ऐसे में, विविधताओं को स्वीकार करने के बजाये उनसे शिकायत करना और उन्हें समझ के अनुसार समानीकरण की प्रक्रिया में झोंक देना मूर्खता नहीं तो और क्या है ?
कभी फ़ुरसत मिले तो उनके बारे में सोचें जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं और तन ढकने के लिए दूसरों के रहमो करम पर आश्रित है। उनका क्या दोष? परन्तु यदि हमारे स्किल से अमेरिका रूस जापान आदि प्रभावित हो सकता है तो हम अपने स्किल को मात्र आरक्षण के आधार पर क्यों विदेशों में बिकने दे! क्यों न हम उसे रोकने का प्रयास करें।

मासूम शिशु की अभिलाषा!

मासुम शिशु की अभिलाषा

पापा मेरा नाम लिखा दो मैं स्कूल में जाऊँगा,
जल्दी से स्कूल दिखा दो आकर खाना खाऊँगा,
बंदेमातरम गीत सुनूंगा राष्ट्रगान मैं गाऊँगा,
अभिवादन झण्डे को करके माँ को शीश नवाऊगां,
पाठ पढूँगा नेताजी का आजाद की गाथा गाऊँगा,
रानी लक्ष्मी बाई का इतिहास मुझे दिलवा देना,
चरखे वाली एक कहानी का पन्ना फड़वा देना,
जिनकी भय से भागे गोरे उनकी गाथा गाऊँगा,
जिन्होंने गुमराह किया मैं उनसे देश छुड़ाऊगां।
माँ मुझको स्कूल दिखा दो फिर मैं खाना खाऊँगा।।

कानून तो कानून है, किसी के बाप का अघिकार नहीं, संविधान से सिर्फ न्याय ही झलके, किसी बापू का विचार नहीं।

गांधीजी के विचारों से,
सौ गुनहगार छूट जाय,
पर एक बेगुनाह को फाँसी,
नहीं होनी चाहिए।
ऐसा कैसे हो सकता है,
जब सौ कुत्ते मिलकर,
एक शेर को मार सकते है,
तो सौ गुनहगार मिलकर,
एक बेगुनाह को फाँसी पर,
हल्ला मचा डार सकते है।
कानून तो कानून है,
किसी के बाप का अघिकार नहीं,
संविधान से सिर्फ न्याय ही झलके,
किसी बापू का विचार नहीं,
पतिव्रता को वस्त्रहीन करनेवालों,
बेश्या का श्रृंगार नहीं होना चाहिए,
झूठे पहाड़ पर जिन्दगी गुजरनेवालों,
सच का बलात्कर नहीं होना चाहिए।।
       -आदर्श व्यवस्था निर्भीक संविधान।

हे भाई नौटकीबाज!! मेरी बेरोजगारी पर रहम करो। माफ़ करदो दिल्ली को फिरसे ऐसी गलती नहीं होगी।

नरेंद्र मोदी जी के विचार कि मेरी लड़ाई गगोई से नहीं गरीबी से है,सेक्युलरिज़्म पर बहस होनी चाहिए, इंडिया फर्स्ट होना चाहिए परन्तु देश का कोई भी नेता इन चुनौतियों को स्वीकारने की हिम्मत नहीं रख पाया। क्योंकि राजनीति का स्तर इतना नीचे गिर गया है कि अब नेताओं का दुश्मन भ्रस्टाचार, बेरोजगारी,अशिक्षा,अन्याय या गरीबी इत्यादि नहीं अब तो नए नए दुश्मन हो गए है जो कोई व्यक्ति या पार्टी होता है। उसी तरह जनता के विचार भी परिवर्तित हो चुके है क्योंकि नेतृत्व का असर ही कुछ ऐसा होता है।

इस मार्च एन्डिंग में, जीवन की बैलेंस शीट जांचने की इच्छा हुई तो पाया कि प्रेम ,स्नेह, आत्मीयता , भाईचारा,कर्तव्यनिष्ठा के खाते ही गायब हैं। मैंने मन के 'मुनीम 'से पूछा कि चेक करो, तो वो बोला - सर जी , वर्षो से इनके साथ कोई लेनदेन हुआ ही नहीं...! ना जाने कितने रिश्ते ,ख़त्म कर दिये इस भ्रम ने कि मैं ही सही हूँ, और सिर्फ़ मैं ही सही हूँ....!! हे! मजाक लगरहा है न, परन्तु सच्चाई यही है। इसमें दोष हमारा या आप का नहीं विगत दस वर्षों तक श्री मनमोहन जी का नेतृत्व मिला जो वेचारे राजीव गांधी के समय दिए नारे "बेटी है सरदार की देश के गद्दार की! बेटी है सरदार की कौम है गद्दार की!!" के लिए वफ़ादारी साबित करने में गुजार दिए। वफ़ादारी की हद हो गई लोगों को इस वफ़ादारी से घुटन होने लगी तो अन्ना साहेब कुछ लोगों के साथ अनशन पर बैठ गए परन्तु हुआ क्या? मैं बताता हूँ।

अनशन पर बैठे अन्ना जी, प्रशांत भूषण, केजरीवाल और योगेन्द्र यादव को रात में जब खूब तेजी से भूख लगी तो इन लोगों ने जनता की चोरी से रोटी पकाई गलती से आटा इतना था कि रोटी चार की जगह पांच बन गई, अब प्रॉब्लम ये की एक ज्यादा रोटी किसको मिले, इसलिए इन्होंने निर्णय लिया कि चलो सोते है जो सबसे सुन्दर सपना देखेगा उसे ही एक ज्यादा रोटी मिलेगी और हुआ ऐसा ही सभी लोग सो गए, अब पेट में भूख और नीद परन्तु मानवता भी कोई चीज होती है। चार घंटे बाद जगे।

सबसे बड़े अन्ना साहेब ने अपना सपना सुनाया कि भारत को भ्रस्टाचार से आज़ादी मिल चुकि है लोग नारे लगा रहे है "अन्ना नहीं है आंधी है ये आज का गांधी है" हम सभी लोग आजादी के जस्न में बैठे है, बार बलाए डांस कर रही है, केजरीवाल नेहरू जी का रोल अदा कर रहा है भूषण बाबा साहेब का तभी कश्मीर को अलग करने की मांग लिए नारे लगे इतने में मेरी आँखे खुल गई।

फिर दूसरे सीनियर भूषण साहेब ने अपना सपना सुनाया कि मैं यूपी का आगामी चुनाव जीतकर CM बन चुका हूँ मुलायम सिंहासन है, तीनो जया के साथ रेखा का नृत्य हो रहा है माया मुझे चम्मच से राबड़ी खिला रही है तभी लालू यादव का राक्षसी रूप देख मैं डर गया और नींद खुल गई।

अब बारी आई केजरीवाल साहेब की उन्होंने बताया मैं तो बड़े बुरे फंस गया लालू लाठी लेकर आया और मुझे आठ दस लाठी धड़ाधड़ जमा दिया। मैं हैरान परेशान कापने लगा डर बस बोला साले मैं पूरा चारा खा गया कभी अनशन नहीं किया तब भी जे पी साहेब ऐसा ही ड्रामा करते थे और तू रोटी नहीं खा सकता चल खा। इतने में फिर से लाठी उठाया मेरी तो सब कुछ फट गई इसलिए पांचो रोटी खा गया।

अन्य सभी लोगो ने बोला जब ऐसी बात थी तो हमें जगाया क्यों नहीं तो केजरीवाल बोला जगाता कैसे अन्ना जी आज़ादी का जस्न मना रहे थे, भूषण जी यूपी के CM दरबार में राबड़ी चाट रहे थे, मैं ही बेवकूफ अकेला लाठी खा रहा था। अन्ना जी बड़े भावुक आदमी बोले भाई कोई बात नहीं सब लोग शांत हो जाओ वर्ना जनता जाग जायेगी।

केजरीवाल ने अपने कर्मो से स्पष्ट कर दिया है इनका दुश्मन भ्रस्टाचार नहीं मोदी,बीजेपी और आरएसएस है उसी तरह भारत के शेष नेताओं का भी रुख क्लियर है, परन्तु आप लोगों का जिसे लड़ना है बेरोजगारी भ्रस्टाचार गरीबी और असमानता से जिसको इंडिया फर्स्ट को अपनाना है, यदि इंडिया फर्स्ट के साथ सेक्युलरिज़्म जिन्दा रह सकता है तो जिए यदि इंडिया फर्स्ट साम्प्रदायिकता से होता है तो हमें उससे भी परहेज नहीं।

Thursday, 28 April 2016

कहते है वक्त बड़ा बलवान होता है। कल तक जिनके पास हवाई जहाज हुआ करते थे आज उन्हें पासपोर्ट के लाले पड़े है।

कहते है वक्त बड़ा बलवान होता है। कल तक जिनके पास हवाई जहाज हुआ करते थे आज उन्हें पासपोर्ट के लाले पड़े है। एक समय की बात है सुबह सुबह का समय था सूरज अपनी लालिमा लिए हाजिर हो रहा था, सामने शीशे की दीवारे थी, दिवार से देखने पर एयर पोर्ट पर खड़ी हवाई जहाजों को देखता हुआ सफ़ेद पैंट शर्ट जूता जैकेट के साथ काले चश्मो में पीछे की तरफ बाल झाड़े हुए जिसके अगल बगल में खड़ी अनेकों एयर होस्टेज कातिल अदाओं के साथ मुस्कान बिखेर रही थी और एक शख्स एक के बाद एक सिगरेट की कस लगाये जा रहा था। बगल में खड़े एक व्यक्ति से नहीं रहा गया सोचा, मैं भी थोड़ी इम्प्रेसन बनाऊ इन बालाओं के बीच तो बड़े प्यार से उस शख्स से बोला, भाई क्या करते हो? शख्स ने कहा कुछ नहीं बस मस्ती। फिर तो उस व्यक्ति के हौसले को दाग़ देना होगा, पता है उसने क्या कहा, उसने कहा ये जो एक के बाद एक सिगरेट दगाये जा रहे हो यदि एक सिगरेट की कीमत 5 रुपये भी होगी! तभी शख्स ने कहा पांच नहीं पांच सौ, फिर व्यक्ति हिसाब लगाते हुए बोला ठीक है पांच सौ, यदि एक दिन में पचास सिगरेट भी पीते हो तो पुरे साल में 18250 सिगरेट यानि 9125000 रुपये प्रतिवर्ष और आप की उम्र लगभग 50 साल होगी! शख्स बोला हाँ, तो आप जो हवाई जहाज देख रहे हो वह आपकी होती। शख्स ने कहा पता है वह हवाई जहाज किसकी है तो व्यक्ति बोला हाँ हाँ श्री विजय माल्या साहेब की। फिर शख्स बोला आप यदि आप दिन में एक भी पांच रुपये वाली सिगरेट पीते तो ऐसी फटीचारों जैसे ख्यालों से ऊपर उठजाते और ये घिसा पीटा ज्ञान मुझे नहीं देते,जिस माल्या को जानते हो वह विजय माल्या आपके सामने है। फिर तो व्यक्ति का पूरा शारीर नीला पड़ गया और आ गया गिड़गिड़ाहट की अवश्था में।

एक दिन जब विजय माल्या सुबह सुबह उठकर अखबार पढ़ता है तो उसमे लिखा होता है कि, प्रिय विजय माल्या! आप जहा भी जैसे भी हो भूखे नंगे प्यासे आपकी अवश्था से मुझे कोई कष्ट नहीं परन्तु अतिशीघ्र भारत वापस आ जाओ, आपके बगैर किंगफिशर कैलेंडर की बालाओं की हालात इस प्रकार बेहाल है जैसे भगवान श्री कृष्ण के बिना गोपियों का न खाती है न कुछ मेकअप करती है और यदि कोई उन्हें समझता बुझाता है। तो बस दिन रात यही बोलती है उद्धव मन न भयो दस बीस, एक हुतो सो गयो श्याम संग को अवराधै इस।

भाई आपके बगैर बेवड़ों का भी बड़ा बुरा हाल है वेचारे सुबह होने से पहले ठेके पर आँख मलते हुए पहुच जाते है, ठेका खुला नहीं देखकर थोड़ा घबराते है फिर जोर जोर से आवाजें लगाते है उठो भाई उठो! सुबह हो गई,कोई प्रतिक्रिया नहीं देख जोर जोर से सटर पर लात लगाते है फिर अंदर से दुकानवाला गलियां देते हुए बोलता है बढ़ा साले पैसे तब बेवड़े के मुँह पर मुसकान आती है और बड़े प्यार से भइया भइया कहके बोलता है देदो भाई एक पौवा, पौवा पाते ही आधा पीता है आधा जेब में रखकर घर पहुचता है वहा बीबी एक मुह सौ सौ गालियां देते हुए बोलती है किस्मत फूट गई थी मेरी जो इस बेवड़े से पाला पड़ा, फिर बेवड़ा मुह पर अजीब सा मुस्कान लिये गिड़गिड़ाता है कि देखो सुबह सुबह जागिंग करने निकला था रास्ते में ठेका खुला था सोचा दिन में नहीं जाउगा वर्ना यार दोस्त मिल जाएंगे और ज्यादा पिला देगे इसलिए थोड़ी सी लेकर आया हूँ फिर नहीं जाऊँगा। बीबी को दया आ जाती है बोलती है। आप अपनी नहीं तो बच्चों का ख्याल करो! अगर आप को कुछ हो गया तो इनका और मेरा क्या होगा। पति दोनों हाथों से कान पकड़कर कसमे खाता है कि आइन्दा से ऐसा नहीं होगा परन्तु जहा बीबी अनभुल हुई नहीं कि फिर वही कहानी।

आ जाओ भाई माल्या आपने तो बड़े महान महान कार्य किये हो ये तो भारत है यहाँ तो जेएनयू में देशविरोधी नारे लगानेवाले जो खुद रोजगार लायक नहीं बन पाये वे जनता को रोजगार दे रहे है। जिनके माँ बाप सब्सिडी के पैसों से बच्चे पाले वे दूसरों को ज्ञान दे रहे, सौ सौ रुपये के लिए तरसने वाला हवाई जहाज का सफ़र पञ्च तारा होटलो का खाना खा रहा है। पिट गए पिटनेवाले पगले एनआईटी में बड़ा प्यार उमड़ा था भारत माँ का। चले थे ध्वजारोहण करने हक़ ज़माने कश्मीर पर भारत का। पुलिस ने ऐसी टाँगे तोड़ी की परीक्षा भी देने लायक नहीं बचे। ऊपर से इलाज के खर्च से घरवाले परेशान।

आ जाओ भाई जब न  बिगड़ा माया, मुलायम, लालू, जयललिता,राजा चितंबरम, कलमाणी,जिंदल इन्दल आदि पूँजीपतियों का न बिगाड़ा पिटाई करनेवालों का और न देशद्रोही नारा लगानेवालो का तो आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा बस आप आ जाओ!

           - आपका बड़ा भाई सुब्रतो राय।

                              तिहाड़ जेल



हिंदुओ की भावनाओं का ख्याल कहाँ ये भी फंसे आड़ इवन जैसी बेवकूफ़ी में।

इतना मुश्किल भी नहीं कि किसी को खुश करने के लिए किसी को क्षति पहुँचाई जाय, हाँ बगैर क्षति पहुँचाए बगैर नाराज किये दूसरे को खुश करने का रास्ता थोड़ा परिश्रमभरा जरूर होता है, अफसोस परिश्रम करना चाहता कौन है इस दुनियां में?

हमें याद है अशफाकउल्ला खान के फाँसी की रात के वे शब्द जो उन्होंने राम प्रसाद विस्मिल से कहा था कि यार जाऊँगा खाली हाथ मगर ये दर्द दिल में रह जायेगा कि कब हिन्दुस्तान आजाद वतन कहलाएगा !! यार विस्मिल तू तो हिन्दू है कहता है पुनर्जन्म लेकर फिर आऊँगा, फिर आऊँगा और भारत माता को आजाद कराऊँगा, मेरा भी जी करता है कि मैं भी कह दूँ, लेकिन मजहब से बध जाता हूँ, मुसलमान जो हूँ, पुनर्जन्म की बात तो नहीं कर सकता, परन्तु यदि खुदा मिल जायेगा कही तो अपनी झोली फैलाकर उससे जन्नत के बदले पुनर्जीवन ही माँगूँगा।

उन क्रांतिकारीयों के दिल में हिन्दुस्तान से प्यार था एक ही सपना था सिर्फ और सिर्फ आजादी उन्हें नहीं बनना था नेता, नहीं चाहिए थी पीएम या सीएम की कुर्सी, वो तो पगले थे, क्या करते कुर्सी लेकर, उनमे इतनी चतुराई चालाकी जो नहीं थी,उन्हें तो ख्याल ही नहीं था कि जब मजहब अलग अलग है तो आजादी की लड़ाई एक साथ क्यूँ? वे न तो नितीश थे और नही अरविंद केजरी वे तो थे, आजादी के दीवाने। जो कहना था जो करना था वे कर गए अब तो बस यादें ही है उनकी, दिल कहता है अनायास ही पगले चढ़े फाँसी पर, जब कुर्सी के संकीर्ण विचारवाले जाति धर्म के नेता लालू ममता कांग्रेस कम्युनिस्ट और मायावती आदि को ही देनी थी।

रह रह ख्याल ये भी आता है कि ऐसे नेताओ का उदय क्यों होता है? क्यों लोग अपने ससुरालवालों से अत्यधिक खुश रहते है? शायद इसलिए कि ससुराल में साली साले ससुर सास सब दामाद की खूब बड़ाई खूब प्रसंसा करते है, दामाद की हर बात बड़े प्यार से उत्सुकताबस सुनते और दामाद का पूरा ख्याल रखते है, कि कही किसी बात पर मेहमान नाराज न हो जाय! बस इतनी सी बात पर दामाद खुश रहता है और सबसे प्रिय ससुरालवालों को समझने लगता है। परिणामस्वरूप उसे मिलती है वह पत्नी जिस पर कोई कोई टंच भी मारता कि, एक बार पत्नी ने गुस्से में पति से कहा तुमसे तो अच्छा होता कि मेरी शादी किसी राक्षस से हो जाती, तो पति ने कहा पगली खून के रिस्ते में शादियां करने का रिवाज़ हिंदुओ में नहीं है। इस बात की पुष्टी मैं नहीं करता परन्तु कहने का मतलब लाख परेशानीयों के बाद भी प्रसंसा करनेवाला बात को सुनने माननेवाला अत्यंत प्रिय होता है।

आपके ठग्गू नेता भी आपको इसी तरह बेवकूफ बनाते है कोई अमीरों को गरीबों का दुश्मन, कोई मालिकों को मजदूरों का दुश्मन, कोई ब्राह्मणों को दलितों का दुश्मन, कोई रक्षा करनेवाले सैनिकों को कश्मीरियों का दुश्मन तो कोई हिंदुत्व को हिन्दुस्तान का दुश्मन बताकर आपको को उल्लू बनाता है लगे हाथ आपकी प्रसंसा बड़ाई हमदर्दी सभी कुछ आपपर न्यौछावर कर देता है और सबकुछ भूल जब उसे वोट दे देते है तो शुरू हो जाता है आपका शोषण। आज नेताओं के पास अरबों खरबो की संपत्ति है, नेता बनने से पहले किसका बाप पूँजीपति था? जिसका लखपति था, वो आज खरबो में खेल रहा है। यदि कोई बोले कि श्री अटल जी, मोदीजी, सुरेश प्रभु, मनोहर परिकर आदि के पास क्या है तो आप बोलोगे ये सब अपवाद है।

प्रॉब्लम आपकी समझ में नहीं प्रॉब्लम समझकर ना समझ बने रहने की है फिर तो अच्छा लगता होगा आड़ इवन दिल्ली का, पूजा हवन पर प्रतिबंध का, मंदिरों पर से लाऊड स्पीकर हटाने का आदि। इसमे बुराई कुछ भी नहीं वह तो आपकी इच्छा है लेकिन एकबार समय मिले तो अवश्य सोचें कि आपकी आनेवाली संतानों का क्या दोष क्यों आप अपने निजी स्वार्थों के लिए उनका भविष्य अन्धकारमय कर रहे है??