जहाँ सुमति तह सम्पति नाना।
जहाँ कुमति तह बिपति निदाना।।
गोस्वामी तुलसीदास जी की ये पंक्तियाँ सभी को ज्ञात है परन्तु धैर्य उसी को है जिसने इसे अपने ऊपर ढाल लिया।
"करता हूं अनुरोध आज मैं , भारत की सरकार से ,"
"प्रतिभाओं को मत काटो , आरक्षण की तलवार से........."
"वर्ना रेल पटरियों पर जो , फैला आज तमाशा है ,"
"जाट आन्दोलन से फैली , चारो ओर निराशा है........."
"अगला कदम पंजाबी बैठेंगे , महाविकट हडताल पर ,"
"महाराष्ट में प्रबल मराठा , चढ़ जाएंगे भाल पर........."
"राजपूत भी मचल उठेंगे , भुजबल के हथियार से ,"
"प्रतिभाओं को मत काटो , आरक्षण की तलवार से........."
"निर्धन ब्राम्हण वंश एक , दिन परशुराम बन जाएगा ,"
"अपने ही घर के दीपक से , अपना घर जल जाएगा........"
"भडक उठा गृह युध्द अगर , भूकम्प भयानक आएगा ,"
"आरक्षण वादी नेताओं का , सर्वस्व मिटाके जायेगा........"
"अभी सम्भल जाओ मित्रों , इस स्वार्थ भरे व्यापार से ,"
"प्रतिभाओं को मत काटो , आरक्षण की तलवार से........"
"जातिवाद की नही , समस्या मात्र गरीबी वाद है ,"
"जो सवर्ण है पर गरीब है , उनका क्या अपराध है........."
"कुचले दबे लोग जिनके , घर मे न चूल्हा जलता है ,"
"भूखा बच्चा जिस कुटिया में , लोरी खाकर पलता है........"
"समय आ गया है उनका , उत्थान कीजिये प्यार से ,"
"प्रतिभाओं को मत काटो , आरक्षण की तलवार से........."
"जाति गरीबी की कोई भी , नही मित्रवर होती है ,"
"वह अधिकारी है जिसके घर , भूखी मुनिया सोती है........"
"भूखे माता-पिता , दवाई बिना तडपते रहते है ,"
"जातिवाद के कारण , कितने लोग वेदना सहते है........."
"उन्हे न वंचित करो मित्र , संरक्षण के अधिकार से ,"
"प्रतिभाओं को मत काटो , आरक्षण की तलवार से..........।।"
एक समय की बात है, एक लड़के को पोलिस ने चोरी के केस में पकड़ा। लड़के से पूछा कि तुम चोरी क्यों करते हो तो लड़के ने उत्तर दिया कि मेरे घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं होता है। पिताजी जितना कमाते है सब पैसे का शराब पी जाते है, माँ कही मेहनत मजदूरी कर जो भी कमाती है, पिताजी उसे भी झगड़ा झंझट कर उड़ा ले जाते है, माँ को कई बार भूखे सोना पड़ता है, जहाँ मजदूरीं करती है, वहा से कुछ खाने के लिए रोटी मिल जाती है, जिसे माँ खुद न खाकर हम लोगों में बाट देती है, अब बताओ साहेब मैं चोरी नहीं करूँ तो माँ का दर्द कैसे मिटेगा?
तभी पोलिस ने देखा कि कुछ प्रतिष्ठित लोग पत्रकारों के साथ उसी घर में पहुँचे। उन लोगों ने चोर लड़के के दूसरे भाई को बुलाया और उसे एक लाख रुपये का चेक देकर बोले, बेटा ये बताओ तुमने बोर्ड टॉप कैसे किया? तो दूसरा लड़का भी अपने घर की कहानी वही बताई और बोला बताइये सर ऐसी परिस्थितियों में यदि मैं पढ़ता नहीं तो क्या करता बिना पढ़े मेरे घर के हालात कैसे बदलेंगे?
बात परिस्थितियों पर नहीं, बात निर्भर करती है इंसानों की सोच पर, परिस्थितिया कुछ भी हो आप जो बनना चाहते है वह बन सकते है। अब तनिक सोचें कि उपरोक्त कविता सही है? फिर भी सही सही ही होता है। क्योंकि ये आरक्षण होता ही नहीं यदि गांधीजी का नेहरू प्रेम नहीं होता तो दलितों का कल्याणकारी कोई और योजना होती, जिससे किसी की प्रतिभा भी नहीं कटती और कोई भूखा या प्रताड़ित भी नहीं होता, मगर बिष जब पनफ गया है तो इतनी आसानी से मिटेगा नहीं, थोड़ा धैर्य रखें क्या पता आरक्षण की भूख खुद पे खुद मिट जाय।
No comments:
Post a Comment