Wednesday, 29 June 2016

धर्मनिरपेक्षता और हिंदुत्व, बहुत हुआ रोजा इफ्तियार, अबकी बार सीमा पर वॉर।

हम आज के इस दौर में कितने चालक है, हमारी शिक्षा, विचार क्रिया प्रतिक्रिया सभी में बस एक ही झलक है पूँजी। हमने अब ये मान लिया है कि इस दुनिया में यदि खुशहाल रहना है तो अपने पास गाड़ी बँगला नौकर चमचा होना जरुरी है और ये सब सम्भव भी मात्र पूँजी से ही है तो जाहिर है कि हमारा ध्यान भी पूँजीवाद पर ही केंद्रित होगा और होना भी चाहिए क्योंकि जब समझ सम्मान पाने तक ही सिमित है तो पूँजीवाद में बुराई क्या है मगर एक बात याद रखनी होगी कि आप और आपकी पूंजी का रखवाला कौन होगा? वो जो चमचों की तरह आपके आगे पीछे चलते है या वो जो मानवता का चेहरा या विकास आप विश्व में कर रहे है।

हमारी इन्ही समझों ने हमें धर्म से विमुक्त कर रखा है, मान सम्मान तो बगैर पूंजी भी मिलता है मगर भौतिक सुखों का अभाव शायद हमें ऐसी जिंदगी जीने को प्रेरित नहीं करती, आज मनुष्य के लिए धर्म मात्र लोकाचार बनकर रह गया है, जिसका उपयोग मात्र शादी व्याह या मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार के समय लगता है। इसीलिए तो हम दैनिक जीवन में इसपर ध्यान नहीं देते वर्ना आज बाजार में, राम बूट हाउस, लक्षमण लेदर स्टोर्स, माँ वैष्णो लस्सी भंडार, शंकर छाप तंबाकू,  बजरंग पान भंडार, गणेश छाप बीडी, लक्ष्मी छाप पटाखे, कृष्णा  बार  ऐंड  रेस्टारेंट, जय माँ अम्बे होटल आदि  हर जगह पर दिखाई देते है। परन्तु कभी आप ने सोचा कि सड़को पर पंचर, बीड़ी, गाड़ी रिपेयरिंग, नाइ या छोटी मोटी दुकान चलानेवाला क्यों अल्लाह छाप गुटका, खुदा छाप बीडी, ईसा मसीह  छाप तंबाकू की दुकान नहीं लगाता???

शायद इतना सोचने की फुरसत नहीं या हमें हिन्दू धर्म बकवास लगता है, बचपन में मुझे भी ऐसा ही लगता था क्योंकि हमारे संस्कार ही ऐसे है हमें बचपन में दयावान, निष्ठावान, अहिंसक, परोपकार की शिक्षा जो मिली है और इसमे बुराई भी कुछ नहीं, मगर जरा सोचें कि बार्डर पर दुश्मन गोलियां चला रहा हो और हम राम राम या ख़ुदा ख़ुदा का जप करें तो वो हमें माफ़ कर देगा हमारी धरती पर कब्ज़ा नहीं करेगा। आप सोच रहे होंगे कि क्या बकवास कर रहे हो ये कोई बार्डर है? तो पढ़े!

वाशिंगटन में 24 चर्च हैं, लन्दन में 71 चर्च, इटली के मिलान शहर में 68 चर्च हैं। जबकि अकेले दिल्ली में 271 चर्च हैं, और समूचे भारत में 3 लाख मस्जिदें हैं इतने धार्मिक स्थल किसी भी देश में नहीं है। आये दिन इन्ही स्थलों को लेकर दंगे फ़साद मार पीट होती रहती है। आप सोचोगे कि इसमें हिंदुओ का भी तो कुछ गलती होगा, तो अवश्य ही आप सच सोच रहे है, वह यही गलती है जो आपको हिन्दू मात्र की ही गलती दिखरही है। यदि कुछ सिखना है तो ईसाईयों  से हम हिन्दू यह सीखे की अपने धर्म का सम्मान कैसे किया जाता है।

इससे भी बड़ा मजाक ये है कि हिन्दू सांप्रदायिक है, क्या आपने ISIS का विरोध करते किसी मुस्लिम को देखा है? फिर RSS का विरोध क्यों होता है?? किसी मुस्लिम को होली दीवाली की पार्टी देते देखा है? नहीं देखा होगा !!  मगर हिन्दुओ को इफ्तार पार्टी देते मैंने देखा है। मैंने कश्मीर में भारत के झंडे जलते देखे है। परन्तु कभी पाकिस्तान का झंडा जलाते हुए मुसलमान नहीं देखा है।  मैंने हिन्दुओ को टोपी पहने मजारो पर जाते देखा है। लेकिन किसी मुस्लिम को टिका लगाते मंदिर जाते नहीं देखा है। मैंने मिडिया को विदेशो के गुण गाते देखा है। मगर भारत के संस्कार के प्रचार करते नहीं देखा है। आखिर इनसब का जिम्मेदार कौन मैं या आप जो सेक्युलिरिज्म की बातें करते हो क्यों नहीं सिखाते यही पाठ उन्हें जो इस कदर अपमान करते है हिन्दू देवी देवताओं का उस समय कहाँ चली जाती है तुम्हारी धर्मनिरपेक्षता??

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