सत्य क्या है? प्रश्न जितना आसान दिखता है उत्तर उतना आसान नहीं। बस इतना ही समझ लें कि जो सनातन है, जो प्राकृतिक है, जिसके साथ किसी भी तरह से छेड़छाड़ नहीं किया गया है, वही सत्य है। सत्य मार्ग पर चलने का मतलब प्रकृति के बनाये किसी भी वस्तु या जीव को आहत किये बगैर अपने स्वार्थ की सिद्धि ही सत्य मार्ग है।
आदर्श व्यवस्था निर्भीक संविधान का गठन भी इसी सत्य को ध्यान में रखकर किया गया है। जिसका तात्पर्य मानवता का उत्थान है, मगर इतना भी आसान नहीं मानवता स्थापित करना, उसके लिए सर्व प्रथम सभी लोग अपने गांव मोहल्ले, फिर क्रमशः तहसील, जिला, मंडल, प्रदेश, देश, जाति, धर्म और मानवता स्तर पर संगठित हो! तभी मानवीय प्रगति के बारे में कुछ सम्भव है। मगर दिल में ख्याल आ रहा होगा कि जब मानवता की बात है तो इन छोटे छोटे संगठनो को बनाकर क्या हम मानवता को विभाजित तो नहीं कर रहे है। ख्याल उठना भी जायज है। लेकिन हमें सोचना होगा कि यदि मंजिल की दूरी अधिक है तो कई रास्तों को बदल कर पंहुचा जाता है। अधिक दूरी तक सिर्फ एक ही रास्ता नहीं जाता, उसी प्रकार मानवता का कल्याण कोई छोटी मंजिल नहीं जिसे बस सोचा और हो गया, इसे स्थापित करने में कितने पैगम्बर,बौद्ध, जैन, शंकराचार्य, यीशु मसीह आदि गुजर गए मगर गलतफहमी ऐसी की बातें जस की तस।
आइये सर्व प्रथम आदर्श व्यवस्था निर्भीक संविधान से शुभारम्भ करें! और एक दूसरे को जोड़ने का प्रयास करें! क्योंकि "विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत। बोले राम सकोपि तब भय बिनु होइ न प्रीत।।" कहने का अर्थ कि यदि आप स्वतः सुदृढ़ नहीं होंगे तो दूसरे आपके साथ नहीं जुड़ेंगे इसलिए सर्व प्रथम स्वयं सुदृढ़ हो!!
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