Sunday, 26 June 2016

नशा शराब में होती तो नाचती बोतल, नशा यदि लालच बन जाए तो जिंदगी होटल।

नशा शराब में होती तो नाचती बोतल, नशा यदि लालच बन जाए तो जिंदगी होटल।
          एक नाइ अपने परिवार सहित खुशहाल जिंदगी जी रहा था, उसके परिवार में दो बच्चे भी थे, नाइ सदैव बड़े बूढ़ो को भगवान की तरह सम्मान देता था। न किसी से तकरार न किसी से रार सबके साथ हँसी ख़ुशी बातें करना, उसकी जिंदगी की खासियत थी। दरवाजे पर आये अतिथि को कभी एहसास ही नहीं होने देता था कि अतिथि अपने घर से दूर है।

नाइ अपनी जीविका चलाने के लिए रोज राजा की हजामत करने जाता था वहा से उसे रोज 100 मुद्राएं मिलती थी उसी से वह दान पूण्य घर गृहस्थी नात रिस्तेदार पास पड़ोस बीबी बच्चों सब को खुश रखता था और स्वगं भी खुश रहता था। नाइ के अंदर तनिक भी लालच नाम की चीज नहीं थी जब कोई उसे कुछ देने की चेष्टा भी करता तो हँस कर बोलता था बाबू सब कुछ आपका ही तो है। आप मेरी ये अमानत अपने पास रखिये समय आने पर मैं ले जाऊँगा। गांव के लोग एक आवाज लगाये नहीं कि नाइ सेवा के लिए हाजिर रहता था, गांव में सबकी हजामत बिना कुछ लिए करता रहता था, फिर भी खुशहाल इतना मानो साक्षात लक्षमी का निवास हो नाइ के घर में। नाइ की ईमानदारी, सेवाधर्म, माया मोह मुक्त, खुशहाली, बड़प्पन आदि की चर्चाए दूर दूर तक होने लगी।

एक दिन नाइ के घर एक ब्राह्मण आया ब्राह्मण ने भी वही देखा जो कभी कही सुना था, तो ब्राह्मण ने नाइ से कहा भाई मेरे पास कोई संतान नहीं है और ये मेरे पास तीन मुद्राओं से भरे घड़े है आप इसे लेलो, क्योंकि अब हमारी उम्र मात्र दो दिन बची है एक दिन में मैं काशी पहुँच जाऊँगा दूसरे दिन मेरी मौत हो जायेगी वहा कोई न कोई दाह संस्कार कर ही देगा, नाइ ने कहा महाराज दाह संस्कार कोई नहीं मैं आपके साथ चलुंगा और करूँगा आपने मुझे भाई कहा तो भाई को अपना फर्ज निभाने दीजिए! मगर हमारी आपसे एक विनती है कि ये मुद्राए काशी लिये चलते है वही जरुरत मंदो में बाट देंगे। ब्राह्मण ने कहा हमारी तो उम्र हो चुकी है और ये मुद्राए हमने आपको इसीलिए दी कि इससमय इसकी आपको जरूरत है, क्योंकि हो सकता है कल राजा अपनी हजामत के लिए किसी और नाइ को रख ले, फिर तो आपको ये मुद्राए काम आएगी। नाइ ने कहा महाराज होने को तो बहुत कुछ हो सकता है मगर अभी मुझे इसकी जरूरत नहीं है, आप मुझसे बड़े और पूज्य है इसलिए आपकी दी हुई मुद्राओ को मैं स्वीकार करता हूँ और आपके ही हित में खर्च करना चाहता हूँ ताकि अगले जन्म में ये आपको वापस मिलें। ब्राह्मण ने कहा भाई ये तो हमें अगले जनम में तो मिलेंगी ही क्योंकि मैंने इसे जो आपको देदी है। यदि आप यह सोचकर दान देना चाहते हो कि इससे मेंरा भला होगा तो वह हो चुका क्योंकि आपने इसे स्वीकार लिया है, अब आप अपने लिए इसे खर्च करें भविष्य में ये आप को काम आएंगी। नाइ मान गया और ब्राह्मण देवता अपनी योजनानुसार चल बसे।

जब नाइ ब्राह्मण देवता का दाह संस्कार करने गया था उसी बीच नाइ के दो भाई शिवपाल और रामगोपाल घर पर आ गए, उनलोगों ने अपने भाई के बारे में भाभी से पूछा तो भाभी ने सबकुछ सच सच बता दिया, और यह भी बता दिया कि आपके भाई साहेब आते ही ये सारी मुद्राओं से हवन यज्ञ दान पूण्य और ब्राह्मणों को भोजन आदि कराएंगे जब तक ये मुद्राएं ख़त्म नहीं हो जाती। इतना सुनते ही दोनों भाइयों के तो होस ही उड़ गए, जैसे समुद्र में रहकर प्यास गजब की लगी हो और पानी पी नहीं सकते। अब शिवपाल तो पक्का बुड़बक था मगर शातिर ऐसा जैसे कालनेमी श्री हनुमान को रोकने की योजना बना रहा हो, मगर रामगोपाल ने बुद्धि लगाई और भाभी को बच्चों का भविष्य दिखा डेढ़ घड़ा अपना हक़ अलग कराने की युक्ति लगाई। अब बच्चों सहित भाभी और दोनों भाई नाइ का इंतजार कर ही रहे थे कि नाइ महोदय आ टपके। आते ही बीबी भुन भुन करने लगी, जब देखो दिन रात दुसरो की सेवा में लगे रहते है, जैसे इनके पास बीबी बच्चे नहीं है, कल कुं अक्लेशवा बड़ा होगा उसके बारे में कुछ सोचा समझा है आप को तो राजा साहेब के यहाँ हजामत करने की नौकरी मिल गई है, कल राजा साहेब भी नहीं रहे तब क्या होगा? चल चल ज्यादा दिमाग मत लगा भगवान है वही सबका भला करेंगे! बीबी तो आग बबूला बोली आप अपना भला भगवान से करवाओ मुझे नहीं करवाना ये भला वला, ऐसा करो आप अपने हिस्से का डेढ़ घड़ा ले जाओ चाहे ब्राह्मण खिलाओ चाहे कुत्ता मगर मेरे हिस्से के घड़े को हाथ नहीं लगाए वर्ना मैं अपने बच्चों सहित अलग हो जाउंगी। फिर भी नाइ नहीं माना बोला तुझे अलग होना है अलग हो जा घड़ा लेना है घड़ा लेजा मेरे हिस्से जो भी आएगा मैं उसे ही दान करूँगा। अब शिवपाल ने बुद्धि लगाई, बोले भाभी डेढ़ घड़ा आप लेलो और डेढ़ घड़े के साथ हम पुरे परिवार सहित भइया का साथ देंगे परोपकार के कार्यो में। नाइ की हालात और लाचारी देख नाइ के चाहनेवालों ने भाभी की बड़ी बेइज्जती की मगर भाभी को मोह जो छाप लिया था और भाभीजी ने अलग होने का निर्णय ले ही लिया।

अब सभी लोगों के सामने एक एक घड़ा बाट दिया गया बाकि बचे तीसरे घड़े को बाटने के लिए एक और घड़ा मंगाकर उसे आधे आधे कर बाटा गया। डेढ़ घड़ा मिलते ही नाइ को उन तीन घड़ो की याद आने लगी जो ब्राह्मण ने दिया था, उसे यह बात सताने लगी कि उसके पास तीन घड़े थे अब डेढ़ ही बचे, फिर तो क्या नाइ दिन रात मेहनत कर उसे तीन बनाने में लग गया। कठिन मेहनत की वजह से नाइ का स्वभाव भी चिडचिढ़ा होने लगा, उसे अपने परिवार के सिवा दुसरो पर विश्वास भी नहीं रहा वह दिनप्रति दिन डिप्रेशन में हो गया। अब स्वभाव बदलने की वजह से राजा के साथ भी व्यवहार उचित नहीं करता था कभी हजामत करते समय ऐसी बहकी बहकी बातें करता था कि राजा को भी क्रोध आ जाय, काफी कुछ राजा ने समझाया मगर नाइ की लालच बढ़ती ही जा रही थी, और घड़ा था कि डेढ़ से दो होने का नाम ही नहीं ले रहा था। एक दिन नाइ की बीबी राजा के यहाँ गई और हजामत के लिये खुद नौकरी मांगी। राजा भी नाइ से परेशान था सोचा चलो इसे भी रख लेते है। अगले दिन नाइ ने देखा कि उसकी बीबी भी राजा की सेवा में लगी हुई है तो नाइ को गुस्सा आया और वह नौकरी छोड़छाड़ चल दिया।

बीबी भी दिनरात मेहनत कर घड़े को भरने में लगा रही थी जिसकी वजह से उसके अंदर लालच का रावण बढ़ता जा रहा था मगर न नाइ का घड़ा दो हुआ और न बीबी का, दोनों की खुशहाल जिंदगी में लालच ने ऐसा घर बनाया कि बच्चे आवारा हो गए उसके भाई बंधू शराबी कबाबी अय्यास। आये दिन रोज गुंडा गर्दी करते लूट घोटाला चोरी ठगी सारे हथकंडे अपना लिए बीबी और नाइ सहित उसके सारे बाल बच्चे और नात रिश्तेदार भाई बंधू जाति बिरादरी के लोग मगर किसी का भी घड़ा डेढ़ से दो नहीं हुआ।

एक दिन नाइ की बीबी से राजा ने पूछा कि बात क्या है जो तुम लोग इतना परेशान हो। नाइन पहले तो हिल्ला हवाली कर रही थी मगर राजा के बहला फुसला कर पूछने पर राजा को घड़े वाली बात बता ही दी फिर तो क्या राजा को सब समझ में आ गया क्योंकि राजा एक संत तपस्वी व्यक्ति था। फिर तो राजा ने नाइ को भी बुलवाया और दोनों को समझाया कि ये डेढ़ का मतलब अधूरी जिंदगी, अकेले तुम हँस तो सकते हो मगर जश्न नहीं मना सकते, जिंदगी जी तो सकते हो मगर महफिल नहीं सजा सकते। लालच माया छोड़ो दोनों फिर से एक हो जाओ और ख़ुशी ख़ुशी अपनी जिंदगी बिताओ। घड़े डेढ़ है उन्हें तीन बनाओ और जिंदगी में फिर से वापस आओ अन्यथा ये लालच जो है खुद तो डूबेगी ही साथ ही साथ अपने कुल खानदान भाई बिरादर नात रिश्तेदार सबको ले डूबेगी। मगर राजा की बात दोनों को तभी तक याद रही जब तक राजा बोल रहा था। आज भी दोनों नौकरी कर रहे है बच्चे दाइयों के हाथ पल बढ़ रहे है, नौकरों ने खाना बनाया तो खाया वर्ना होटलों का रुख कर रहे है मगर घड़ा है कि डेढ़ से दो होता नजर नहीं आता इन्हें कौन समझाये कि भाई लालच छोड़ो घड़ा दो नहीं तीन हो जायेगा अपने आप तीन का मतलब मियां बीबी और बच्चे।

हालात कुछ ऐसे ही है यूपी में माया और मुलायम के साथ ही साथ उनके चाहने वालों के। ये दो ही पार्टियां ऐसी है जो यूपी वालों के घड़े डेढ़ से तीन नहीं होने दे रही है समय रहते जाग जाओ वर्ना समय जब सुलायेगा तो जागने का अवसर फिर नहीं आएगा।

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