Wednesday, 22 June 2016

कर्म पर मनुष्य का अधिकार है और फल परिस्थितियों पर आधारित है इसका मतलब परिस्थियां ही भाग्य है?

भरोसा ऊपरवाले पर,तो जो लिखा है तक़दीर मैं वही पाओगे।
मगर, भरोसा ख़ुद पर है तो वही मिलेगा जो आप चाहोगे !!

पानी को चाहे कितना भी उबालो मगर समय आने पर वह ठंडा ही हो जाता है, वैसे ही किसी भी मनुष्य पर उपदेश का प्रभाव होता है उपदेसक के हटते ही बात जस की तस।
मगर दुःखी ना हो! कर्म पर मनुष्य का अधिकार है और फल परिस्थितियों पर आधारित है, इसका मतलब परिस्थियां ही भाग्य है। नहीं माना कि परिस्थितियों की वजह से मनुष्य को कर्म के अनुसार, जो वह चाहता है वह नहीं मिलता, मगर ये भी तो हो सकता है कि मनुष्य जितना करता है, उससे अधिक फल की कामना करता हो, और करे भी क्यों नहीं, जब वह देखता है कि, कोई वही कर्म करके जो फल प्राप्त कर लेता है तो दूसरे को क्यों नहीं मिलता? चाहत गलत आपके अनुसार नहीं, मगर प्रकृति के अनुसार है।

सबसे पहले विचार करने योग्य बात है कि परिस्थितियां है क्या? माना लोगों को दिल्ली जाना है,कोई गुरुग्राम में है, कोई गाज़ियाब, तो कोई मुम्बई आदि। किसी के पास फ्लाइट का शाधन, किसी के पास कार का तो कोई पैदल, अब समझने की बात ये है कि कौन कहाँ है, उसके पास शाधन क्या है, वह चलता कब है,और आगे चलकर कैसे मार्ग मिलते है, कैसा ट्रैफिक होगा और संशाधन अंत तक साथ देगे या नहीं आदि आदि। बस इसी तरह परिस्थितियों का समझा जा सकता है, मगर इनपर विजय कैसे पाया जाय, इसके लिए कुछ निम्न बातों को विचार करना होगा।

सबसे पहले अपने संशाधन का सामर्थ्य समझे! उस संशाधन से कितने समय में पहुँच सकते है, कब पहुचना है, उसके अनुसार चलने का समय तय करें! मगर हो सकता है रास्ते में आपका संशाधन ख़राब हो जाय, फिर तो महत्वपूर्ण ये ये है कि आपको पहुचना कितना मूल्यवान है, उस मूल्य के आधार पर पहले से ही मान कर चलें कि संशाधन ख़राब होने पर दूसरा विकल्प उपलब्ध हो, जिससे आपका समय न बर्बाद हो, और पहुचना जितना महत्वपूर्ण हो उतना विकल्प लेकर चलें। सभी आने वाली बाधाओं पर गंभीरता से विचार करें और सभी बाधाओं का विकल्प चुनें! फिर भी परिणाम पर आपका अधिकार नहीं है।  कुछ हद तक आप परिणाम के नजदीक हो सकते है, मगर अधिकार कर पाना इतना कठिन है जितना मनुष्य के पास विकल्प नहीं है।

जब विकल्प का अभाव होता है तभी हमें भाग्य पर विचार करना होता है, अन्यथा परिणाम की लागत इतनी अधिक हो जायेगी कि परिणाम महत्वहीन हो जायेगा। फिर दिल में ख्याल उठना ही चाहिए कि फल मनुष्य के अधिकार की बात नहीं, मगर एक बात है कुछ लोग बिना कर्म के भी परिणाम पा जाते है, क्योंकि परिस्थितिया जो दूसरे मनुष्य द्वारा, प्रकृति के द्वारा या खुद के द्वारा जो पैदा की जाती है, वही कई बार हमें अनचाहा परिणाम दे जाती है, जिसे हम समझ नहीं पाते और भाग्य मान लेते है, और मानना ही पड़ेगा क्योंकि हम कभी भी संपूर्ण ब्रह्माण्ड की परिस्थितियों को अपने बस में नहीं कर सकते! ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियों पर प्रत्येक मनुष्य का अधिकार है तो निश्चय ही आपका भी है मगर सारी शक्तियां आपके लिए कार्य करें ऐसा न किसी के लिए हुआ है और न होगा चाहे खुद ब्रह्मा ही क्यों न अवतरण ले लें। मगर ये न भूलें कि, एक बार चन्द्रगुप्त ने कहा आचार्य चाणक्य से, जो भाग्य में लिखा होगा वह तो मिलेगा ही, तो चाणक्य ने कहा, क्या पता भाग्य में लिखा हो कि कर्म करने से ही मिलेगा, तो कर्म तो करना ही होगा।

कर्म करें परन्तु जैसा कि आजकल के राजनेताओं के कर्म है वैसा नहीं, उतना अधिक विकल्प पर विचार करना अधिक से अधिक विकल्प को साथ रखना कि फल अवश्य मिले! सदैव मनुष्य को अधर्म के मार्ग पर ले जाता है। नेताओं जैसी सोच कि सत्ता चाहिए ही! यही अधर्म है। जब फल की कामना के लिए मनुष्य आतुर हो जाता है, तो यही अधर्म है। जिसके लिए भाग्य पर भरोसा करना ही धर्म है, वर्ना परिस्थितियों को मनुष्य इतना जटिल कर देगा कि विनाश के सिवा कुछ नहीं बचेगा। आज हम उसी दिशा में प्रयासरत है, हमारे नेता अनेकों रूप से विचार कर सभी विकल्पों को साथ लेकर चलने का प्रयास कर रहे है, जैसे जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद, भाईभतीजावाद, अलगाववाद विकासवाद,भ्रस्टाचार,गरीबी,रोजगार,शिक्षा इतने से भी काम न चले तो सब्सिडी और मुफ़्त सामग्री और शाधन का लालच आदि आदि, मगर भाग्य को भुलाने की वजह है कि आज की राजनीति गन्दगी से भरी पड़ी है, मेरी कामना यही है कर्म करें और विकल्प भी अधिक रखें मगर अधर्म के मार्ग से नहीं।

सत्यधर्म अपनी जगह होता है मगर खुद जीने के लिए कई बार मनुष्य को सत्य से अड़िग होना पड़ता है, क्योंकि परिस्थितिया होती है जीवन का आधार नीव। नीव से ऊपर उठने के लिए साफ सुथरा बनने के लिए हो सकता है मिट्टी भी लग जाय, मगर यदि नियत ठीक हो तो इस मिट्टी की परवाह किये बगैर आगे बढ़ें!!

दुख, शोक, जब जो आ पड़े, सो धैर्य पूर्वक सब सहो।
होगी सफलता क्यों नहीं कर्त्तव्य पथ पर दृढ़ रहो।।
अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है;
न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।
इस तत्व पर ही कौरवों से पाण्डवों का रण हुआ,
जो भव्य भारतवर्ष के कल्पान्त का कारण हुआ।।
आपको याद होगा महाभारत में जयद्रथ बध के लिए अस्त्र शस्त्र न उठाने का प्रण करनेवाले श्रीकृष्ण को भी सुरदर्शन चक्र उठाकर सूर्य को ढकना पड़ा था।
रामायण में बाली बध के लिए मर्यादापुरुषोत्तम  श्रीराम को छिपकर बाण चलाना पड़ा था। यही होती है परिस्थितिया और धर्म। और यही है जीवन। मगर गन्दगी को मिटाने के प्रयास और नियति का अंत नहीं होने दे! यही है जीवन का आधार और इसी सत्य से मिल सकता है हिन्दुस्तान!! ऐसे लोगों का साथ देना भी अधर्म है जो लोग सारे विकल्प अपने परिणामों पर उपयोग करते है। सारे विकल्पों को चुननेवाला अवश्य ही अधर्मी होता है ऐसे मनुष्य का बध करने में कोई दोष नहीं।

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