एक लड़का एक लड़की से प्यार करता था, प्यार भी बेहद लड़की कुछ भी बोले लड़का करने को तैयार, कभी भी वह उसका अहित नहीं सोचता था वह उसे ईश्वर अल्लाह सबकुछ समझता था। मात्र इसलिए कि वह लड़के को अपनी मीठी मीठी बातों से पागल कर चुकि थी। लड़की के प्यार में लड़का अँधा हो चुका था। मगर लड़की दिल से नहीं दिमाग से प्यार करती थी उसे आभास था कि उसका भविष्य कितना सुरक्षित होगा इस बात का उसे एहसास था। एक दिन लड़की बोली तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो लड़का बोला जहाँ से चाँद तारे भी मांगो तो लाकर दूँगा। लड़की बोली चाँद तारे लेकर मैं क्या करुँगी? मुझे भय है कि तू अपनी माँ को बेहद प्यार करता है एक न एक दिन उसके कहने पर मुझसे जुदा हो जायेगा। लड़के ने लाखों सफाई दी लेकिन लड़की मानने को तैयार नहीं, फिर लड़का बोला तुम्ही बताओ मैं क्या करूँ? लड़की बोली अपनी माँ का दिल लाकर मुझे देदो तो मुझे विश्वास हो जायेगा कि तुम मुझे नहीं छोड़ोगे। लड़का बोला इसमें कौन सी बड़ी बात मैं अभी गया और अभी आया।
इतना कहकर लड़का माँ का दिल लेने चल दिया लड़के का अन्धापन ही कहिए कि लड़के ने माँ का दिल मार कर निकाल ही लिया। दिल लेकर बेतहासा लड़की की तरह दौड़ा रास्ते में ठोकर लगी और लड़का गिर गया। माँ के दिल से आवाज आई बेटा चोट तो नहीं लगी फिर भी प्यार में पागल दिल हाथ में लिए मग़रूर लड़की के पास पंहुचा तो लड़की लड़के के इस कारनामे से बहुत अधिक हतोत्साहित हुई उसे विश्वास ही नहीं था कि कोई इंसान ऐसा भी हो सकता है। उसने तुरंत कहा रे मुर्ख तू इतना खुदगर्ज है मैंने तो तुझे आज जाना। जो व्यक्ति अपनी माँ का नहीं हो सकता वह मेरा क्या होगा जा तू इस हत्या का प्रायश्चित्त कर तेरे लिए यही सजा है।
कहते है प्यार अँधा होता है, प्यार का अन्धापन वह मीठा जहर है जो खाने में तो अच्छा लगता है मगर अंत बुरा होता है। प्यार करना ही है तो उससे कर जिसके बाद कोई दुनियां बचती नहीं गिरा तब भी जीता बचा तब भी। जहा किसी की हार नहीं होती चुनना है तो ईश्वर चुन बेवफ़ा नहीं।
मेरी उजड़ी हुई दुनियां को तू आबाद न कर,
अपने बीते हुए लम्हें ऐ बेवफ़ा तू याद न कर,
कैद में आये घायल परिंदे की बस यही है तमन्ना,
ये भूल चुका है उड़ना तू इसे कभी आजाद न कर।
इन शेरों शायरियों से ऊपर उठें ये तो प्रतिरोधक है इस ज़माने के। इनके चक्कर में इतना खुदगर्ज न बने कि बाद में प्रायिश्चित करने का अवसर भी न मिले।
ज़िन्दगी के पाँच सच सदा याद रखें!
1- माँ के सिवा कोई वफादार नही हो सकता…!!!
2- गरीब का कोई दोस्त नही हो सकता…!!
3- आज भी लोग अच्छी सोच को नही,
अच्छी सूरत को तरजीह देते हैं…!!!
४- इज्जत सिर्फ पैसे की है, इंसान की नही…!!!
५- जिस शख्स को अपना खास समझो….
अधिकतर वही शख्स दुख दर्द देता है…!!!
गीता में लिखे के अनुसार कुछ ऐसा बोल सकते है।
अगर कोई इन्सान,बहुत हंसता है , तो अंदर से वो बहुत अकेला है।
अगर कोई इन्सान बहुत सोता है , तो वह अंदर से बहुत उदास है।
अगर कोई इन्सान खुद को बहुत मजबूत दिखाने की कोशिश करता है और रोता नही , तो वह अंदर से बहुत कमजोर है।
अगर कोई जरा जरा सी बात पर रो देता है, तो वो बहुत मासूम और नाजुक दिल का है।
अगर कोई हर बात पर नाराज़ हो जाता है, तो वह अंदर से बहुत अकेला और जिन्दगी में प्यार की कमी महसूस करता है।
लोगों को समझने की कोशिश कीजिये ,जिन्दगी किसी का इंतज़ार नही करती , लोगों को एहसास कराइए की वह आप के लिए कितने खास है।
1- कुछ पाने के लिए विकल्प बदले जाते है संकल्प नहीं।
2- जब सड़क पर बारात नाच रही होती हो तो हॉर्न मार-मार के परेशान ना हो...... गाडी से उतरकर थोड़ा नाच लें! मन शान्त होगा। टाइम तो उतना लगना ही है..! कहने का मतलब दूसरों की खुशियों से परेशान न हो सो सके तो खुश होले वर्ना समय आपको बदल देगा।
3- रास्ते में अगर मंदिर देखो तो, प्रार्थना नहीं करो तो चलेगा . . पर रास्ते में एम्बुलेंस मिले तब प्रार्थना जरूर करना, शायद किसी की जिन्दगी बच जाये। क्योंकि मंदिर देख प्रार्थना आप अपने लिये करेंगे मगर एम्बुलेंस देख किसी गैर के लिये गैर पर किया उपकार ही धर्म है।
4- जो संघर्षरत हैं, वह लाख बार हार के भी, नही हार सकता..!
5- बादाम खाने से उतनी अक्ल नहीं आती...जितनी धोखा खाने से आती है.....!
6- एक बहुत अच्छी बात जो जिन्दगी भर याद रखिये! आप का खुश रहना ही आप का बुरा चाहने वालों के लिए सबसे बड़ी सजा है....!
7- खुबसूरत लोग हमेशा अच्छे नहीं होते, अच्छे लोग हमेशा खूबसूरत नहीं होते...!
8- रिश्ते और रास्ते एक ही सिक्के के दो पहलु हैं... कभी रिश्ते निभाते निभाते रास्ते खो जाते हैं, और कभी रास्तो पर चलते चलते रिश्ते बन जाते हैं...!
9- बेहतरीन इंसान अपनी मीठी जुबान से ही जाना जाता है, वर्ना अच्छी बातें तो दीवारों पर भी लिखी होती है...!
सम्राट चंद्रगुप्त ने एक बार चाणक्य से कहा, चाणक्य, काश तुम खूबसूरत होते?
चाणक्य ने कहा, 'राजन, इंसान की पहचान उसके गुणों से होती है, रूप से नहीं।'
तब चंद्रगुप्त ने पूछा, 'क्या कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हो जहां गुण के सामने रूप छोटा रह गया हो।'
तब चाणक्य ने राजा को दो गिलास पानी पीने को दिया।
फिर चाणक्य ने कहा, 'पहले गिलास का पानी सोने के घड़े का था और दूसरे गिलास का पानी मिट्टी के घड़े का, आपको कौन सा पानी अच्छा लगा।'
चंद्रगुप्त बोले, 'मटकी से भरे गिलास का।'
नजदीक ही सम्राट चंद्रगुप्त की पत्नी मौजूद थीं, वह इस उदाहरण से काफी प्रभावित हुई।
उन्होंने कहा, 'वो सोने का घड़ा किस काम का जो प्यास न बुझा सके।
मटकी भले ही कितनी कुरुप हो, लेकिन प्यास मटकी के पानी से ही बुझती है, यानी रूप नहीं गुण महान होता है।'
इसी तरह इंसान अपने रूप के कारण नहीं बल्कि उपने गुणों के कारण पूजा जाता है।
रूप तो आज है, कल नहीं लेकिन गुण जब तक जीवन है तब तक जिंदा रहते हैं, और मरने के बाद भी जीवंत रहते हैं।
पहले मैं होशियार था। इसलिए दुनिया बदलने चला था और आज मैं समझदार हो गया हूँ। इसलिए खुद को बदल रहा हूँ...।।
बात तो अच्छी है खुद को बदलना ही चाहिए! कहते है ज़माना ख़राब मगर आपको अच्छा बनने से किसने रोका है।
बुरा जो खोजन मैं चला बुरा न मिलिया कोय।
जौ दिल खोजों आपनों मुझसे बुरा न कोय।।
इन सभी बातों से भी बड़ी बात सब बातों का निष्कर्ष है कि-
योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनंजय ।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।
अर्थात- हे धनञ्जय अर्जुन कामना को त्याग कर सफलता और असफलता को एक समान मान कर तू अपने कर्म के प्रति एकाग्र रह। कर्म का कोई फल मिले या न मिले।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥
अर्थात तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू फल की दृष्टि से कर्म मत कर और न ही ऐसा सोच की फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं।
यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः ।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पंडितं बुधाः ॥
जिसके सभी कर्म कामना रहित हैं और जिसके सभी कर्म ज्ञान रूपी अग्नि से भस्म हो गए हैं, उनको बुद्धिमान लोग पंडित की उपाधि से विभूषित करते हैं।
शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबंधनैः ।
सन्न्यासयोगमुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि।।
ऐसा करने से तू कर्मों के शुभ-अशुभ फल से मुक्त हो जायेगा। कर्मों के फल का त्याग कर तू संन्यासी योगी होकर मुझसे आ मिलेगा।
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥
अर्थात- मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूं, न कोई मेरा अप्रिय है, न प्रिय है, परंतु जो भक्त मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं उनमें हूं। कुछ मूर्ख लोग कहते हैं कि भगवान भी अपनी कृपा करने में भेदभाव करते हैं – किसी पंर अपनी अधिक कृपा करते हैं और किसी पर कम। जबकि इस श्लोक में भगवान कहते हैं कि मैं सब भक्तों के प्रति समभाव रखता हूं।
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु: कौशलम-
अर्थात- निश्चित बुद्धि वाला व्यक्ति अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के फलों का भागी नहीं होता| इसलिए तू कर्म करते समय अपनी बुद्धि को स्थिर रख। इसी कुशलता को योग कहते हैं।सामान्यतः व्यक्ति अच्छे कर्मों के पुण्य का भागी होना चाहता है, परन्तु भगवान कहते हैं की जिस तरह बुरे कर्म के लिए पाप का भागी होना उचित नहीं है, उसी तरह से पुण्य फल की इच्छा रखना भी उचित नहीं है।
१. निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु अवश्य होगी।प्रत्येक मनुष्य के जन्म और मृत्यु का समय निश्चित है और वह आज ही है।
२. ईश्वर ने सभी प्राणियों को कर्म करने का अधिकार दिया है, लेकिन उस कर्म के फल पर उनका कोई अधिकार नहीं है। प्रत्येक का भाग्य उस के कर्म से बंधा है अर्थात हर मनुष्य अपने भाग्य का रचयिता है।
३.प्रत्येक मनुष्य के लिए परिस्थिति के अनुसार अपनी बुद्धि का प्रयोग करना आवश्यक है। सभी लोगों से अपेक्षित है की वे अपनी योग्यता, बुद्धि और पूर्ण ध्यान से अपना कर्त्तव्य समझ कर कर्म करें।
४. सभी से अपेक्षित है की वे अपने कर्म के प्रति निर्णय सोच विचार कर लें! निर्णय लेने के बाद उस पर कार्य रणभूमि के सैनिक की तरह से लें, यही कर्मयोग है।
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