Monday, 20 June 2016

मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता है।

मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता है और न अपराधी बनने की किसी में चेष्टा होती है, अपराधी बनाती है परिस्थितिया। फिर तो ऐसा कहना कि मनुष्य परिस्थितियों का दास है कुछ गलत नहीं होगा, होगा यदि मनुष्य भी ऐसा करे तो पशु से वह उत्तम क्यों है?

हम सजा देने में माहिर है और हो भी क्यों नहीं अपने आप को सर्वोत्तम जो समझते है। मगर थोडा समय हो तो सोचें सजा देने से बेहतर यह नहीं होगा कि हम उन परिस्थितियों पर विचार करें सजा उसे क्यों नहीं जो मनुष्य को अपराधी बनाने के लिए उत्पन्न कर रहा है। परन्तु सभी प्रकार की परिस्थितियों पर मनुष्य का अधिकार नहीं तो सजा देगा कैसे? एक बात तो है मनुष्य का यही अन्धापन है जब हराने लगता है तो वहा से तुरंत भाग लेता है और इसीलिए आज हम भारतीय संविधान का गीता की उपाधि देते है मगर कुछ भी हो संविधान गीता नहीं तो गीता बनने का आधार तो है, इसलिए ऐसा कह देना कि इसे कूड़े में डाल दो यही हमारी भूल होगी।

एक हँसते खिलते बचपन को अपराधी बनाने की अनेकों परिस्थितियां हो सकती है, जैसे पिता नसे में लिप्त हो माँ औरों के घर काम कर किसी तरह रोटी कमा पाती हो, बेटे को पढ़ने के लिए स्कूल से अधिक महत्वपूर्ण घर चलाने के लिए रोजगार हो, या स्कूल में कुछ बच्चों के पास आधुनिक सुख सुविधाओं का ढ़ेर लगा हो और दूसरा बच्चा उन सुविधाओं को देख अपने को तुच्छ समझने की भूल करता हो, या बच्चे ने कभी किसी नेता, अभिनेता या पूँजीपति का जलवा देख लिया हो और अतिशीघ्र उस जलवे को प्राप्त करना चाहता हो, या कोई बच्चा हँसी मजाक में अपने साथियों को खुस करने के लिए या अपने को बलशाली दिखाने के लिए दूसरे बच्चे को परेशान करता हो, चिढ़ाता हो, या बच्चा बचपन से अनाथ हो उसे खुद का पेट भरने के लिए लोगों की मार डाट गालियां खानी पड़ती हो, आदि आदि परिस्थितियां हो सकती है। मगर कुछ भी हो अपराधी तो इन परिस्थितियों को पैदा करनेवाला ही है। चाहे वह मनुष्य हो या प्रकृति हो या शासन व्यवस्था सरकार। अदालतों में सजा मनुष्य को देते समय इन परिस्थितियों को भी सजा देना होगा तब संविधान गीता के समकक्ष होगा और समकक्ष क्यों यही तो है गीता।

एक संवृद्ध शक्तिशाली संविधान बनाने के लिए इन परिस्थितियों पर विजय पाने के लिए हमें व्यक्तित्व निर्माण करना होगा और व्यक्तित्व निर्माण बचपन निर्माण से होगा, इसलिए सबसे पहले स्कूलों की व्यवस्था में नवीनीकरण करना होगा। हमें परिवर्तन करना होगा हमने पिछले दिनों में बदलाव किया बदलाव का अर्थ होता है चेंज बुरा भी और अच्छा भी,मगर परिवर्तन का अर्थ होता है चेंज सिर्फ अच्छा ही। हमने जो चेंज किया गुरुकुल से हटकर स्कूलों में यही तो अपराध की जननी है परन्तु इस बदलाव के लिए हम जिम्मेदार नहीं क्योंकि उस समय परिस्थितियों ने हमें ऐसा करने पर मजबूर किया तभी तो हम आगे बढ़ने के बजाय पीछे चले गए गुरुकुल से स्कूल पर आ गए, और आज भी परिस्थितियां इतनी आसान नहीं जब आप नवीनीकरण की बात करेंगे तो कुछ अज्ञानी लालची लोभी असामाजिक लोग इसे भगवाकरण का नाम दे विरोध जताएंगे मगर उन्हें भी सोचना होगा परिवर्तन कोई भगवाकरण नहीं और यदि भगवाकरण से ही परिवर्तन संभव है तो इसमे बुरा क्या है? बिना ऐसा किये आपही बताएं बचपन निर्माण कैसे होगा? आप जिस संस्कृति को अपनाने की वकालत करते है वहा के स्कूलों में ढिशूम ढिशूम गोलियां चलती है, बारह पंद्रह साल की बच्चियां गर्भवती हो जाती है, क्या आप ऐसा व्यक्तित्व निर्माण चाहते है? इसी माहौल ने आज भारत के टुकड़े टुकड़े किये है और टुकड़े ना हो इसके लिए सुदृढ़ संविधान का शीघ्र निर्माण हो यही हमारी कामना है।

जिस तरह चेंज हुआ गुरुकुल से स्कूल का उसी तरह न्याय से हम भटक गए संविधान में, चले थे भगवान बनने बन गए पैग़म्बर। हमारी संस्कृति उस न्याय की है जो न्याय, वह न्याय, जहाँ पक्षपात न हो जहाँ न्यायाधीश न्याय करते समय अपने बेटे, बीबी, भाई, जाति,धर्म, पिता,गुरु आदि किसी का भी ध्यान न रखे, बस न्याय तो न्याय करे। मजे की बात यह है कि हम जानते है कि हमारा संविधान पक्षपात पूर्ण है, इस संविधान में जाति का जिक्र है, धर्म का जिक्र है, नेता का जिक्र है, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि आदि का जिक्र है, जिसके नाम पर न्याय संग पक्षपात होता है, जब कोई नेता लाखों की सैलरी, अन्य सभी सुविधाएं फ्री, बिना टैक्स दिए, लेता है तो ईर्श्या होती है, मगर धर्म के नाम पर चार औरतों के साथ अन्याय करने में मजा आते समय सब कुछ भूल जाता है,सत्य तो पसंद है मगर सत्य का सामना करना कोई नहीं चाहता, शाहस करें! पक्षपात ऐसा मीठा जहर है जो जीने भी नहीं देता और मरने भी नहीं देता, फिर भी परिवर्तन नहीं चाहते, पता नहीं किस गुमान में भटके पड़े है, भाई अहंकार छोड़ो! इसी तरह का अहंकार कभी नोकिया मोबाइल कंपनी, अम्बेडकर फिएट कार कंपनी, पादरी धर्मवालों आदि लोगों को भी था, मगर क्या हुआ? नहीं परिवर्तन किया, नहीं किया इनोवेसन, नहीं किया नवीनीकरण, तो आज समय ने उन्हें संसार से बाहर कर दिया, यदि आप भी बाहर जाने को तैयार बैठे हो तो कोई बात नहीं वर्ना समय है, परिवर्तन के लिए कमर कसें और परिवर्तन का सहभागी बने!

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