छछूंदर भी सर पर लगाये चमेली, कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली, मानवता के पतन की कहानी।
राजा भोज का दरबार लगा हुआ था लोग ठहाके लगा रहे थे क्योंकि दरबार में किसी को किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं थी प्रजा भी मस्त और प्रशासन भी मस्त परंतु ये दिन भी कुछ खास था कि दरबार में दो व्यक्ति लड़ते झगड़ते प्रवेश किये एक ने जोर से गुहार लगाई राजन न्याय करें! तभी दूसरे ने भी वैसी ही गुहार लगाई। राजा ने दोनों को शांत करवाया और थोड़ी देर आराम करने को कहा, जब वे दोनों थोडा शांत चित्त हुए तो भोज ने एक से पूछा बताओ क्या बात है? वादी बोला राजन मैंने अपनी जमीन दो दिन पहले इन्हें बेच दी थी, आज ये मेरे पास मुद्राओं से भरा हुआ एक घड़ा लेकर आये और बोलरहे है कि ये घड़ा उसी जमीन से निकला है जो तुमने बेचीं है, ये घड़ा तुम्हारा है तुम इसे रखो। राजन जब दो दिन पहले जमीन मैंने बेच दी तो फिर घड़ा मेरा कैसे हुआ? आप इन्हें आदेश दे कि घड़ा ये अपने पास रखें। खरीददार भी बोला राजन मैंने इनसे सिर्फ जमीन खरीदी थी, जब जमीन की खुदाई किया तो उसमें से ये मुद्राओं से भरा घड़ा मिला चूँकि मैंने घड़े की कीमत दी नहीं है तो घड़ा कैसे रखूँ??
राजा ने दोनों से दो दिन का समय माँगा क्योंकि उन दिनों भारतीय संविधान जैसा कुछ भी नहीं था कि धारा इतना इतना के तहत अदालत इस निष्कर्ष पर पहुँची कि निर्भया काण्ड के दोषी नाबालिक को संविधान की कमियो के आधार पर रिहा किया जाता है। उन दिनों तर्क वितर्क के आधार पर उचित न्याय किया जाता था, इसलिए राजा ने अपने मंत्रियों से तर्क वितर्क किया कुछ ने कहा घड़ा क्रेता को, कुछ ने विक्रेता को, कुछ ने कहा संपत्ति राजा की, तो कुछ ने कहा मुद्रा रखने वाले का पता लगा उसे देनी चाहिए। और इतना भी मुश्किल नहीं था कि घड़ा रखने वाले का पता न लगाया जा सके। परंतु उचित न्याय न समझ राजा ने फैसला किया कि इस मुकदमे का फैसला लगभग 1000 साल बाद ईमानदार समझकर जनता जिसे दिल्ली की सत्ता सौपेगी वही करेगा।
राजा भोज परमार वंश के नौंवे राजा थे, धर्म, खगोल विद्या, कला, कोषरचना, भवननिर्माण, काव्य, औषधशास्त्र आदि विभिन्न विषयों के बहुत बड़े ज्ञाता थे जिन्होंने इन विषयों पर पुस्तकें भी लिखी हैं जो आज भी वर्तमान हैं। उन्होने सन् 1000 ई. से 1055 ई. तक राज्य किया। इनकी विद्वता के कारण जनमानस में एक कहावत प्रचलित है, "कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तैली।" सरस्वतीकंठाभरण, शृंगारमंजरी, चंपूरामायण, चारुचर्या, तत्वप्रकाश, व्यवहारसमुच्चय आदि अनेक ग्रंथ इनके लिखे हुए आज भी मौजूद हैं। इनकी सभा सदा बड़े बड़े पंडितों से सुशोभित रहती थी। इनकी पत्नी का नाम लीलावती था जो बहुत बड़ी विदुषी थी।
जब भोज जीवित थे तो कहा जाता था-
अद्य धारा सदाधारा सदालम्बा सरस्वती।
पण्डिता मण्डिताः सर्वे भोजराजे भुवि स्थिते॥
(आज जब भोजराज धरती पर स्थित हैं तो धारा नगरी अच्छे आधार वाली है, सरस्वती को सदा आलम्ब मिला हुआ है, सभी पंडित आदृत हैं।)
जब उनका देहान्त हुआ तो कहा गया -
अद्य धारा निराधारा निरालंबा सरस्वती।
पण्डिताः खण्डिताः: सर्वे भोजराजे दिवं गते ॥
(आज भोजराज के दिवंगत हो जाने से धारा नगरी निराधार हो गयी है ; सरस्वती बिना आलम्ब की हो गयी हैं और सभी पंडित खंडित हैं।)
ऐसे महान युग का अंत हुआ जहाँ प्रजा भी किसी राजा से कम ईमानदार सत्यनिष्ठ और चरित्रवान नहीं होती थी। खैर एक हजार वर्ष बाद जनता भ्रस्टाचार, कुशासन, अत्याचार, से त्रस्त होकर नए युग नई राजनीति के लिए दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को सत्ता सौपकर प्रयोग किया, जिनकी अदालत में यह मुकदमा फिर से पेश हुआ मगर अब क्रेता विक्रेता नहीं रहे उनके वंशज थे और राजा भोज की जगह गंगू तेली अरविंद केजरीवाल। केजरीवाल ने पूछा बताओ भाई क्या बात है तो विक्रेता के वंशज ने जमीन विक्री की बात बोलते हुए कहा हज़ूर मेरे पूर्वजो ने जमीन बेचीं थी घड़ा नहीं इसलिए घड़ा मुझे मिलना चाहिए। ठीक उसी तरह क्रेता के वंशज ने कहा हुजूर जमीन जब इनके पूर्वजो ने बेचीं तब उस जमीन में घड़ा था या नहीं था यह किसी को नहीं पता मगर जमीन खरीदने के बाद हमारे पूर्वजो के भाग्य से यह घड़ा मिला है इसलिए इस घड़े पर मेरा अधिकार है। केजरीवाल ने सोचा ये तो हमें बेवकूफ समझ रहे है, घड़ा अपने पास रखते हुए, फिर तो क्या आव न देखा न ताव लात मार दी प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव जैसा दोनों को, अब वेचारे कुछ दिन हल्ला गुल्ला किये फिर तो शांत बैठना ही था।
अब सोचने की बात यह है कि देश वही हिन्दू वही मगर इन हजार सालों में ऐसा क्या हुआ? मात्र हमने विदेशी शासकों के साथ कुछ वर्ष क्या गुजारे कि राजा तो राजा प्रजा भी उलट गई, देने की बात लेने पर आ गई, सबके सिद्धांत बदल गए सबके चरित्र बदल गए। विदेशी शासकों ने सिर्फ इस देश से धन ही नहीं लूटा। यदि धन ही लूटा होता तो बड़ी आसानी से हम इन सत्तर सालों में पुनः धनवान हो जाते, मगर उन्होंने जो चरित्र लूटा वो इतनी आसानी से पूरा होता नजर नहीं आ रहा है। इसके लिए हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में सुधार करना होगा, ताकि व्यक्ति सिद्धांतवान हो, सत्यनिष्ठावान हो हमें व्यक्तित्व निर्माण करना होगा तब यह देश पुनः सोने की चिड़िया होगा। अन्यथा ऐसे ही शासक मिलेंगे और ऐसी ही प्रजा होगी जो आरोपी तो आरोपी दोषी को भी सत्ता सौप देगी। यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है सिर्फ कुछ इतिहास और उन युगों की सच्चाई बताने के लिए मैंने राजा भोज और केजरीवाल का नाम लिया। ताकि हम सभी अपने उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सके।