आरक्षण की आड़ में धनिकों का गजब हैं खेल,
क्षत्रिय, ब्राह्मण, बैश्य और हरिजन सभी मांगे तेल।
मुर्ख है वे लोग जो कहते है आरक्षण चाहिए,
जिंदगी भर गुलामी और भीख में क्षण चाहिए।
दोस्त ज़िंदगी हमेशा पाने के लिए ही नही होती,
समझ हर बात समझाने के लिए ही नही होती।
याद तो अक्सर आती रहती है आप हिन्दुओं की,
मगर सचेतो हर याद जताने के लिए नही होती।।
आज नया कुछ भी नहीँ है यारों वही दिल पुराना है।
तुम्हे समझाने की कोशिश मगर समझ न आना है।।
फासलों से अगर मुस्कुराहटें लौट आये, तुम्हारी।
तो तुम्हें हक़ है कि तुम दूरियाँ बना लो मुझसे..।।
जब भी करीब आता हूँ बयां दिल सुनाने के लिए,
जिंदगी दूर रखती हैं न जाने किसे सताने के लिये!
महफ़िलों की शान धनिकों का गुलाम न समझना,
मैं तो अक्सर हँसता हूँ खुद गम छुपाने के लिये।
जख्म तो हम भी अपने दिल में तुमसे गहरे रखते हैं!
मगर हम जख्मों पे मुस्कुराहटों के पहरे रखते हैं!!
यार नफरत करने वाले भी गज़ब का प्यार करते हैं।
सच में जब भी मिलते हैं कहते हैं तुम्हें छोड़ेंगे नहीं।।
न्याय बिकता है यहाँ झूठ भी बेच देते है लोग,
सब तो सब गुम्बारो भरकर हवा भी बिक जाता है।
आकाश तालाब तीनो लोको में फैला है पानी,
मगर बोतल में बंदकर यहाँ पानी भी बिक जाता है।।
समझते हो नेता लोग तुम्हे आरक्षण खैरात में देते है।
तुम्हारी जिंदगी में ग़ुलामी दे मलाई खुद चाट लेते है।।
कहते है जाति के आधार पर हम देते है आरक्षण,
उकसा लड़ाते है कि हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
मगर कोई बच्चा पैदा होते ही पूँजीपति क्यों?
यहाँ एक बच्चा अरबपति दूसरा कीड़ो सा बेकार है।।
दम है तुझमे समानता लाने की तो मुझसे बात कर,
सभी के मरने पे उसकी आधी संपत्ति देश में बांट कर।
आधी संपत्ति उसके बच्चों को अवश्य देना चाहिए,
बढ़ती खाई को पाट मानवता का रूप होना चाहिए।
है किसी सरकार या नेता में ऐसा कर दिखाने का।
पागलों जागो नेता सिर्फ कुर्सी के लिए लड़ाने का।
निन्यानबे प्रतिशत धन एक प्रतिशत लोगो में है,
सम्पदा सभी में बराबर बाटें या आरक्षण चाहिए।।
आदर्श व्यवस्था निर्भीक संविधान की नीति बढ़ाए,
अमीरी गरबी नफ़रत मिटा मानवता का दीप जलाए।।
प्रकृति ब्रह्माण्ड की किसी भी सम्पदा का बंटवारा नहीं करती है, बंटवारा अपनी सुविधा के अनुसार सरकार कराती और करती है। जिसमें उसे पर्याप्त सम्पदा शक्ति का लाभ होता है, इसी के सहारे अमीरी गरीबी का जन्म होता है। अन्यथा मानव के अलावा किसी भी जीव में अमीरी गरीबी का चलन नहीं है, इस चलन को चालू रखने का नाम है आरक्षण, जब तक ऐसी प्रथा रहेगी तब तक जनता आपस में लड़ेगी और गरीब की गरीबी कभी नहीं मिटेगी। यदि सत्य मार्ग पर चलना है तो सम्पदा का समान रूप से बंटवारे के लिए नेता चुनें न की आरक्षण का चम्मच चटाने वाला ठग, जिस दिन जनता को मेरी बातों का एहसास हो जायेगा, उस दिन से ठगी लालच का अंत हो जायेगा। दुनियां में ऐसा भी हो सकता है, कि यदि कोई व्यक्ति का देहांत हो तो उसकी संपत्ति का आधा हिस्सा पुरे देश के लोगो में बाट दिया जाय और आधा उसकी संतानो को, जिसका परिणाम यह होगा की धीरे धीरे समानता बढ़ेगी और नफ़रत कम होगी। यदि यह विचार उचित है तो इसका प्रचार प्रसार करें...!!!
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