Sunday, 14 August 2016

क्रांतिकारी बलिदान हुए सत्ता मिली दलालों को।

घनधोर काली घटा छाई थी बादलों में बिजलियां चमक रही थी, खूब घड़ घड़घड़ाहट की आवाज के साथ वर्षा ऐसी हो रही थी कि सामने दो मीटर भी देखना मुश्किल था, ऊपर मुँह किये तो तेज बुँदे चेहरा लाल कर जाती, ऐसी स्थिति में जिधर देखो उधर पानी पानी ही नजर आ रहा था, कही एक इंच भी जमीन नहीं दिख रही थी, बहुत से जीव बाढ़ में बह गए, कुछ संघर्ष कर पानी निकाल रहे थे कुछ डरपोक बचे वे किसी पेड़ पर शरण लिए हुए थे। पेड़ ऐसा था जिसपर साँप बन्दर और इंसान ने शरण ले रखा था। कुछ ऐसा ही मन्जर था सन 1947 की आजादी का...। बात इसके आगे की बोलू एक कहानी याद आ गई कि एक लड़का था रोज रोज माँ से पैसे ले जाता था, बड़े मजे से खर्च कर आता था, कभी मोबाइल, कभी लैपटॉप, कभी कपड़े तो कभी बाइक की मांग करता माँ बाप अच्छे थे, मांगे मान लेते थे, मगर मांगे ऐसी की कभी कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी, एक के बाद एक मानो सारी दुनियां खरीदने की तमन्ना हो बेटे में, एक दिन पिता ने सोचा कि इस कदर तो बेटा बरबाद हो जायेगा, अचानक से बेटे ने एक लाख वाली बाइक खरीदने की मांग लगा दी तो पिता बोला ठीक है कल तुम दो सौ रुपये कमा कर ले आओ तो परसों मैं बाइक खरीद दूँगा, बेटा भी सोचा इसमे कौन सी बड़ी बात, अगले दिन कमाने के लिए निकल गया, देखा एक जगह मकान का निर्माण हो रहा था, निर्माण कराने वाले से काम माँगा तो आसानी से काम भी मिल गया और शाम तक दो सौ रुपये देने की बात भी हो गई, शाम उस दिन की ऐसी कि हो ही नहीं रही थी ऊपर से भूख जोरों की परन्तु बाइक की लगन थी तो किसी न किसी तरह समय गुजार ली बेटे ने, जब दो सौ रूपया लेकर घर पंहुचा तो अपनी शर्त पूरी करते हुए बोला ले आओ एक लाख। तो पिता बोला ठीक है पहले ये दो सौ रुपये तुम कुँए में डाल आओ, बेटा पैसा लिए कुँए के पास गया कभी हाथ देखता कभी पैसा मगर खुद की कमाई थी इसलिये कुँए में डालना आसान नहीं था और डाल भी नहीं पाया पैसा वापस लेकर आया और बोला आज मैं समझ गया पैसे का महत्व आज के बाद से मैं भी कमाऊँगा।

काश ऐसा ही कोई पिता मिल गया होता अंग्रेजो से आजादी की बात करनेवालों को तो समझ में आ गया होता कि आजादी के लिए कितनो ने गोलिया खाई कितने चढ़ गए फांसी पर मगर ना तो उन्होंने ना उनकी माओं में आंख में आशू भरे अगर आंशू आ जाते तो बचे क्रांतिकारियों के हौसले पस्त हो जाते, मगर जिन्हें यह ज्ञात की आजादी चरखे से आई या आंदोलन से उन्हें ही  एहसास है आजादी का अर्थ। अब बातें पेड़ पर जान बचाते सांप बन्दर और इंसान की तो सांप ने बाढ़ का फायदा उठा पाकिस्तान के नाम पर भारत को अलग करवाया जो इंसान उस डाल पर थे वे तो बाढ़ की डर से छिपे बैठे थे जिन्होंने सांपो की बात मानी, उन्हें क्या बता बाढ़ में संघर्ष कर कितनो ने अपनी जान की बाजी लगा धरती को खाली कराया है। खाली करनेवाले वेचारे गुम सुधा हो गए और डाल पर जान बचानेवालों ने देश का सौदा कर लिया। बंदरों ने भी कम चाल नहीं चली, मुफ्तखोर इंसानो के साथ मिल खूब दलाली खाई कोई लेखक बन कोई व्यापारी, तो कोई ठेकेदार,कलाकार आदि मगर जिन्होंने गोली खायी पहली बार एक ऐसी सरकार आयी, जिसे उन क्रांतिकारियों की याद आयी, वर्ना देश कर्जदार हो गया था एक खासमखास असभ्य समाज का जिनमें न कोई नीति थी न कोई धर्म, एक ही कार्य था इनलोगों का कि करो घोटाला बनाओ धन।
    उस लड़के की तरह बात भी इन लोगो को समझ में बात आ जाती कि आजादी का अर्थ क्या होता है? आज सत्तर साल हो गए न तो आरक्षण हट पाया और न उचित संविधान बन पाया। देश में दो दो संविधान चलते है। किसी पी एम ने इतनी हिम्मत भी जुटाई कि पी ओ के की बात भी कर पाएं। बड़ी खुशी की बात है कि श्री नरेन्द्र मोदी जी ने पहली बार कही कि पी ओ के भारत का अंग है। एक पाकिस्तानी सरकार है हराम की मिली हिंदुस्तान की धरती हजम नहीं हो रही और चाहिए और चाहिए हरामजादों को। यदि पहली बार ही हराम की धरती नहीं दी गयी होती तो क्या हमारे क्रांतिकारियों में इतना दम नहीं था कि देश आज़ाद करा पाते...? खूब आसानी से करा लेते अंग्रेज जिनसे भय खाते थे, उनसे तो बातें ही नहीं कर पाते थे। अगर कुछ गद्दारो ने दख़ल नहीं दिया होता तो अंग्रेज भय बस खुद ही बग़ैर बताये भाग जाते। मगर जो कुछ हुआ अब उसे बदलना संभव नहीं, मगर जो कुछ बरबाद होने वाला है उसे तो रोका जा सकता है। अब तो सत्तर साल बीत गए अब और समय नहीं बरबाद होने चाहिए। कुशल नेतृत्व चुनने की आदत बनाएं, और देश को सही ढंग से भ्रस्टाचार, अत्याचार, गरीबी और अशिक्षा आदि से आजादी दिलाएं।
              !!जय हिन्द जय भारत!!

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