कभी कभी अचानक दिल में ख़याल आता है कि हम भी काश चंद्र शेखर आजाद, भगत सिंह, वीर सावरकर आदि होते परन्तु न तो अब अंग्रेज सरकार है और न मुग़ल बादशाह फिर तो ख्वाइस पूरी हो तो कैसे हो। खास बात ये है कि ऐसे विचार तब आते है जब हम भगत सिंह या सुखदेव आदि जैसे क्रांतिकारियों के बारे में पढ़ते या सुनते है, तब जी करता है अनायास ही जिए जा रहे है, न तो कोई रस है और न कोई कड़वापन फिर किस बात की जिंदगी क्या मजा है जीने में जब अलग एहसास नहीं है सीने में। परन्तु निराश ना हो ऐ जिन्दगी मुग़ल साम्राज्य ना सही अत्याचार का अन्त भी नहीं फिर करने को तो बहुत है मगर जीवन ही छोटा है शायद कर पाऊ या नहीं यही उलझन भी होती है मगर जितने दिन प्रारम्भ करने में गुजार रहा हूँ उतने तो कम ही हो रहे है, किसी ने क्या खूब कहाँ उम्र छोटी नहीं अगर हम जीना देर से शुरु ना करें तो।
हाथ में झाड़ू सर पे सफ़ेद टोपी भ्रस्टाचार के कंधे से राजनीति में आये लोग।
आतंकी के मरने पर जनाजे में शामिल होकर आतंकी ही करते है वियोग।।
समाज में छिपे भेड़ियों को पहचान लेना सबसे बड़ी सफलता होती है। करने के लिए तो अभी भी बहुत कुछ है सिर्फ बंदूकों या तलवारों से ही युद्ध नहीं होता, सबके किरदार अलग अलग होते है यदि पिक्चर में सभी हीरो ही होंगे तो क्या पिक्चर बन सकती है हर कहानी में विभिन्न अदाएं होती है जहाँ खड़े है वही से अपना किरदार अदा करें! ज़िन्दगी जीने में देर हुई नहीं कि उम्र छोटी हो जायेगी।
ये जिंदगी नहीं है आसान सिर्फ प्रयास ही प्रयास है।
जीत यहाँ किसी को भी नहीं बस एक अभ्यास है।।
चुनौतियां ख़त्म होती नहीं फिर किस बात की जीत।
एक ही चुनौती बार बार आये तो मिलती है सीख।।
हार भी कुछ अजीब है क्योकि हार देती है तारीफ।
तारीफ़ मुर्दो की होती है जिन्दो को ये नहीं है नसीब।।
जीना है तो नीति के अनुसार साम, दाम, दण्ड, भेद क्रमशः अपनाएं! इसलिये सबसे पहले मित्रता पर विचार होना भी चाहिए और कैसी मित्रता? जैसे दूध और पानी की....।पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया..।
जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा- मित्र तुमने अपने स्वरुप का त्याग कर मेरे स्वरुप को धारण किया है....।
अब मैं भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे अपने मोल बिकवाऊंगा।
दूध बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब पानी कहता है..।
अब मेरी बारी है मै मित्रता निभाऊंगा और तुमसे पहले मै चला जाऊँगा.. । दूध से पहले पानी उड़ता जाता है।
जब दूध मित्र को अलग होते देखता है, तो उफन कर गिरता है और आग को बुझाने लगता है।
जब पानी की बूंदे उस पर छींट कर उसे अपने मित्र से मिलाया जाता है तब वह फिर शांत हो जाता है।
पर इस अगाध प्रेम में..थोड़ी सी खटास- निम्बू की दो चार बूँद, डाल दी जाए तो दूध और पानी अलग हो जाते हैं..।
समझ गए है, थोड़ी सी मन की खटास अटूट प्रेम को भी मिटा सकती है।
"क्या फर्क पड़ता है, हमारे पास कितने लाख, कितने करोड़, कितने घर, कितनी गाड़ियां हैं।"
खाना तो बस दो ही रोटी है, जीना तो बस एक ही ज़िन्दगी है। फर्क इस बात से पड़ता है, कितने पल हमने ख़ुशी से बिताये, कितने लोग हमारी वजह से खुशी से जीए। लेकिन ....। ये क़सीदे
झोली फैलाये बैठा हूँ कहने को कुछ अल्फ़ाज़ नहीं।
माँगू तो मैं क्या माँगू मुझे तेरे सिवा कुछ याद नहीं।।
तभी तक जब तक लोग प्यार की भाषा समझें अन्यथा टिट फ़ॉर टैट, गोली का जबाब तोप से, ईंट का जबाब पत्थर से जो गुलदस्ता देकर दगा करे उसकी कब्र पर उसी गुलदस्ते का फूल चढ़ाए, नेता हो या बेटा क्षमा या बर्दास्त की एक सीमा होती है। सीमा पार करने वाले को समय कभी माफ नहीं करता जिसने माफ़ किया वह सीमा पार हो जाता है। जिंदगी जिए घड़ी की सुइयों की तरह कोई मोटी कोई छोटी किसी की चाल तेज मगर जब दुश्मन के बारह बजाने हो तो सब एक साथ आ जाती है।
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