Tuesday, 5 July 2016

जिम्मेदार जनता या नेता? यूपी का रुकता विकास

 मायावती लूटी मुलायम लूटे औ लूटे लिए शिवपाल।

बचा खुचा आजम ने लूटा, भैया अबही राम गोपाल।।

यदि किसी की बातों का बुरा लगे तो, सबसे पहले ये देखें कि व्यक्ति महत्त्वपूर्ण है या नहीं, यदि व्यक्ति महत्त्वपूर्ण है तो उस बात को भूल जाएं, फिर देखें कि बात महत्त्वपूर्ण है की नहीं, यदि बात महत्त्वपूर्ण है तो व्यक्ति को भूल जाएं, हो सकता है न व्यक्ति और न बात महत्त्वपूर्ण हो तो व्यक्ति की कुत्तागिरी देखें फिर भी लात मारकर भगाएं नहीं क्योंकि बंद घड़ी भी दिन में दो बार सही समय बताती है, इस दुनियाँ में कुछ भी बेकार नहीं। गंदे नाले का पानी अगर पी नहीं सकते तो कम से कम आग बुझाने के काम तो आ सकता है। मगर सभी वस्तुओं को अपनाया भी नहीं जा सकता। यही अपनाने की प्रक्रिया ही हमें बनाती है, सफल-असफल, आमिर-गरीब, राजा-प्रजा, मुर्ख-विद्वान आदि। जो लोग अत्यधिक भावुक होते है वे सबसे पहले रिस्ते, दोस्त अतिशीघ्र बनाते है, और उनके अंदर बातों का प्रभाव भी अधिक आसानी से होता है। इसिलए भाषण मात्र से उन्हें दुनियां बेवकूफ़ बना जाती है। ऐसे लोग बड़े खयाली होते है, सामने वाले ने कोई वादा भी नहीं किया मगर अपने मन में तरह तरह के ख़याल बैठा लेते है। जैसे मायावती ने नारा लगाया "तिलक तराजू औ तलवार, इनको मारो जूते चार।" तो दलितों में ख़याल लगाया कि हमरा नेता जीतेगा तो सभी सवर्णो को खदेड़ कर सारी ज़मीन हमें दे देगा। मगर हुआ कुछ उल्टा ही। मायावती ने पैसे लेकर पार्टी के टिकट बेचे उन्ही सवर्णो को, जिसकी संपत्ति छिनने का ख़्वाब लिए बैठा था लालची मानव, और खुद कमाये अरबों खरबों। "अपने तो हो गई दौलत की बेटी, दलित ढूढ़ रहा है दो वक्त की रोटी।" बड़े बड़े पार्क हाथी घोड़ो के ताबूत बनवाये, साथ ही खुद जिन्दा मगर अपनी मूर्तियां लगवाये। ताज़महल के पत्थर बेचे, NRHM में ग़रीबो की दवाइयां बिक गई। एक, एक सांसद, विधायक अरबों खरबों रुपये कमाए, मगर दलित के हाथ पहले भी झंडू थे और अब भी झंडू ही नजर आये।

थक हार कर दलितों का कुछ उमंग बगैर मेहनत संपत्ति पाने वाला ख़याल, कुछ कम हुआ ही नहीं था, कि कथित पिछड़ा वर्ग जो कभी राज घराने से आता है, कहने के लिए भगवान कृष्ण का वंशज कहलाता है, मगर हराम की संपत्ति लेने का ऐसा चस्का चढ़ा कि, यूपी का कमान विरादरी के नाम पर पकड़ा दिया मायाबी मुलायम को। जिसके एक, एक भाई, भतीजे नात रिस्तेदार यार दोस्त सबने लूटा यूपी को , जिनके घर में कभी मेहनत से दो वक्त के चूल्हे जला करते थे, आज वे शराब शबाब कबाब के शौक़ीन हो गए। कहते है, जो चीज आसानी से मिलती है, वह आसानी से जाती भी है। कुछ अन्य जातियों को भी खूब लाभ मिला, क्योंकि ये दुनियां व्यापर है। राजा कोई भी हो चाहे आप खुद ही हो, मगर चालक न तो कभी खाये बगैर रहा है और न रहेगा। राजा का धर्म भी यही होता है कि, चालक को रोके और भावनाओं में बिकने वाले ईमानदार साधारण व्यक्ति को भी अवसर प्रदान करें!ताकि कोई भी भूखा नहीं रह जाय, वर्ना राजा का क्या काम? यदि चालक लूटता रहे और ईमानदार भूखा मरे? मगर जिस राज का राजा ही चालाक हो, वहाँ चालाकियां तो होगी ही। और जाति के नाम पर आस लगाए बैठे लोग हो गए विधवा।

एक बात है इस दुनियां में विधवा भी अनेकों प्रकार की होती है। जैसे आस रांड, पास रांड, रांड, रन्डक्का आदि इनका अर्थ भी है जो आस लगाकर बैठे की पिया विदेश है कभी आएंगे, दूसरा कि पिया पास में मगर रांड की तास अधूरी है, तीसरा जिसका पति मर गया हो, चौथा पति होने के बाद भी पूरा मोहल्ला रांड की तारीफ़ में लगा पड़ा हो आदि आदि। इन दोनों पार्टियों ने उत्तर प्रदेश की जनता का हाल कुछ इस कदर ही किया। क्योंकि राज्य में हिंदुओं और मुसलमानों में भेदभाव किया जाने लगा, मात्र वोट बैंक के आधार पर, हिन्दू मरा तो कोई गम नहीं, मगर मुस्लिम मरा तो पचास लाख़ और बँगला, मुस्लिम जलूसों के लिए हिन्दुओ की मूर्तियां ढकी जाने लगी, मुस्लिम त्योहारों पर मुलायम का पूरा खानदान टोपी में नज़र आने लगा, मुस्लिम लड़के लड़कियों को दसवी पास करने पर तीस तीस हजार देने का प्रचार किया जाने लगा, यदि किसी ने हिन्दुओ को देने की बात कही तो बड़े गर्व के साथ मना भी किया गया, और मना करते भी क्यों नहीं नफ़रत बढ़ाने की राजनीति जो करनी है। यदि हिन्दुओ को भी दिया जाता तो क्या किसी मुसलमान का घाटा हो जाता ? मगर ऐसा इसलिए किया गया  जिससे हिन्दुओ में ग्लानि हो और मुस्लिम वोट दें। मगर हकीकत यही नहीं है कि हर मुस्लिम के साथ ऐसा ही हो रहा। कितने तो मर गए अँधेरे में जिनके सामने कैमरा नहीं लग पाया, जिनके सामने कैमरा लगा वही पाये। सिर्फ कैमरा लगने के बाद ही भेदभाव हिन्दू मुस्लिम दलित अमीर गरीब में होता है, वर्ना रात के अँधेरे में सारे के सारे चालक एक साथ और गरीब बेवकूफ़ लोग एक साथ। फिर भी बेवकूफों के ही वोट से ये सारे ठग लुटेरे चुनाव जीत कर आते है।

एक बात आम गरीब जनता को भलीभांति समझ लेना चाहिए कि अमीर वर्ग जो निहायत ही चालक वर्ग है। यही है नेता, यही है व्यापारी, यही है आपके सगे सम्बन्धी तो आप गरीब तो होंगे ही। यदि अपनी स्थिति सुधारनी है तो सबसे पहले सगे सम्बन्धी होने का ख़याल छोड़े !! सत्ता और धन का लालच ही कुछ ऐसा होता है कि, भाई भाई को नहीं पहचानता, बेटा बाप को भूल जाता है,  आप कौन सी बुद्धिमानी कर रहे है रिस्ता जोड़कर? क्या आप ऐसा नेता नहीं चुन सकते जो संत हो! जिसे माया मोह से मतलब नहीं हो! जिसने सेवा के लिए अपना घर द्वार छोड़ समाज की सेवा करनी ठान ली हो! आप सहयोग करेंगे तो ऐसे लोगों से सुधार शीघ्र संभव होगा वर्ना ये लोग तो सेवा करना छोड़ने वाले नहीं है! मगर इनकी गति धीमी होगी जिसका लाभ आप तक पहुँचने में समय लग सकता है । हो सकता है तब तक देर भी हो जाय।

बाबर की नाजायज हर औलादों से अब कह देना!
बँद करे जयचंद यहाँ पर औ गद्दारो को सह देना !!

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