Tuesday, 28 April 2020

ऊंचे विचार और अच्छे संस्कार से लक्ष्य मिलेगा


हर व्यक्ति अपने विचारों और संस्कारों के अनुरूप ही शिक्षा पाता है और प्रगति करता है।
एक कक्षा में लगभग 60 छात्र होते है शिक्षक एक ही शिक्षा देता है मगर कोई पीएम कोई डीएम कोई चपरासी आदि तो कोई वेरोजगार हो जाता है।
जाकी रही भावना जैसी। हरि मूरत देखी तिन तैसी।।

जब अंगद ने रावण को समझाते हुए अंत में कहा-

जौ मम चरण सकसि सठ टारी। फिरहिं राम सीता मैं हारी।।

इस चौपाई का अनेक विद्वान अनेक अर्थ लगाते है, कोई कहता है कि अंगद ने कहा यदि मेरा पैर कोई हटा देगा तो श्रीराम वापस चले जाएंगेऔर सीता माता को मैं हार जाऊँगा।

मगर सोचने की बात है अंगद का सीता माता पर इतना अधिकार कैसे? इसलिए कुछ विद्वान कहते है कि अंगद ने कहा फिरहिं राम और सीता मैं हार मान लूँगा।

दूसरा उदाहरण- एक कवि हलवाई की दुकान पर बैठकर चाय पी रहा था तभी एक कौआ हलवाई के बर्तन में तेजी से चोंच मार दही खाने की कोशिश की... लेकिन हलवाई ने तुरंत पौना उठाकर कौए पर चला दिया और कौए की मृत्यु हो गई। यह दृश्य देख कवि उठा हलवाई की भट्ठी के पास से कोयले का टुकड़ा उठाया और दीवाल पर लिख दिया-

काग दही में जान गवायो।

थोड़ी देर में एक क्लर्क आया वह दिन रात कागजी कार्य में व्यस्त रहता था प्रतिदिन उसका बॉस उसे डाँटता रहता था, उसने पढ़ा-
कागद में ही जान गवायो।

एक व्यक्ति की बीबी भाग गई थी दिन रात सालों तक खोजने के बाद नही मिली जब वह आया तो पढ़ा-
का गदही में जान गवायो।

कहने का तात्पर्य अच्छे संस्कार और ऊंचे विचार से ही मनुष्य संकल्प पूरा कर सकता है, विकल्प बदलकर नही।
एक और उदाहरण पढें!

एक राजा को राज भोगते काफी समय हो गया था। बाल भी सफ़ेद होने लगे थे। एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने गुरुदेव एवं मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया । उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया।

सारी रात नृत्य चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त की बेला आयी। नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है और तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, वरना राजा का क्या भरोसा दंड दे दे।
 तो नर्तकी ने यह कविता कही-
बहु बीती थोड़ी रही पल पल गई बिताय।
एक पल के कारने ना कलंक लगि जाय।।

अब इस दोहे का दरबार में उपस्थित सभी व्यक्तियों ने अपनी-अपनी सोच के अनुरुप अलग-अलग अर्थ निकाला। तबले वाला सतर्क हो गया।
राजा के गुरु ने समझा कि मैं सारी उम्र जंगलों में भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ,भाई ! मैं तो चला। यह कहकर गुरु जी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े।

राजा की लड़की ने समझा कि जल्दबाजी मत कर कभी तो तेरी शादी होगी ही । क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है ?

राजा के लड़के ने समझा कि आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है, धैर्य रख!
 राजा ने सबसे इसका अर्थ पूछा और जब ये सब बातें सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया। राजा के मन में वैराग्य आ गया। राजा ने तुरन्त फैसला लिया - लड़की की शादी कर दी लड़के का राजतिलक और खुद बैरागी बन गया।
कविता तो एक ही थी परंतु जिसने जैसा चाहा वैसा ही फल मिला।

Friday, 9 March 2018

इतिहास उधर मुड़ जाता है। जिस ओर से भगवा चलता है।।

इतिहास गवाह है मिठाई में कीड़े लग जाते लेकिन "नमक" में नही इसीलिए मीठी मीठी बातें कर मैं आपको बेवकूफ नही बनाना चाहता। हमारे देश में बड़े बड़े वकील, महात्मा गांधी, बाबा भीमराव अंबेडकर थे, मगर किसी ने भगतसिंह का मुकदमा नही लड़ा, चाहते तो भगतसिंह को फांसी नही होती लेकिन कही भगतसिंह इनसे अधिक लोकप्रिय ना हो जाए। इस बात की जलन था। फिर ये कैसा राष्ट्रपेम ? इन्होने कैसे आजादी दिलवाई?  भगतसिंह हँसते गाते फांसी पर झूल गए, क्योंकि इनके अंदर दलाली करने का कोई गुण नही था। भारत माता के लिए फांसी पर चढ़ने वाले को आतंकी बताया जाने लगा। रावण की छीक से सीता जी का जन्म हुआ... रावण सीता का बाप था ऐसा बच्चों को पढ़ाया जाने लगा। इसलिए

हम सभी लोगों के लिए चिंतन हो गया
इनके हो गए बाबर औरंगजेब टीपू मगर शिवाजी महाराज महाराणा प्रताप दुश्मन हो गया
गद्दार सिंधिया को पूजने वालों को ना जाने रानी लक्ष्मी बाई की वीरता से क्यों जलन हो गया
भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद आदि को आतंकी बताने वालों को लालच में आकर वहम हो गया
क्योंकि जाति जाति में बंट गए हैं भारतीय बेवकूफ इन मूर्खो  के अंदर से मानवता का दहन हो गया
इन्ही की नादानियों से ठगों ने राज किया, सुभाष चंद्र बोस के प्रयासों का निधन हो गया
इन्ही की वजह से बंगाल में कभी दुर्गा पूजा मुख्य पर्व हुआ करता था लेकिन अब मुहर्रम हो गया
हारा हारा गोरी सत्रह बार हारा पृथ्वीराज ने एक बार भी नहीं मारा इसीलिए चौहान का वतन खो गया

मूर्खता और गद्दारी का हिंदुस्तान से पुराना रिश्ता है, अपने ही भाई को पिटता देख चुप रहना हमारी आदत, अंग्रेजो का दात खट्टा करने वाली रानी लक्ष्मी बाई की हार भी तब हुई थी जब सिंधिया ने अंग्रेजों से मिलकर अपने को मजबूत करने के लिए गद्दारी की।
   विचारे चंद्रशेखर आजाद गए थे बनावटी पंडित जी से भारत आजाद कराने के लिए मदत माँगने मगर मिला क्या? गद्दारी! .. जालियां वाले बांग में अंग्रेजो से खुदको घिरा देख अपने ही सर में गोली मार लिया मगर आजादी को नही झुकने दिया।
जब तक गद्दार रहेंगे भारत में, ‎कैसे सम्मान करू उनका,
राम मंदिर ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों पर कपिल सिब्बल विरोध कर जाते हैं
सभी देशद्रोहियों का मुकदमा लड़ने वाले रामजेठमलानी जिनका गुण गाते हैं
ये गद्दारी करते है हम लोगों से और विदेशों से लाखों अरबों रुपये कमाते हैं
कैसे सम्मान करू उस देशद्रोही पार्टी का जिस पार्टी से ऐसे वकील भी आते हैं
जिस दिन मूर्खो जाति पात से ऊपर उठकर इन देशद्रोहियों को पहचानोगे
उस दिन भारत माँ को गर्व होगा तुझ जैसा बेटा पाकर, खाई गरीबी अमीरी की मिट जाएगी
त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति गिराने जेसीबी आई थी इनके लिए कुत्ता पकड़ने वाली गाड़ी आएगी
सबको मिले निर्भीक न्याय अतः गद्दारो को भगाना होगा
सबको मिले आदर्श व्यवस्था, समान संविधान लाना होगा
उठो धरा के वीर सपूतों भारत माँ का सम्मान करो।
समझो इनकी चालबाजियां फिर से ना नादान बनो।।
तलवारों की छाओ में,  भगवा रंग लहरता है।
इतिहास उधर मुड़ जाता है जिस ओर से भगवा चलता है।।

Saturday, 3 March 2018

आजादी का देके नारा लूटे भारत लूटे गरीब का घर सारा।

गांधी जी ने आजादी दिलवाई
चंद्रशेखर आजाद ने गोली खाई
सरदार भगत सिंह फांसी पर झूले
बिस्मिल खान को सब कोई भूले
वीर सावरकर गए जेल में
बाबा साहेब बने मसीहा खेल खेल में
चाह रहे थे सब बल्लभाई
मगर गांधी जी ने आंख दिखाई
पाकिस्तान जब जिन्ना हथियाई
तब पंडित नेहरु जी कुर्सी पाई।

जातिवाद की बढ़ रही थी खाई
राष्ट्रवाद तब ले रहा था जम्हाई
गरीबी हटाओ का नारा नेहरू से आया
इंदिरा जी ने इसको खूब चमकाया
राजीव गांधी ने भी जुमला दुहराया
इन्ही कुकर्मो का फल राहुल पाया
हिन्दू कटता रहा सेक्युलरिज्म के नाम से
कश्मीर में आतंक भटका रहा कांग्रेस के काम से
मगर जब से हिन्दू जागा
भूत प्रेत सेक्युलरिज्म का भागा
फिरत बावला राहुल गांधी
भगवा वस्त्रन की आ गई आंधी।।

चोर लुटेरे सब परेशान
पाकिस्तान भी अब हैरान
फिर मोदी आया तब क्या होगा
बेच भीख कटोरा मिलेगा ठोंगा
सोच में पड़े सब पाकिस्तानी
दुनिया  भई मोदी की दीवानी
हिंदुस्तान के सारे चमचे परेशान
बार बार रोकते है संसद में काम
कश्मीर पर कर बैठे हैं मनसौदा
कुर्सी संग पाकिस्तान से सौदा
पाकिस्तान नेहरू की खातिर
कश्मीर होगा राहुल पर हाज़िर
जैसे इन्होंने केजरीवाल को तोड़ा
वैसे ही तीन बंदर गुजरात में जोड़ा
ऐसा ही ये करते रहेंगे कारनामा
कर्जा दे नीरव माल्या को भगाना
फिर आरोप नरेंद्र मोदी पर लगाना
हमें समझना होगा इनका बहाना।।

मंजिल तक जाना आसान है
टिके रहना वीरो का काम है
राजनीति की अस चतुराई
सकल संगठन जात समाई
माया महा ठगनी हम जानी ...
दलितों का नेता बनकर आएंगे
भीम  भीम का नारा लगवाएंगे
मक्कारों का मकसद धन की कमाई
‎बिके देश या इनकी मां बहन लुगाई
देगे भ्रष्टाचार मिटाओ का नारा
समझो इनका कांग्रेस से रिस्ता सारा
बोलेगे आरक्षण को खतरा है
समझ लो आपने हरामी पकड़ा है
जो आपके हिंदुस्तान को बेच देगा
आपकी गलती की सजा आपके बच्चों को मिलेगा।।

Sunday, 9 April 2017

हिन्दू वेदों के अनुसार :- एकं सत विप्राः बहुधा वदन्ति

        हिन्दू समाज में जब जब भी धर्म आधारित मुद्दों पर चर्चा होती है , सामान्यतः लोग दो श्रेणियों में बंट जाते हैं एक अज्ञानी मानवतावादी दूसरा कट्टर हिन्दू !! मैंने पहली श्रेणी के बंधू के लिए “अज्ञानी” इसलिए लगाया क्योंकि हिन्दू होना और मानवतावादी होना अपने आप में पर्यायवाची हैं नाकि विरोधाभासी , पर चूंकि बचपन से ही हमारी वामपंथी शिक्षा व्यवस्था से ये सिखाया जाता है की पहले इंसान बनो धार्मिक नहीं ,इसलिए ऐसे लोगों के मन में धर्म के प्रति एक भय मिश्रित छवि निर्मित हो चुकी होती है , धार्मिक होना कोई गुनाह सा लगने लगता है , वो भी बिना अपने धर्म को पढ़े और समझे !!
          मैंने दूसरी श्रेणी के व्यक्ति के साथ कट्टर इसलिए लगाया क्योंकि धर्म पर श्रद्धा रखने वालों को दुनिया ऐसा ही मानना चाहती है और दुनिया ऐसा मानना चाहती है तो हम उन्हें कैसे रोक सकते हैं ,क्योंकि इतिहास गवाह है की ज्यादातर धर्मों में जब जब श्रद्धा अंध श्रद्धा में बदली , तब तब रक्तपात हुआ है और आज भी हो रहा है , इसलिए हमारे हजारों सालों के इतिहास और शासन के बूते हम ये जरूर सिद्ध कर सकते हैं की एक कट्टर हिन्दू ही मानवता की सच्ची परिभाषा में खरा उतर सकता है !!
           “गर्व से कहो हम हिन्दू हैं” की इस पूरी चर्चा को मैंने एक काल्पनिक वार्तालाप में परिवर्तित करने की कोशिश की है :-
अज्ञानी :- गर्व से कहो हम हिन्दू हैं इसका क्या मतलब है ?
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कट्टर :- धर्म एक प्राचीन व्यवस्था है ,हर व्यक्ति या उसके पूर्वज किसी न किसी धर्म से कभी ना कभी जुड़े थे ,आप हिन्दू हैं इसे आप चाहकर भी अपने से अलग नहीं कर सकते , आपके माता पिता हिन्दू थे,आपके पूर्वज भी हिन्दू थे,फिर उस पहचान पर गर्व करने में क्या बुराई है ?
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अज्ञानी :- नहीं मैं सिर्फ एक इन्सान हूँ , किसी धर्म में नहीं बंधना चाहता मैं
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कट्टर :- जब तुम पैदा हुए थे तब तो नंगे ही आये थे , फिर आज कपडे क्यों पहन रखे हैं , जैसा ईश्वर ने भेजा था वैसे ही रहो !! कहने का आशय ये है की धर्म मनुष्य को सभ्य बनाता है, यहीं से सभ्यता और संस्कार की बात शुरू होती है !!
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अज्ञानी :- ठीक है , पर मैं हिन्दू हूँ तो  इसमें गर्व करने की क्या बात है , ऐसा करना क्या मुझे समाज के दूसरे वर्ग से अलग नहीं खड़ा कर देता ?
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कट्टर :- क्या अपने हिन्दू होने पर गर्व करने से तुम किसी और को गाली दे रहे हो या किसी और को नीचा दिखा रहे हो ?
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अज्ञानी : नहीं पर ऐसा कहना परोक्ष रूप से तो उकसाने वाला ही हुआ ?
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कट्टर :- तुम अपने पिता को दुनिया का सबसे अच्छा पिता मानते हो क्या इसका ये मतलब है की तुम बाकियों के पिता को गाली दे रहे हो ? नहीं ना , बिलकुल वैसे ही ! जहाँ तक बात है उकसाने वाली तो दिक्कत ये है की सदियों से हिन्दू समाज को बिखरा हुआ देखने की आदत सी हो गयी है,इसलिए धार्मिक उन्माद फ़ैलाने वाले तत्वों को इससे तकलीफ होती है की हिन्दू कभी इकठ्ठा होने की सोचे भी , जाती आधारित या सम्रदाय आधारित वोट बेंक की राजनीती करने वालों का गणित बिगड़ जाता है अगर हिन्दू समस्त जातिभेद भुला कर एकजुट हो जाये !!
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अज्ञानी :- मेरे हिसाब से तो धर्म नाम की चीज़ ही इन्सान को इन्सान से अलग करने के लिए बनी है , इसलिए किस बात का गर्व करें ?
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कट्टर :- तुम अपने धर्म के बारे में क्या क्या जानते हो ? क्या क्या साहित्य , ग्रन्थ , पुराण पढ़ा है तुमने ? किन किन महापुरुषों को मानते हो और उनकी कौन कौन सी पुस्तकें पढ़ी हैं ? कोई विदेशी तुम से तुम्हारे धर्म संस्कृति के बारे में पूछे तो कुछ बोल भी पाओगे ?
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अज्ञानी :- कुछ खास नहीं पढ़ा और सांप्रदायिक साहित्य पढने में रूचि नहीं है मेरी
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कट्टर :- मेरे अज्ञानी बंधू , सुनो , धर्म की परिभाषा हिन्दू मान्यता के अनुसार :-
यतोभ्युदय निह्श्रेयस सिद्धिः स धर्मः
अर्थात धर्म एक प्रकार की व्यवस्था है जो मनुष्य को अपनी इच्छाओं को संयमित करने को प्रोत्साहित करती है , एक आदर्श जीवन जीने का मार्ग देती है और समस्त भौतिक जीवन जीते हुए भी दैवीय तत्व अथवा शाश्वत सत्य की अनुभूति के लिए क्षमता प्रदान करती है !!
धारणात धर्ममित्याहु धर्मो धारयति प्रजाः
अर्थात वह शक्ति जो व्यक्तियों को एकत्रित लाती है और समाज के रूप में धारण करती है – धर्म है
कुछ समझे ?
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अज्ञानी :- हाँ पर हम धर्मनिरपेक्ष लोग हैं, इस समाज में कई धर्मों के लोग हैं , क्या उनको अकेला छोड़ दें ?
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कट्टर :- पहले तो अपना ये मिथक तोड़ दो की प्रजा धर्मनिरपेक्ष होती है , कभी नहीं होती , शासक धर्मनिरपेक्ष हो सकता है , सरकार हो सकती है पर प्रजा कभी नहीं !! तुम्हारा धर्म कहता है सच बोलो , अच्छा आचरण करो , नारी का सम्मान करो, फिर धर्म निरपेक्ष होकर कैसा जीवन जीना चाहते हो ?
तुम्हारी दूसरी बात का जवाब , हिन्दू वेदों के अनुसार :-
एकं सत विप्राः बहुधा वदन्ति

Thursday, 22 December 2016

शंकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावही सीसा।।

हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥

भगवान शिव कैलाश में दिन-रात राम-राम कहा करते थे। सती के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हो उठी। उन्होंने अवसर पाकर भगवान शिव से प्रश्न किया,

ऐसेही संसय कीन्ह भवानी। महादेव तब कहा बखानी।।
सतिहि ससोच जानी वृषकेतु। कही कथा सुंदर सुख हेतु।।

'आप राम-राम क्यों कहते हैं? राम कौन हैं?' भगवान शिव ने उत्तर दिया, 'राम आदि पुरुष हैं, स्वयंभू हैं, मेरे आराध्य हैं। सगुण भी हैं, निर्गुण भी हैं।' किंतु सती के कंठ के नीचे बात उतरी नहीं। वे सोचने लगीं, अयोध्या के नृपति दशरथ के पुत्र राम आदि पुरुष के अवतार कैसे हो सकते हैं? वे तो आजकल अपनी पत्नी सीता के वियोग में दंडक वन में उन्मत्तों की भांति विचरण कर रहे हैं। वृक्ष और लताओं से उनका पता पूछते फिर रहे हैं।
हे खग हे मृग मधुकर श्रेनी। तुम देखी सीता मृग नैनी।।
      यदि वे आदि पुरुष के अवतार होते, तो क्या इस प्रकार आचरण करते?

      सती ने अपने पति शिव जी पर विश्वास नहीं किया और मन में राम की परीक्षा लेने का विचार उत्पन्न हुआ। सीता का रूप धारण करके दंडक वन में जा पहुंची और राम के सामने प्रकट हुईं। 

भयऊ ईश मन छोभ बिसेखी। नयन उघारी सकल दिसि देखि।।

शंकरु जगतबंद्य जगदीसा।  सुर नर मुनि सब नावही सीसा।।

भगवान राम ने सती को सीता के रूप में देखकर कहा, 'माता, आप एकाकी यहाँ वन में कहां घूम रही हैं? बाबा विश्वनाथ कहां हैं?' राम का प्रश्न सुनकर सती से कुछ उत्तर देते न बना। वे अदृश्य हो गई और मन ही मन पश्चाताप करने लगीं कि उन्होंने व्यर्थ ही राम पर संदेह किया। राम सचमुच आदि पुरुष के अवतार हैं। सती जब लौटकर कैलाश गईं, तो भगवान शिव ने उन्हें आते देख पूछा क्या हुआ तो सती ने सीधा सीधा बताया कि कुछ नहीं आपने जो कहा कि श्री राम भगवान है वह सत्य है, मगर शिव जी अंतर्यामी सब कुछ उन्होंने देखा और कहा 'सती, तुमने सीता के रूप में राम की परीक्षा लेकर अच्छा नहीं किया। सीता मेरी आराध्या हैं। अब तुम मेरी अर्धांगिनी कैसे रह सकती हो! इस जन्म में हम और तुम पति और पत्नी के रूप में नहीं मिल सकते।'

सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौर सँवारा।।

मनहीं मन महेसु मुसुकाहीं। हरि के बिंग्य बचन नहिं जाहीं।।

बिकट बेष रुद्रहि जब देखा। अबलन्ह उर भय भयउ बिसेषा।।

शिव संकल्प कीन्ह मनमाहि। यह तन सती भेट अब नाहि।।
       शिव जी का कथन सुनकर सती अत्यधिक दुखी हुईं, पर अब क्या हो सकता था। शिव जी के मुख से निकली हुई बात असत्य कैसे हो सकती थी?

सिय बेषु सतीं जो कीन्ह तेहिं अपराध संकर परिहरीं।
हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं।।

चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु।
बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवाँरु।।

रावण ने भी नारियों के बारे में कहा है कि
नारि स्वभाउ सत्य सब कहहि। अवगुन आठ सदा उर रहहि।।
    यह कथा सुनाने का मतलब विश्वास करना भी सीखें।

Sunday, 2 October 2016

पाकिस्तान का पैर कब्रिस्तान में।

तीन रूप पाकिस्तान दिखाए,
चीन पहुँच हिजड़ा बनी जाये,
कुत्ते की शक्ल कुत्ता कहलाये,
यू एन में जाकर पूँछ हिलाये,
गीदड़ भभकी हमें दिखाये,
हुआ हुआ कर हिन्द डराये,
गधा बुद्धि वह समझ न पाए,
जब भभके तब जूता खाये,
अबकी कुत्ता पागल हो गवा है,
लगी है झापड़ होश हवा है।
हाफ़िज बोला सर्जिकल सिखाएंगे,
पैजामा हुआ है गीला उसे सुखायेगे,
फिर कसके नाड़ा भी लगाएंगे,
मेरे सैनिकों तुम बुरा मत समझो,
तुम्हारी कब्र से जंनत की राह बनाएंगे,
अन्दर ही अन्दर एक सुरंग बनाएंगे,
चाँद की जगह झण्डे में कटोरा लगाएंगे,
हुरे नहीं मिली तो थुरे दिलाएंगे,
अभी हिंदुस्तानियों ने खोदा कुआँ है,
लगी है झापड़ होश हवा है।
सारे विदेशी फ़ोन कर रहे है,
नापाक सलामती दुआ कर रहे है,
चीन भी दुःखी है इन्वेस्टमेंट से,
पाकिस्तान के पिटते कॉमेंट से,
सभी कह रहे है कम्बख्त सुधार,
अन्यथा मेरा लौटा दे अभी उधार,
कर्जदारों की बातें ना कोई नवा है,
लगी है झापड़ होश हवा है।

Thursday, 29 September 2016

पाकिस्तान

हम भारतीय शेर का शिकार करनेवाले कभी कुत्तों को नहीं संघारे है।
दुश्मन जो सीना तानकर खड़ा हो मैदान में हम सदा उसी को मारे है।।
महिलाओं पर अत्याचार करनेवाले मर्दो की संगत क्या निभाएंगे।
जो कभी मुर्दा भी जला नहीं सकते वे हमें जिन्दा क्या जलाएंगे।।
हिन्दुस्तान की दया पर जिन्दा रहनेवालों तुम्हारे पास ना पानी है।
जितनी बार युद्ध किये हारे हो हर बार उसी की याद दिलानी है।।
कमर के नीचे तुम्हें जब भी देखा है तेरी तो पोशाक जनानी है।
पुरुषों के गुण नहीं तुझमें बिना मूछ के नारी यही तेरी कहानी है।।
हमने तुम्हे जितनी बार समझाया तू हर बार थोड़ा बहुत शर्माया।
निर्लज्ज हो तुम इतना कि मेरी दी हुई इज्जत तुझे रास ना आया।।
जैसे तुझे पाला पड़ोस में वैसे ही अपने देश में कुछ कुत्ते पाले है।
बखूबी हमें पहचान है उनकी जिन्हें तुमने कुछ हड्डियां डाले है।।
जब तक भूकता कुत्ता तब तक परवाह हम हिन्दुस्तानी नहीं करते।
मगर जब भूकते हुए नज़दीक आ जाये तभी हम वार है करते।।
कुत्ते भय से खुद भागके मरते जब क्रोधित होता हिन्दुस्तानी है।
कुत्ते हम कभी मारा नहीं करते ये हर हिंदुस्तानी की कहानी है।।
वे क्या लडेंगे हमसे जिन्होंने सीखा मुर्गे से सुबह उठ बाग़ लगाना।
हम मूछ का सम्मान करते है नहीं सीखा बकरों सा दाढ़ी बढ़ाना।।
तुम्हारी लड़ाई सूअर से जो तुमसे अधिक बच्चे पैदा कर लेती है।
हमें हर हाल में प्रेरणा हमारी भारत माँ या गऊ माता ही देती है।।