Thursday, 22 December 2016

शंकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावही सीसा।।

हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥

भगवान शिव कैलाश में दिन-रात राम-राम कहा करते थे। सती के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हो उठी। उन्होंने अवसर पाकर भगवान शिव से प्रश्न किया,

ऐसेही संसय कीन्ह भवानी। महादेव तब कहा बखानी।।
सतिहि ससोच जानी वृषकेतु। कही कथा सुंदर सुख हेतु।।

'आप राम-राम क्यों कहते हैं? राम कौन हैं?' भगवान शिव ने उत्तर दिया, 'राम आदि पुरुष हैं, स्वयंभू हैं, मेरे आराध्य हैं। सगुण भी हैं, निर्गुण भी हैं।' किंतु सती के कंठ के नीचे बात उतरी नहीं। वे सोचने लगीं, अयोध्या के नृपति दशरथ के पुत्र राम आदि पुरुष के अवतार कैसे हो सकते हैं? वे तो आजकल अपनी पत्नी सीता के वियोग में दंडक वन में उन्मत्तों की भांति विचरण कर रहे हैं। वृक्ष और लताओं से उनका पता पूछते फिर रहे हैं।
हे खग हे मृग मधुकर श्रेनी। तुम देखी सीता मृग नैनी।।
      यदि वे आदि पुरुष के अवतार होते, तो क्या इस प्रकार आचरण करते?

      सती ने अपने पति शिव जी पर विश्वास नहीं किया और मन में राम की परीक्षा लेने का विचार उत्पन्न हुआ। सीता का रूप धारण करके दंडक वन में जा पहुंची और राम के सामने प्रकट हुईं। 

भयऊ ईश मन छोभ बिसेखी। नयन उघारी सकल दिसि देखि।।

शंकरु जगतबंद्य जगदीसा।  सुर नर मुनि सब नावही सीसा।।

भगवान राम ने सती को सीता के रूप में देखकर कहा, 'माता, आप एकाकी यहाँ वन में कहां घूम रही हैं? बाबा विश्वनाथ कहां हैं?' राम का प्रश्न सुनकर सती से कुछ उत्तर देते न बना। वे अदृश्य हो गई और मन ही मन पश्चाताप करने लगीं कि उन्होंने व्यर्थ ही राम पर संदेह किया। राम सचमुच आदि पुरुष के अवतार हैं। सती जब लौटकर कैलाश गईं, तो भगवान शिव ने उन्हें आते देख पूछा क्या हुआ तो सती ने सीधा सीधा बताया कि कुछ नहीं आपने जो कहा कि श्री राम भगवान है वह सत्य है, मगर शिव जी अंतर्यामी सब कुछ उन्होंने देखा और कहा 'सती, तुमने सीता के रूप में राम की परीक्षा लेकर अच्छा नहीं किया। सीता मेरी आराध्या हैं। अब तुम मेरी अर्धांगिनी कैसे रह सकती हो! इस जन्म में हम और तुम पति और पत्नी के रूप में नहीं मिल सकते।'

सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौर सँवारा।।

मनहीं मन महेसु मुसुकाहीं। हरि के बिंग्य बचन नहिं जाहीं।।

बिकट बेष रुद्रहि जब देखा। अबलन्ह उर भय भयउ बिसेषा।।

शिव संकल्प कीन्ह मनमाहि। यह तन सती भेट अब नाहि।।
       शिव जी का कथन सुनकर सती अत्यधिक दुखी हुईं, पर अब क्या हो सकता था। शिव जी के मुख से निकली हुई बात असत्य कैसे हो सकती थी?

सिय बेषु सतीं जो कीन्ह तेहिं अपराध संकर परिहरीं।
हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं।।

चरित सिंधु गिरिजा रमन बेद न पावहिं पारु।
बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवाँरु।।

रावण ने भी नारियों के बारे में कहा है कि
नारि स्वभाउ सत्य सब कहहि। अवगुन आठ सदा उर रहहि।।
    यह कथा सुनाने का मतलब विश्वास करना भी सीखें।

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