Sunday, 9 April 2017

हिन्दू वेदों के अनुसार :- एकं सत विप्राः बहुधा वदन्ति

        हिन्दू समाज में जब जब भी धर्म आधारित मुद्दों पर चर्चा होती है , सामान्यतः लोग दो श्रेणियों में बंट जाते हैं एक अज्ञानी मानवतावादी दूसरा कट्टर हिन्दू !! मैंने पहली श्रेणी के बंधू के लिए “अज्ञानी” इसलिए लगाया क्योंकि हिन्दू होना और मानवतावादी होना अपने आप में पर्यायवाची हैं नाकि विरोधाभासी , पर चूंकि बचपन से ही हमारी वामपंथी शिक्षा व्यवस्था से ये सिखाया जाता है की पहले इंसान बनो धार्मिक नहीं ,इसलिए ऐसे लोगों के मन में धर्म के प्रति एक भय मिश्रित छवि निर्मित हो चुकी होती है , धार्मिक होना कोई गुनाह सा लगने लगता है , वो भी बिना अपने धर्म को पढ़े और समझे !!
          मैंने दूसरी श्रेणी के व्यक्ति के साथ कट्टर इसलिए लगाया क्योंकि धर्म पर श्रद्धा रखने वालों को दुनिया ऐसा ही मानना चाहती है और दुनिया ऐसा मानना चाहती है तो हम उन्हें कैसे रोक सकते हैं ,क्योंकि इतिहास गवाह है की ज्यादातर धर्मों में जब जब श्रद्धा अंध श्रद्धा में बदली , तब तब रक्तपात हुआ है और आज भी हो रहा है , इसलिए हमारे हजारों सालों के इतिहास और शासन के बूते हम ये जरूर सिद्ध कर सकते हैं की एक कट्टर हिन्दू ही मानवता की सच्ची परिभाषा में खरा उतर सकता है !!
           “गर्व से कहो हम हिन्दू हैं” की इस पूरी चर्चा को मैंने एक काल्पनिक वार्तालाप में परिवर्तित करने की कोशिश की है :-
अज्ञानी :- गर्व से कहो हम हिन्दू हैं इसका क्या मतलब है ?
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कट्टर :- धर्म एक प्राचीन व्यवस्था है ,हर व्यक्ति या उसके पूर्वज किसी न किसी धर्म से कभी ना कभी जुड़े थे ,आप हिन्दू हैं इसे आप चाहकर भी अपने से अलग नहीं कर सकते , आपके माता पिता हिन्दू थे,आपके पूर्वज भी हिन्दू थे,फिर उस पहचान पर गर्व करने में क्या बुराई है ?
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अज्ञानी :- नहीं मैं सिर्फ एक इन्सान हूँ , किसी धर्म में नहीं बंधना चाहता मैं
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कट्टर :- जब तुम पैदा हुए थे तब तो नंगे ही आये थे , फिर आज कपडे क्यों पहन रखे हैं , जैसा ईश्वर ने भेजा था वैसे ही रहो !! कहने का आशय ये है की धर्म मनुष्य को सभ्य बनाता है, यहीं से सभ्यता और संस्कार की बात शुरू होती है !!
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अज्ञानी :- ठीक है , पर मैं हिन्दू हूँ तो  इसमें गर्व करने की क्या बात है , ऐसा करना क्या मुझे समाज के दूसरे वर्ग से अलग नहीं खड़ा कर देता ?
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कट्टर :- क्या अपने हिन्दू होने पर गर्व करने से तुम किसी और को गाली दे रहे हो या किसी और को नीचा दिखा रहे हो ?
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अज्ञानी : नहीं पर ऐसा कहना परोक्ष रूप से तो उकसाने वाला ही हुआ ?
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कट्टर :- तुम अपने पिता को दुनिया का सबसे अच्छा पिता मानते हो क्या इसका ये मतलब है की तुम बाकियों के पिता को गाली दे रहे हो ? नहीं ना , बिलकुल वैसे ही ! जहाँ तक बात है उकसाने वाली तो दिक्कत ये है की सदियों से हिन्दू समाज को बिखरा हुआ देखने की आदत सी हो गयी है,इसलिए धार्मिक उन्माद फ़ैलाने वाले तत्वों को इससे तकलीफ होती है की हिन्दू कभी इकठ्ठा होने की सोचे भी , जाती आधारित या सम्रदाय आधारित वोट बेंक की राजनीती करने वालों का गणित बिगड़ जाता है अगर हिन्दू समस्त जातिभेद भुला कर एकजुट हो जाये !!
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अज्ञानी :- मेरे हिसाब से तो धर्म नाम की चीज़ ही इन्सान को इन्सान से अलग करने के लिए बनी है , इसलिए किस बात का गर्व करें ?
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कट्टर :- तुम अपने धर्म के बारे में क्या क्या जानते हो ? क्या क्या साहित्य , ग्रन्थ , पुराण पढ़ा है तुमने ? किन किन महापुरुषों को मानते हो और उनकी कौन कौन सी पुस्तकें पढ़ी हैं ? कोई विदेशी तुम से तुम्हारे धर्म संस्कृति के बारे में पूछे तो कुछ बोल भी पाओगे ?
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अज्ञानी :- कुछ खास नहीं पढ़ा और सांप्रदायिक साहित्य पढने में रूचि नहीं है मेरी
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कट्टर :- मेरे अज्ञानी बंधू , सुनो , धर्म की परिभाषा हिन्दू मान्यता के अनुसार :-
यतोभ्युदय निह्श्रेयस सिद्धिः स धर्मः
अर्थात धर्म एक प्रकार की व्यवस्था है जो मनुष्य को अपनी इच्छाओं को संयमित करने को प्रोत्साहित करती है , एक आदर्श जीवन जीने का मार्ग देती है और समस्त भौतिक जीवन जीते हुए भी दैवीय तत्व अथवा शाश्वत सत्य की अनुभूति के लिए क्षमता प्रदान करती है !!
धारणात धर्ममित्याहु धर्मो धारयति प्रजाः
अर्थात वह शक्ति जो व्यक्तियों को एकत्रित लाती है और समाज के रूप में धारण करती है – धर्म है
कुछ समझे ?
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अज्ञानी :- हाँ पर हम धर्मनिरपेक्ष लोग हैं, इस समाज में कई धर्मों के लोग हैं , क्या उनको अकेला छोड़ दें ?
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कट्टर :- पहले तो अपना ये मिथक तोड़ दो की प्रजा धर्मनिरपेक्ष होती है , कभी नहीं होती , शासक धर्मनिरपेक्ष हो सकता है , सरकार हो सकती है पर प्रजा कभी नहीं !! तुम्हारा धर्म कहता है सच बोलो , अच्छा आचरण करो , नारी का सम्मान करो, फिर धर्म निरपेक्ष होकर कैसा जीवन जीना चाहते हो ?
तुम्हारी दूसरी बात का जवाब , हिन्दू वेदों के अनुसार :-
एकं सत विप्राः बहुधा वदन्ति

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